नीरज ‘थिंकर’ (Neeraj Thinker)
पूरी दुनिया जब कोरोना जैसी भयंकर वैश्विक महामारी से जूझ रही है तो उसमें भारत देश भी शामिल है जो इस महामारी की चपेट में आ चुका है, भारत में पहला केस केरल राज्य में 30 जनवरी 2020 को दर्ज किया गया और 3 फ़रवरी तक यह संख्या बढ़कर तीन हो गई, वायरस से संक्रमित सभी चीन के वुहान से लौटने वाले छात्र थे. बाद में 12 मार्च को कोरोना से पहली मौत भी देखी गई जो 76 वर्षीय एक व्यक्ति की हुई जो सऊदी अरब से लौटा था और इसी तरह कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा बढ़ता गया और देखते ही देखते कोरोना ने सभी राज्यों को अपनी चपेट में ले लिया 15 मार्च को जहाँ संक्रमितों की संख्या 100 थी वहीं 28 मार्च को 1000, 2 अप्रैल को 2000, 4 अप्रैल को 3000 और 11 अप्रैल तक संक्रमितों की संख्या 6565 व् कोरोना से मरने वालो की संख्या 239 तक पहुच गई है और अब जब मैं यह लेख लिख रहा हूँ तब तक का आंकड़ा है और इसमें लगातार वृद्धि हो रही है.
अब बात करें अगर राजस्थान की तो यहाँ कोरोना का पहला मामला इटली से जयपुर आये एक पर्यटक दम्पति में 3 मार्च को पॉजिटिव आने के बाद आया. उसके बाद राज्य सरकार सतर्क हो गई और उस दम्पति से संपर्क में आये लोगों की सूची निकालने में जुट गई. फिर झुंझुनूं में इससे जुड़े संदिग्ध व्यक्तियों की पहचान हुई जिनमें कोरोना पॉजिटिव पाया गया. फिर उस इलाके को सील करते हुए आगे की योजना के लिए मीटिंग बुलाई व् कोरोना से निपटने की रणनीति तैयार की. देश में जनता कर्फ्यू 22 मार्च को और लॉकडाउन 25 मार्च को लागु किया गया पर राजस्थान में इसकी शुरुआत 15 मार्च से ही निजी व् सरकारी स्कूलों को पूरी तरह से बंद करके कर दी थी.
राजस्थान में ही अगर भीलवाड़ा ज़िले की बात करें तो यहाँ कोरोना का पहला मरीज 19 मार्च को सामने आया और उसके अगले ही दिन यानि 20 मार्च को पांच नए मरीजों के आने के बाद ज़िला प्रशासन हरकत में आ गया और जिला कलेक्टर राजेंद्र भट्ट ने तुरंत प्रभाव से यहाँ पर कर्फ्यू घोषित कर दिया. एक निजी अस्पताल के डॉक्टर से शुरू हुआ कोरोना अस्पताल के स्टाफ को संक्रमित करता हुआ जिले में फैला, प्रशासन ने तुरंत प्रभाव से हॉस्पिटल को सील किया.
आखिर भीलवाड़ा मॉडल किस तरह कारगर हुआ?
अब जब पुरे देश में भीलवाड़ा मॉडल की चर्चा हो रही है तो यह कैसे संभव हुआ इसके बारे में जानना बेहद जरुरी हो जाता है जब संक्रमितों की संख्या में लगातार बढ़ोतरी से भीलवाड़ा को वुहान शहर की संज्ञा दी जाने लगी और तब से ही जिला प्रशासन ने इसे युद्ध की तरह लेते हुए इस जंग को जीतने की ठान ली और भीलवाड़ा पर लगे लांछन को शान में बदलने के लिए रात-दिन प्रयास करने लगे. सबसे त्वरित (तीव्र गतिवाला) कार्य जो प्रशासन ने किया वो था. पहले केस के आते ही जिले में कर्फ्यू लगाने के साथ ही जिले की सीमा को सील करना. इससे बाहरी व्यक्ति के आने पर रोक लगी व् संदिग्ध व्यक्तियों को जिले में रोके रखने में मदद मिली. उसके बाद प्रशासन ने 20 जगहों पर पुलिसकर्मीयों के जाब्ते को तैनात करके लोगों की आवाजाही को नियंत्रित करने के साथ ही संदिग्ध लोगों की पहचान करना भी शुरू कर दिया और प्रशासन ने संक्रमित स्टाफ वाले अस्पताल को सील करवाया.
