सतविंदर मनख (Satvinder Manakh)
15 मार्च 2021 को साहेब कांशी राम का 87वां जन्मदिन, “बहुजन समाज दिवस” के तौर पर भारत समेत पूरी दुनिया में बहुजन समाज की तरफ से मनाया जाएगा. 2022 के उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों के मद्देनजर यह साल, उनके द्वारा शुरू किए गए बहुजन आंदोलन के लिए एक बहुत ही अहम साल है.
साहेब कांशी राम ने इस आंदोलन का मुख्य केंद्र, उत्तर प्रदेश को ही बनाया था. उनका मानना था कि उत्तर प्रदेश ब्राह्मणवाद की गर्दन है. अगर इसे गर्दन से ही पकड़ लिया जाए, तो पूरा शरीर हमारे काबू में आ जाएगा.
वो अपनी इस रणनीति में सफल हुए और 1980 से शुरुआत करके, एक ही दशक में उन्होंने पहले काँग्रेस और फिर RSS – BJP को उत्तर प्रदेश में धराशाई किया. इससे पूरे देश में ब्राह्मणवाद कमज़ोर और बहुजन समाज मजबूत हुआ.
लेकिन साहेब कांशी राम के 2006 में दुनिया से जाने के बाद, उनका आंदोलन अपने गढ़ उत्तर प्रदेश में ही कमज़ोर होना शुरू हुआ. RSS – BJP ने इसका फायदा उठाया और लखनऊ के सहारे, वो आज फिर दिल्ली पर कब्जा कर चुकी है, जिस का नतीजा पूरा बहुजन समाज भुगत रहा है.
ऐसा भी नहीं है कि बहुजन आंदोलन को दोबारा खड़ा करने की कोशिशें नहीं हुई हैं, लेकिन इसमें अभी तक कोई ज्यादा सफलता नहीं मिल सकी है.
15 मार्च 2020 – “बहुजन समाज दिवस” पर भीम आर्मी के नेता, चंद्र शेखर आज़ाद ने आज़ाद समाज पार्टी (कांशी राम) की नींव रख कर, इसी दिशा में एक और शुरुआत की है. उन्होंने 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव लड़ने का भी ऐलान किया है.
कुछ लोग इसे एक अच्छी शुरुआत मान रहे हैं. अगर वो अच्छे नतीजे लाने और RSS – BJP को कमजोर करने में कामयाब होते हैं, तो इसका असर पूरे देश की राजनीति पर पड़ सकता है.
इन हालातों में 2022 के उत्तर प्रदेश चुनाव, बहुजन आंदोलन के लिए बहुत मायने रखते हैं.
एक बात तो तय है कि बदतले समय के अनुसार, इस आंदोलन को नए नेत्रत्व की सख्त जरूरत है, जो इस संघर्ष को नए ढंग से शुरू कर सके.
बाबासाहेब आंबेडकर के जाने के बाद, RPI के असफल होने के कारणों पर साहेब कांशी राम ने कहा था कि हमारे महापुरुषों के संघर्ष के कारण ही बदलाव आया था पर उनके जाने के बाद, यह संघर्ष रुक गया. जब संघर्ष रुका, तो सामाजिक परिवर्तन की लहर भी रुक गई. इसलिए अगर हमें और परिवर्तन लाना है, तो फिर से संघर्ष करना पड़ेगा.
अफसोस कि साहेब के बाद, यह संघर्ष फिर रुका और साथ ही यह आंदोलन भी.
इस सारे घटनाक्रम में एक और पहलू यह भी है कि जहां पिछले कुछ सालों में इस आंदोलन का राजनीतिक तौर पर पतन हुआ है, वहीं सामाजिक तौर पर इसका फैलाव भी हुआ है. फुले-शाहू-अम्बेडकर जिन्हें साहेब कांशी राम ने अपना आदर्श मान, इस आंदोलन की शुरुआत की थी; आज भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में सम्मान पा रहे हैं.
दूसरी तरफ, यह मसला सिर्फ बहुजन आंदोलन को दोबारा अपने पैरों पर खड़ा करने तक ही सीमित नहीं है. जिस तरह आज RSS – BJP ने बाबासाहेब आंबेडकर के बनाए संविधान और किसान, पिछड़ी जातियों, अल्पसंख्यकों समेत पूरे बहुजन समाज पर हमले शुरू किए हैं, अगर जल्द ही इस के खिलाफ कोई बड़ा आंदोलन नहीं छेड़ा गया, तो फिर बहुत देर भी हो सकती है.
साहेब कांशी राम का बहुजन आंदोलन 2022 में कितना कामयाब होता है, यह तो चुनावी नतीजे ही बताएंगे, लेकिन इसे दोबारा अपने रास्ते पर लाने की बुनियाद 2021 में ही रखी जा सकती है.
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सतविंदर मनख पेशे से एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हैं। वह साहेब कांशी राम के भाषणों को ऑनलाइन एक जगह संग्रहित करने का ज़रूरी काम कर रहे हैं एवं बहुजन आंदोलन में विशेष रुचि रखते हैं। हालही में उनके लेखों की ई-बुक (e-book) ‘21वीं सदी में बहुजन आंदोलन‘ जारी हुई है.
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