
मिशन के रास्ते पर चलते हुए बेईज्ज़ती भी होगी, चोट भी लगेगी, ज़ख्म भी मिलेंगे और घुसपैठिये भी मिलेंगे, लेकिन आपको सावधान रहना होगा- साहेब कांशी राम
पम्मी लालोमज़ारा (Pammi Lalomazara)
उपरोक्त शब्द साहेब ने 14 अक्टूबर 1981 से लेकर 18 अक्टूबर 1981 तक चंडीगढ़ के 17 सेक्टर के परेड ग्राउंड में चले पांच दिन तक बामसेफ के तीसरे राष्ट्रिय सम्मलेन के आखिरी दिन कहे थे. कर्मचारियों ने इस कार्यक्रम में बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया था और हज़ारों दिन में साहेब का केडर सुनकर चले जाते थे. साहेब इस सम्मलेन में सुबह से रात के साढ़े दस बजे तक हाज़िर रहते थे. बाकि के साथी जहाँ रात को आराम करते थे वहीँ साहेब रात को भी गहरी सोच में डूबे रहते थे. इस सम्मलेन में शामिल लोगों को चाय-पानी से लेकर भोजन करवाने के लिए बर्तनों का प्रबंध चंडीगढ़ से लेकर रोपड़ तक के गुरुद्वारों से किया गया था. साहेब ने इस सम्मलेन में बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को मुख्य मेहमान बनाया था जो कि नाई जाती से आते थे.
कर्पूरी ठाकुर को ही मैंने मुख्य मेहमान क्यूँ बनाया?
साहेब ने चुटकी लेते हुए इस सम्मलेन में बताया था कि, “मैं कर्पूरी ठाकुर को इस बामसेफ सम्मलेन का मुख्या मेहमान इस लिए बनाया है क्यूंकि वह जाति से नाई हैं और एक नाई अपने उस्तरे की धार हमेशा तेज़ करके रखता है. इसलिए मैं कर्पूरी ठाकुर से, ब्राह्मणवाद जो चुटली रखता है चुटलीवाद का ड्रामा करता है, इनका ऐसा मुंडन करवाऊँगा कि उनके सिर पर चुटली वगेहरा कुछ नहीं छोडूंगा.
कर्पूरी कर्पूरी छोड़ कुर्सी, तू उठा छुरी
साहेब ने बिहार के भूतपूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर के बारे में एक और खुलासा करते हुए कहा था, “यह शख्स कुछ समय के लिए ही मुख्यमंत्री की कुर्सी पर इसलिए टिका रह सका था क्यूंकि जाति का नाई था और इसलिए आर.एस.एस. और कट्टर हिन्दुवाद ने एक नारा दिया था कि ‘कर्पूरी कर्पूरी तू छोड़ कुर्सी उठा छुरी’. मतलब यह कि नाई जाति का व्यक्ति कुर्सी पर बैठने के काबिल नहीं है, और उसे उस्तरा उठाना चाहिए. क्यूंकि एक नाई का काम लोगों के बाल काटना है न कि कुर्सी पर बैठना. कर्पूरी ठाकुर वह शख्स था जिसने बिहार राज्य में पहली बार शराबबंदी लागू की थी.
राम नरेश यादव, वापिस जाओ, वापिस जाकर भैंस चराओ
साहेब ने इस सम्मलेन में लगते हाथ उत्तर प्रदेश के भूतपूर्व मुख्यमंत्री राम नरेश यादव के बारे में खुलासा ज़ाहिर करते कहा था कि जब वह मुख्यमंत्री था तब वहां भी कट्टर हिन्दुवाद से यह बात बर्दाश्त नहीं हुई कि एक यादव यानि एक पशुपालक उनके ऊपर हुक्मरान बनकर कैसे राज कर सकता है. सो उस कट्टर हिन्दुवाद ने एक नारा दिया था कि- राम नरेश यादव, वापिस जाओ, वापिस जाकर भैंस चराओ.
साहेब ने उपरोक्त उदाहरणों के मद्दे-नज़र नतीजा निकाला और इससे भी आगे बढ़ते हुए कहा कि, “जाति इस मुल्क की सबसे बड़ी समस्या है. जाति की इस समस्या के खिलाफ तीसरी आज़ादी की लड़ाई के लिए हमें हरहालत में लड़ने के लिए तैयार रहना पड़ेगा. साहेब ने केरला के नारायणा गुरु की उदहारण देते हुए कहा था कि वह हर रोज़ पहाड़ जाते थे और एक पत्थर नीचे फेंक देते थे. वह शोषित समाज के लोगों को यह समझाने की कोशिश करते थे कि अगर जाति के इस कोढ़ नुमा पत्थर को पहाड़ से फेंके यानि पत्थर की तरह नीचे फेंकते रहेंगे तो एक न एक दिन ज़रुरत निजात मिलेगी.