22 फरवरी से 19 मार्च तक आए मरीजों की सूची निकलवाई गई. 4 राज्यों के 36 व राजस्थान के 15 जिलों के 498 मरीज आए जिसकी सुचना कलेक्टर को देकर आइसोलेट (अलग) करवाया गया. साथ ही अस्पताल के 253 स्टाफ व जिले के 7 हज़ार मरीजों की स्क्रीनिंग की गई. प्रशासन ने शहर के 55 वार्डों में नगर परिषद के जरिये दो बार सैनिटाइजेशन करवाया व् हर गली-मोहल्ले, कॉलोनी में हाइपोक्लोराइड के एक प्रतिशत का छिड़काव किया गया. भीलवाड़ा जिले में छह हज़ार कर्मचारीयों के द्वारा देश की सबसे बड़ी 25 लाख लोगों की स्क्रीनिंग की गई. मरीजों के संपर्क में आए लोगों की पहचान की. 7 हज़ार से अधिक संदिग्ध लोगों को होम-क्वारंटीन में रखा गया, साथ ही एक हज़ार से अधिक लोगों को 24 होटलों, रिसोर्ट व धर्मशालाओं में क्वारंटीन किया गया. जिले के महात्मा गाँधी राजकीय अस्पताल में कोरोना मरीजों के लिए आइसोलेशन वार्ड बनाया गया. इसमें कार्यरत डॉक्टर्स व मेडिकल स्टाफ की हर सप्ताह ड्यूटी बदली व् कोरोना से संक्रमित न हों, इसलिए सात दिन की ड्यूटी के बाद उन्हें भी 14 दिन क्वारंटीन में रखा. नतीजा, अब तक 69 स्टाफ में से एक भी संक्रमित नहीं हुआ.
सबसे बड़ी बात मोदी जी के 21 दिन के लॉकडाउन के बावजूद भीलवाड़ा प्रशासन ने 03 अप्रैल से 13 अप्रैल तक 10 दिनों के लिए ‘महाकर्फ्यू’ घोषित किया जिसके तहत सभी स्वयंसेवी संस्थओं के व् मिडियाकर्मियों के पास भी निरस्त किये गये. यह एक पूर्ण लॉकडाउन है जिसमें गठित टीम के अलावा एक भी व्यक्ति को बाहर निकलने की अनुमति नहीं दी गई. ऐसा करके वायरस के सामुदायिक प्रसार को रोका गया व् जिले के किसी क्षेत्र या गांव में कोरोना से संक्रमित व्यक्ति के पाए जाने पर उस क्षेत्र को सेंटर प्वाइंट मानते हुए एक किलोमीटर की परिधि को नो-मूवमेंट-ज़ोन घोषित करके वहां कर्फ्यू भी लगाया गया. इस महाकर्फ्यू के दौरान श्रमिकों, असहाय व जरूरतमंदों को निशुल्क भोजन पैकेट व किराना सामान भेजने के लिए प्रशासन द्वारा सरकारी कर्मचारियों की टीम गठित की गई जिसने एक नियमित अन्तराल पर वार्ड-वाइज लोगों तक खाद्य सामग्री पहुँचाने का काम किया. इसकी सुचना प्रशासन द्वारा वार्ड अनुसार लोगों तक ‘महाकर्फ्यू’ लागु करने से पहले ही पहुंचा दी ताकि किसी को असुविधा ना हो.
कलस्टर कन्टेनमेंट (सामूहिक नियंत्रण) का भीलवाड़ा मॉडल अब पुरे देश ही नहीं बल्कि विश्व में एक चर्चा का विषय बन गया है और अब इसे कोरोना को नियंत्रित करने के लिए पूरे भारत में लागु किया जा रहा है. वुहान की संज्ञा से भीलवाड़ा मॉडल बनाने में पूरे जिले के तमाम प्रशासन ने अपनी भूमिका निभाई व् इस सफलता को हासिल किया.
