लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) आतंक से आतंकवाद का सफर लम्बा है. आदिकाल से मनुष्य आतंकित होता आ रहा है और आतंकित करता आ रहा है. मनुष्यों ने अपनी सत्ता को लेकर जो भी संस्था बनाई उसमे अक्सर आतंक को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया. धर्म में ईश्वर का आतंक, परिवार में पितृसत्ता का आतंक, राज्य में सर्वभौमिक्ता का आतंक […]
धर्म की व्याख्या का खेल
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म देखी The Birth of A Nation. ये फ़िल्म नैट टर्नर नामक गुलाम पे आधारित है जिसने गुलामी के विरुद्ध 1831 में अमेरिका में विद्रोह किया था. इस फिल्म के नायक नैट टर्नर को उसके गोरे मालिक पढ़ना सिखाते हैं. पर सिर्फ वहीं तक कि वह बाइबिल पढ़ सके उससे आगे उसे पढ़ने […]
पसमांदा आंदोलन के बागबान- अभिनेता दिलीप कुमार
अभिजीत आनंद (Abhijit Anand) [अनुवादक: फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी] हम भारतीय सिनेमा को प्यार करते हैं उसको सोते, जागते, ओढ़ते, बिछाते हैं उसके लिए प्रार्थना करतें हैं। मशहूर हस्तियों को लोग सीमाओं से परे होकर चाहते हैं। अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हमारे दिलों दिमाग मे एक खास जगह बनाये रहते हैं और हम जैसे दर्शकों को सिनेमा हॉल की चारदीवारी के बाहर […]
सर सय्यद अहमद खां – शेरवानी के अन्दर जनेऊ
मसूद आलम फलाही (Masood Alam Falahi) मौलाना मुहम्मद क़ासिम सिद्दीक़ी नानौतवी के गुरु मौलाना ममलूक अली नानौतवी के शिष्य1 सर सय्यद अहमद खां (1817-1898) जिन्होंने क़ुरान मजीद की तफ़सीर (अनुवाद) लिखी और अलीगढ़ में (1875) में “मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज (मदरसा-तुल-उलूम)” खोला जो 1920 में ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ में परिवर्तित हो गया. वो शैक्षिक मिशन रुपी नाव के मल्लाह थे […]
दरअसल बाबरी मस्जिद पसमांदा समाज का मुद्दा है ही नहीं
शफ़ीउल्लाह अनीस (Shafiullah Anis) हर समाज के अपने मुद्दे होते हैं। जिस तरह से विकसित देश के मुद्दों को पहली दुनिया की समस्या (first world problems) कहा जाता हैं और विकासशील देशों के मुद्दों को तीसरी दुनिया की समस्या (third world problems) कहा जाता हैं, उसी तरह पसमांदा समाज और अशराफ समाज के मुद्दे भी अलग अलग हैं। अमेरिका […]
हक़ की बात समाज को बांटने वाली बात भला कैसे हो गई?
फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) अशराफ अक्सर पसमांदा आंदोलन पर मुस्लिम समाज को बांटने का आरोप लगाकर पसमांदा आंदोलन को कमज़ोर करने की कोशिश करता है। जिसके चपेट में अक्सर पसमांदा आ भी जाते हैं। जबकि पसमांदा आंदोलन एक वंचित समाज को मुख्यधारा में लाने की चेष्टा, सामाजिक न्याय का संघर्ष, हक़ अधिकार की प्राप्ती का प्रयत्न है। […]
मुस्लिम तुष्टिकरण का सच
फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी भारत देश की जलवायु भूमि और भौतिक सम्पदा से आकर्षित हो कर बहुत सारे आक्रमणकारी, व्यापारी और पर्यटक यहाँ आए। कुछ ने सिर्फ व्यापार तक ही खुद को सीमित रखा, कुछ लूट पाट करके वापस हो गए, कुछ ने व्यापार के साथ अपना राजनैतिक स्वार्थ भी सिद्ध किया, कुछ ने सिर्फ थोड़े समय के लिए निवास […]
मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और पसमांदा प्रश्न
फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड अपने स्थापना से लेके आजतक ये दावा करता आया है कि वह इस देश में बसने वाले सबसे बड़े अल्पसंख्यक समाज की एक अकेली प्रतिनिधि संस्था है, जो उनके व्यक्तिगत एवम् सामाजिक मूल्यों को, जो इस्लामी शरीयत कानून द्वारा निर्धारित किये गए हैं, देखने भालने का कार्य सम्पादित करती है। इसके अतिरिक्त […]
मुस्लिम राजनीति के मुद्दे बनाम पसमांदा मुद्दों की राजनीति
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) मियां-बीवी औसत 3 बच्चे, दो कमरे का घर. उसमे से एक कमरे में पॉवर लूम लगा हुआ रहता है. जो तब तक चलता है जब तक लाइट रहती है. इस पॉवर लूम को घर के सभी सदस्य मिल के चलाते हैं. उत्तर प्रदेश में लाइट का हाल आप को पता ही है पूरे दिन में मुश्किल से […]
हाँ, मुसलमानो का तुष्टिकरण हुआ है, लेकिन अशराफ़ मुसलमानों का
प्रोफेसर खालिद अनीस अंसारी (Professor Khalid Anis Ansari) यह 11 जून 2017 को पटना (बिहार) में बागडोर और अन्य संगठनों द्वारा आयोजित एक-दिवसीय कांफ्रेंस ‘बहुजन चौपाल: भारत का भगवाकरण और सामाजिक न्याय की चुनौतियाँ’ में प्रो. खालिद अनीस अंसारी के वक्तव्य की संशोधित प्रतिलिपि है. मैं अपनी बात शुरू करने से पहले जो आयोजक संगठन हैं बहुजन चौपाल के […]