मनोज अभिज्ञान (Manoj Abhigyan)
06 जून, 2020 को मेरे मोबाइल पर एक दुखद समाचार आया कि बौधाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध नहीं रहे। वह 71 वर्ष के थे। पिछले कई दिनों से वह दिल्ली के राजीव गांधी सुपर स्पेशियलिटी अस्पताल में कोरोना वायरस की बीमारी से लड़ रहे थे। जीवन में आने वाली सभी परेशानियों और चुनौतियों से निपटने वाला योद्धा आखिरकार मौत से हार गया। मृत्यु जीवन का अंतिम सत्य है। दुनिया में सबसे समृद्ध या सर्वोच्च शक्तिशाली व्यक्ति भी मर जाता है। यह मनुष्य का आखिरी पड़ाव है। इससे कोई उबर नहीं पाया है। यह जानते हुए भी कि मृत्यु अंतिम सत्य है, हमारे प्रियजनों को अपनों के खोने का दुख तो होता ही है।
माननीय शांति स्वरूप बौद्ध जी का जन्म 02 अक्टूबर, 1949 को दिल्ली में लाला हरिचंद मौर्य के बेटे के रूप में हुआ. उनकी पत्नी अपने सामाजिक दायित्वों को पूरा करने के लिए सचेत रूप से हमेशा समर्पित रहीं. उनके दादा जी ने पहले उनका नाम गुलाब सिंह रखा था, लेकिन बाद में बाबासाहेब डॉ. अंबेडकर की सलाह पर, उनके दादा ने उनका नाम शांति स्वरूप के नाम से बदल दिया।
शांति स्वरूप बौद्ध जी उच्च कोटि के विद्वान, कुशल संपादक और प्रकाशक और ऊर्जावान वक्ता होने के साथ-साथ एक कुशल कलाकार भी थे। उन्होंने दिल्ली कॉलेज ऑफ़ आर्ट्स से फाइन आर्ट्स में स्नातक की डिग्री हासिल की। बुद्ध और डॉ. अंबेडकर के अलावा, उन्होंने कई अन्य हस्तियों को अपने हाथों से चित्रित किया था। उनके द्वारा लिखी गई पुस्तकों का अंग्रेजी, सिंहली, नेपाली, बर्मी सहित दुनिया की कई भाषाओं में अनुवाद किया गया है।
शांति स्वरूप बौद्ध, जिन्होंने केंद्र सरकार के राजपत्रित अधिकारी के पद से इस्तीफा देने के बाद सांस्कृतिक क्रांति के लिए अपना जीवन बलिदान कर दिया था, ने आंबेडकरवादी साहित्य और बौद्ध धर्म के प्रसिद्ध ग्रंथों को प्रकाशित करने के उद्देश्य से सम्यक प्रकाशन की स्थापना की। सम्यक प्रकाशन ने अब तक 2,000 से अधिक पुस्तकें प्रकाशित की हैं। जब बड़े-बड़े प्रकाशकों ने समाज के हाशिए के लेखकों के साहित्य को प्रकाशित करने से इनकार कर दिया, तो इन लेखकों के सामने एक बड़ा संकट खड़ा हो गया कि अब क्या करें? ये बात उनके दिमाग में घर किये हुए थी: क्या नए दृष्टिकोण के साथ उनकी लिखित सामग्री अप्रकाशित रहेगी? ऐसी स्थिति में, सम्यक प्रकाशन ने ऐसे लेखकों को एक बड़ा मंच प्रदान किया और उनकी पुस्तकें प्रकाशित कीं। शांति स्वरूप बौद्ध द्वारा स्थापित सम्यक प्रकाशन के माध्यम से कई लेखकों की पुस्तकों को पहली बार प्रकाशित किया गया था। दीक्षाभूमि, नागपुर में सम्यक प्रकाशन का स्थायी स्टाल अभी भी है।
बौद्धाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध जी का मानना था कि देश को हिंदू राष्ट्र बनाने के लिए हमारे नेता पूरी तरह से जिम्मेदार हैं। वे हर दिन नई पार्टियों का गठन कर रहे हैं, बहुजन आंदोलन के संगठन या बाबासाहेब के आंदोलन के रथ को चौराहे पर तोड़फोड़ कर रहे हैं। ये बिके हुए नेता सवर्णों के पास गए और समाज की समस्याओं और पीड़ा को देखने की बजाये अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली, कानों में रूईं ठूस ली और अपने मुंह पर ताला लगा लिया। यदि भारत एक हिंदू राष्ट्र बन जाता है, तो यह इन्हीं लोगों के कारण होगा, या फिर उन लोगों के कारण होगा जो झूठे वादों में फंस गए हैं और दुश्मनों द्वारा धोखा खा बैठे. कोई भी नेता अपने लोगों में जागरूकता पैदा करने का काम नहीं कर रहा है।
शांति स्वरूप बौद्ध ने आलोचनाओं और आपत्तियों का बहुत ही शांत तरीके से जवाब दिया। आलोचनाओं के बारे में वे हमेशा कहते थे कि हमारे मुक्तिदाता बाबासाहेब डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने 06 सितंबर 1929 को ‘बहिष्कृत भारत’ के संपादकीय में लिखा था कि प्रतिकूल परिस्थितियों के कारण कभी-कभी हमारे मन में निराशा के बादल छा जाते हैं। भले ही हमारे मन में निराशा हो, लेकिन इस निराशा की पकड़ को मजबूत नहीं होने दिया जा सकता. हम यह नहीं कहते कि हम गलतियाँ नहीं करते। यदि कोई हमें प्रामाणिक बुद्धिमत्ता के साथ हमारी गलतियों को बताता है, तो हमें बुरा नहीं लगेगा। इतना ही नहीं, हम उस आलोचना पर विचार करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं, और गलतियाँ बताने वाले व्यक्ति का शुक्रिया अदा करते हैं. आखिर मानव समाज में सर्वज्ञ कौन है?
बौद्धाचार्य शांति स्वरूप बौद्ध कहते थे कि हमारी लड़ाई ब्राह्मण से नहीं, ब्राह्मणवाद से है। इसके लिए वे अक्सर उदाहरण देते थे कि जब बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने महाड़ सत्याग्रह के दौरान गंगाधर नीलकंठ सहस्त्रबुद्धे के साथ मनुस्मृति को जलाया था, तब उनके कई अनाड़ी साथियों ने आपत्ति की थी कि आप ब्राह्मण को अपने साथ क्यों रखते हैं? उन्होंने कहा कि मैं ब्राह्मण के खिलाफ नहीं हूं, लेकिन ब्राह्मणवाद के खिलाफ हूं। इस तरह, मानवता को प्यार करने वाले और पाखंड के प्रति आलोचनात्मक रवैया अपनाने वाले शांति स्वरूप बौद्ध समाज को सही दिशा देने के उद्देश्य से अपना पूरा जीवन लगे रहे। उनका असामयिक प्रस्थान प्रबुद्ध बहुजन समाज के लिए एक कभी भी न भरी जा सकने वाली क्षति है।
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नोट: यह ‘श्रद्धांजलि’ मूल रूप में राउंड टेबल इंडिया (अंग्रेज़ी) पर छपी है. अंग्रेज़ी में इसे पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें.
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विचारक और विश्लेषक मनोज अभिज्ञान साइबर और कॉर्पोरेट मामलों के विशेषज्ञ हैं। मोबाइल: + 91-9811326145
अनुवादक: गुरिंदर आज़ाद, राउंड टेबल इंडिया के संपादक हैं.
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