जब सवाल योग्यता (मेरिट) व् काबिलियत का होता है तब अक्सर एक विशेष तबके द्वारा इस पर एकाधिकार जताते हुए एससी (SC), एसटी (ST) व् ओबीसी (OBC) पर आरोप लगाया जाता है कि ये लोग आरक्षण के बलबूते पर आगे बढ़ते है व् ये सब आरक्षण की पैदावार है. इनके पास ज्ञान का आभाव है, इत्त्यादी- इत्त्यादी तरह के विशेषणों के साथ बातें की जाती है लेकिन वे हर बार ये भूल कर जाते है कि ये मेहनतकश तबका हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा व् परिश्रम के चलते तमाम असंभव उड़ाने भर लेता है. योग्यता को बिना स्थितिविशेष के परिभाषित कर देना इन तथाकथित मेरिटधारियों की हमेशा से बहुत बड़ी ‘खूबी’ रही है वर्ना इन्हें मालूम है कि एक बार समान अवसर और परिस्थिति दी जाये तो कोई क्षेत्र ऐसा नहीं बचेगा जहाँ बहुजन तबका प्रतिनिधित्व न कर सके! हर जगह पर चाहे वो विश्वविद्यालयों में प्रवेश लेने की बात हो या फिर किसी नौकरी में चयन की हमेशा से बहुजन लोगों को अयोग्य या फिर कम मेरिट का कह कर बाहर कर दिया जाता है. बिना उनकी योग्यता का परिक्षण लिए ही उन्हें प्रतिस्पर्धा से बाहर कर दिया जाता है. अयोग्य भी कहते है और मौका देकर मुकाबला करने से भी डरते भी है. इन सब बाधाओं के बावजूद भी मौका मिलते ही बहुजन वर्ग अपनी प्रतिभा से सबको चकाचौंध कर देता है! कुछ ऐसा ही काम भीलवाड़ा में इन कथित ‘गैर-मेरिटधारियों’ ने कर दिखाया जो उनके हिसाब से कम योग्य व् मेरिटधारी है. भीलवाडा को एक मॉडल बनाने में जिन प्रमुख लोगों ने अपना जीवन इस महामारी से ज़िले की जनता को बचाने में लगाया वो सबके सब तथाकथित अयोग्य व् कम गुणवान है इनमे सबसे पहले शामिल है.
टीना डाबी जिसने 2016 में भारत की सबसे उच्चतम व् कठिन परीक्षा में पुरे देश में प्रथम स्थान लाकर उन तथाकथित मेरिटधारियों के मुहं पर करारा तमाचा जड़ दिया था, इन्हीं मेरिट के एकाधिकारियों ने आरक्षण का हवाला देकर टीना डाबी की योग्यता पर तमाम सवाल खड़े किये थे. खैर, उनका काम है सो उन्होंने किया. अब एक बार फिर इसी बहुजन बेटी ने अपनी योग्यता का लोहा मनवा लिया है. भीलवाड़ा ज़िले में वर्तमान में उपखंड अधिकारी (SDM) के रूप में पदासीन टीना डाबी ने कोरोना महामारी से ज़िले को बचाने के लिए रात-दिन एक करके पूरी मुस्तैदी के साथ ज़िला प्रशासन के साथ डटी रहकर जिले में गठित टास्क फोर्सेज का नेतृत्व किया. इनकी नेतृत्व क्षमता व् गजब के अभिनव सुझावों ने भीलवाड़ा को मॉडल बनाने में सहयोग प्रदान किया! साथ ही ज़िले के एसपी हरेन्द्र महावर ने जो अनुसूचित जाति से आते है और गरीब व् असहाय लोगों का दर्द अच्छे से समझते है, इस महामारी के दौरान ज़िले में कोई भी भूखा न सोये, इसके लिए खुद लोगों तक खाने के पैकेट पंहुचा रहे है. अब आप सोचते सकते हो कि जिस वर्ग को खाने के लिए पुरे जीवन भर संघर्ष करना पड़ा उसी समाज से आने वाले अधिकारी, लोगों की भूख की चिंता कर रहे है और उन्हें खाना खिला रहे है. एसपी साहेब की कुशल रणनीति व् सतर्कता का ही नतीजा है कि शहर में हर व्यक्ति तक दैनिक आवश्यकता की सामग्री पंहुच पा रही है व् कोई भी भूखा नहीं सो रहा है और साथ ही होम आइसोलेशन में रह रहे 1215 लोगों की निगरानी के लिए प्रत्येक आइसोलेटेड व्यक्ति के घर के बाहर एक-एक सरकारी कर्मचारी पहरा लगा रहे है. यही कारण है भीलवाडा एक मॉडल के रूप में भी देश के सामने उभर पाया है !!
कोरोना के भारत आते ही यहाँ के जातिवादी मानसिकता वाले लोगों द्वारा ये कहा जाने लगा था कि कोरोना पर सबसे पहला हक़ एससी (SC) व् एसटी (ST) के लोगों का होना चाहिए, इस गंभीर बीमारी में भी उनका दलित-आदिवासीयों के लिए ऐसी बातें करना उनका मानसिक रूप से दिवालिया होने को ही पुष्ट करता है. उन्हें अब देख लेना चाहिए कि जिन लोगों के लिए ऐसी बाते कहीं गई उसी समाज से आने वाले डॉक्टर्स व् अधिकारीयों ने भीलवाड़ा को मॉडल बना दिया.