हमारे पूर्वज दुनियाभर में ज्ञान बाँटते थे, इसलिए भारत को विश्वगुरु कहा जाता था. साहेब ने बामसेफ के कार्यकर्ताओं को चिंतन-मंथन करते समझया था कि “मिशन के जिस खतरनाक रास्ते पर हम और आप चल रहे हैं, इस रास्ते पर चलते हुए बेईज्ज़ती भी होगी, चोट भी लगेगी, ज़ख्म भी मिलेंगे और घुसपैठिये भी मिलेंगे, लेकिन आपको सावधान रहना होगा. हमारे पूर्वजों का इतिहास जिसे ब्राह्मणवाद ने ब्लैकआउट कर दिया था, उसको मैंने उजागर कर दिया है. हमारे पूर्वजों के इतिहास को भारतीय स्कूलों की पाठ्य पुस्तकों से गायब कर दिया गया था. 2200 साल पहले नालंदा, तक्षशिला, वैशाली, उज्जैन दुनिया का एक अमीर इतिहास थे. इसीलिए दुनिया भर में ज्ञान बाँटते थे, सो इसीलिए भारत को दुनिया भर में जगतगुरु कहा जाता था. 373 ई. पूर्व में जब सिकंदर यूनान से दुनिया फतह करने के लिए निकला था तब हमारे पूर्वज महापद्मानंद के वंशज धन्नानंद ने सिकंदर को सतलुज दरिया तक पहुँचने से पहले ही हरा दिया था. और तो और, सिकंदर चन्द्रगुप्त मौर्या से लड़ने से मना कर गया था. एक षड्यंत्र के तहत सिकंदर, अपने दरबारी सेलकूअस को चन्द्रगुप्त मौर्या के दरबार में छोड़ कर चला गया था, जिसने बाद में अपनी लड़की का विवाह चन्द्रगुप्त मौर्या से कर दिया था. बाद में धोखे से सेलकूअस ने चाणक्य नामक ब्राह्मण के साथ मिलकर धन्नानंद को चन्द्रगुप्त मौर्या के हाथों ही क़त्ल करवा दिया था. क्यूंकि धन्नानंद ब्राह्मणवाद को नहीं मानता था.
हमारे पूर्वज हज़ारों सालों से क्रांति की लड़ाई लड़ते आये हैं लेकिन पाखंडी ब्राह्मणवाद ने इस लड़ाई को धार्मिक लड़ाई का रूप दे डाला. दरअसल, हमारे पूर्वज क्रांति का जो आन्दोलन चला रहे थे वह अनार्यों द्वारा आर्यों के खिलाफ मुक्ति का आन्दोलन था. 2200 साल पहले हमारे जो पूर्वजों ने इतिहास लिखा था, अगर पाखंडी ब्राह्मण न जलाते और हमारे दुनिया भर में ज्ञान बांटने वाले अध्यापकों का क़त्ल न करते तो जहाँ वह सिस्टम पहुंचा था, मतलब कि चाहे जापान हो या चीन, तो शायद आज भी हमारे पूर्वजों का इतिहास सारी दुनिया से अमीर होता. सो, इस पांच दिन के राष्ट्रीय सम्मलेन में मैं और मेरे साथियों ने इस गली-सड़ी जाति व्यवस्था को ख़त्म करने के लिए जो कसम खाई है, वह ज़िन्दगी के आखिरी सांस तक जारी रहेगी.”
जापान की स्कालर लेडी भी हैरान थी साहेब की दलीलों पर
इस कैडर कैंप में जापान से बारबरा नाम की एक स्कॉलर महिला भी इस पाँच दिन के कैडर कैंप में भाग लेने के लिए आई हुई थी. उसने पहले दिन इस कैडर कैंप में बोलते (उसे बोलने के लिए पंद्रह मिनट का समय दिया गया था) हुए कहा कि- मैं जिस खोजपत्र पर काम कर रही हूँ, मैं उस आधार पर कह सकती हूँ कि भारत में दबे कुचले शुद्र लोग अभी आने वाले सौ साल तक भी उठकर खड़े नहीं हो सकते. लेकिन जब पाँच दिन के कैडर कैंप के उन्होंने नोट्स बनाये व् उसे नोट किया तब वह साहेब की सोच और दलीलों से इतनी प्रभावित हुई कि उसने कैडर कैंप के आखिरी दिन बोलने के लिए फिर से पंद्रह मिनट का समय माँगा. लेकिन साहेब ने उसे समय देने से यह कहकर सिरे से ख़ारिज कर दिया कि हमारे कैडर कैंप में बोलने के लिए छः महीने पहले समय लेना पड़ता है. जब बारबरा ने कुछ ज्यादा ही निवेदन किया तो साहेब ने कहा कि ठीक है, जो भी कहना है पांच मिनट में ही कह दो. बारबरा ने अपने भाषण में कहा कि मैं साहेब की सोच से इतनी प्रभावित हुई हूँ कि मैं यह बात सौ फ़ीसदी दावे के साथ कह सकती हूँ कि भारत के दलितों की आने वाले दस सालों में समस्त विश्वस्तर पर एक अलग पहचान होगी. साहेब ने बाद में बारबरा को मंच से मुखातिब होते हुए कहा कि मैं यह काम दस सालों में नहीं आने वाले पांच सालों में ही करके दिखा दूँगा.
बामसेफ के इस तीसरे राष्ट्रिय कैडर कैंप का मीडिया ने भी नोटिस लिया था. हालाँकि नागपुर और दिल्ली में हुए पहले (1979) और दुसरे (1980) कैडर कैंप का प्रेस ने कोई ख़ास नोटिस नहीं लिया था.
बाबा साहेब के रूप में पहले हमारे पास एक राजमिस्त्री (mason) तो था लेकिन ज़रुरत का सामान नहीं था. अब हमारे पास समाज तो है लेकिन मिस्त्री नहीं है. इस लिए अब बामसेफ को राजमिस्त्री बनना पड़ेगा.- साहेब कांशी राम
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नोट: उपरोक्त अध्याय ‘मैं कांशी राम बोल रहा हूँ’ किताब में से, लेखक – पम्मी लालोमजारा, अनुवादक – गुरिंदर आज़ाद
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पम्मी लालोमजारा पंजाब से, एक लेखक व् गीतकार हैं. उनसे 9501143755 नंबर पर संपर्क किया जा सकता है.
गुरिंदर आज़ाद, राउंड टेबल इंडिया (हिंदी) के संपादक हैं.