बहुजन द्वारा किये गये अद्भुत् कार्य का सिलसिला यहीं नहीं थमता है. ज़िले के तमाम डॉक्टर्स की टीम का नेतृत्व पूरी मुस्तैदी के साथ अपनी जान जोख़िम में डालकर जिन दो बहुजन डॉक्टर्स ने किया है उनमे शामिल है उदयपुर मेडिकल कॉलेज के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. बी एल मेघवाल एवं डॉ. रामावतार बैरवा. इनकी टीम में शामिल जो बाकी बहुजन डॉक्टर्स थे वो हैं, डॉ. गौतम बुनकर, डॉ. दौलत मीणा, डॉ. सुरेन्द्र मीणा, डॉ. देव किशन सरगरा, डॉ. मनीष वर्मा, डॉ. कविता वर्मा, डॉ. चन्दन, डॉ. महेश, डॉ. राजकुमार व् डॉ. शिव इत्त्यादी है, ये सभी डॉक्टर्स उस समाज से आते है जिन पर हमेशां अप्रतिभाशाली व् अयोग्य होने का आरोप लगता है व् एक भी तथ्यात्मक आंकड़ा न होने पर भी इनके ऊपर ऑपरेशन के दौरान पेट में कैंची रह जाने से बेबुनियाद आरोप लगाये जाते रहे है. जबकि अगर एक सर्वे कर लिया जाये इस पर कि अभी तक किन डॉक्टर्स से ऑपरेशन के दौरान दाएं हाथ की जगह बायाँ हाथ जोड़ने व् पेट में कैंची रह जाने जैसे बड़े अपराध हुए है तो मैं गारंटी के साथ कह सकता हूँ कि सारे के सारे नाम उन तमाम तथाकथित मेरिटधारी डॉक्टर्स के आयेंगे जो अपनी योग्यता का ढिंढोरा आदिकाल से पिटते आये है. उपरोक्त उल्लेखित सारे डॉक्टर्स ने उन सबको एक आईना दिखाया है जो दलित व् आदिवासी वर्ग से आने वाले डॉक्टरों के ऊपर बेबुनियाद मीम बना कर उन्हें ट्रोल किया जाता है.
योग्यता किसी की गुलाम नहीं होती है. ये तो सिर्फ अवसर व् परिस्थिति की मोहताज होती है. ये अवसर जब दलितों व् आदिवासियों को मिलता है तब वे इसको चरितार्थ करके दुनिया का व् तमाम तथाकथित मेरिटधारियों का मुहं बंद कर देते हैं.
सही मायने में ये ही सचमुच में बाबा साहेब की धरोहर (Legacy) है जिन्हें आज भी 21वीं सदी में भी इंसान नहीं समझा जाता है उन्हें अपने ही घर के बाहर चारपाई पर बैठेने के लिए आन्दोलन करना पड़ता है, खुद की शादी में बारात निकालने के लिए पुलिस को बुलाना पड़ता है. कुछ दिन पहले एक पंडित सांसद द्वारा उसका बताया हुआ काम समय पर नहीं करने पर एक दलित तहसीलदार को उसके घर जाकर परिवार वालों के सामने बुरी तरह से पीटा जाता हो और उन्हें आरक्षण की खरपतवार, पैदावार न जाने क्या-क्या कहा जाता हो वो ही लोग सीमा पर जाकर फौजी के रूप में देश की रक्षा करते है तो कभी देश पर आई विपदा व् विकट परस्थिति में सबसे आगे होकर देश का साथ देते है. यहीं इन बहुजन अधिकारीयों व् डॉक्टरों ने भीलवाड़ा में कोरोना से संक्रमित लोगों का आंकड़ा 19 मार्च से लेकर 10 अप्रैल तक 28 के पार नहीं जाने दिया व् इनमें से भी 25 को पूर्ण रूप स्वस्थ करके दिखाया. इनके इन्हीं सब अटूट प्रयासों से भीलवाड़ा एक मॉडल बन कर पुरे देश के सामने एक मिशाल के रूप में खड़ा हुआ है.
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नीरज ‘थिंकर’ एक लेखक हैं व् भीलवाड़ा (राजस्थान) से हैं. TISS मुंबई के पूर्व छात्र हैं. दलित व् आदिवासी मुद्दो पर कार्यरत हैं. उनसे neeraj2meg@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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