
मेरे गावं घोरघट से महज एक किलोमीटर की दूरी पर एक गावं है मुरला मुसहरी | यह मुख्य रूप से दलित बस्ती है| एक जाति है मुसहर, जी हाँ मुसहर, जानते तो होंगे ना आप? नहीं बस इसीलिए पूछ रहा हूँ क्योंकि आजकल आप दलितों के घर का भोज उड़ा रहे हैं तो सोचा पूछ लूँ | पचास साठ घर हैं यहाँ मुसहरों के आबादी होगी यही कोई तीन सौ के आसपास.. उसी गावं में रहता है मोहन सदा ..मोहन सदा कभी स्कूल नहीं गया , उसके बच्चे भी नहीं गए , बच्चे क्या जी उसके पूरे खानदान में कोई स्कूल गया ही नहीं…मोहन कहता है की उ जे हम अछूत के यहाँ खान खाये हैं ऊके हमरे हिया भी बुलाओ , हम भी खाना खिलाएंगे , वो आपको चिट्ठी लिखना चाहता है अमित शाह जी लेकिन अनपढ़ आपको ख़त लिखे भी तो कैसे ? इसलिए यह जिम्मा मैं उठा रहा हूँ कि मोहन सदा की बात आप तक पहुँच सके|.. दर्द मोहन सदा का है शब्द बस मेरे हैं…इसलिए इसे पढ़ते वक्त आप यही माने की यह मोहन सदा का लिखा हुआ है –
आदरणीय अमित शाह जी,
जबसे आपको किसी दलित के यहां चमकते हुए थाली में खाना खाते हुए देखा है , जाने क्यों मुझे भी महसूस होने लगा है कि जल्दी ही हमारी क़िस्मत भी चमक सकती है.. हम मुसहर जाति के हैं| हमारी बस्ती आबादी से हटाकर बसाई गई है| हमारे गावं में बिजली भी नहीं है| एक सरकारी सामुदायिक भवन है जो चारो तरफ से खुल हुआ है उसको स्कूल बना दिया है मैडम आती है पढ़ाने | पर हम अपने बच्चे को हर दिन नहीं भेज पाते | आप ही सोचिये अगर बचवा रोज स्कूल जाएगा तो फिर सूअर का ध्यान कौन रखेगा? मैं तो भैंस चराने निकल जाता हूँ|
मेरे गावं में अस्पताल भी नहीं है पिछले दिनों गावं की औरत पेट दर्द से मर गयी | बरसात का दिन था वो| वो क्या है ना हमारा गावं टापू बन जाता है बरसात में , वैसे आम दिनों में भी हमारे गावं पहुंचने का कोई पक्का तो छोड़िये, कच्चा रास्ता भी नहीं है| गावं की एक महिला का पेट दर्द हो गया हम डॉ के यहां नहीं ले जा पाए| खाट पर लिटा के पानी पार करा रहे थे रस्ते में ही दम तोड़ गई|
अमित शाह जी , पर एक खुशखबरी है | चाहें तो आप इसे यूपी चुनाव में भुना सकते हैं| खुशखबरी ये है की मेरा गावं भी अब डिजिटल हो गया है| मंटू सदा दिल्ली कमाने गया था एक ठो फोन लेकर आया है| चाहें तो मोदी जी यूपी की रैली में दोनों हाथ उठा उठा के गरज गरज के अपना छप्पन इंच का सीना दिखा के बोल सकते हैं की – “भाइयों एवं बहनो , देखो हमने पूरे भारत को डिजिटल कर दिया, मुरला मुसहरी में अब मोबाइल फोन पहुंच गया | देश के दलितों को हमने कहाँ से कहाँ पंहुचा दिया |
जानते हैं अमित शाह जी , आपको दलित बस्ती में खान खाते देखकर हमारा सीना चौड़ा हो गया | अब हमें यकीन हो गया है की अब कोई खैरलांजी और मिर्चपुर नहीं होगा | अब किसी रोहित वेमुला की ह्त्या नहीं की जायेगी , अब किसी दलित दूल्हे को घोड़े पर बैठकर बारात ले जाने से कोई नहीं रोक पाएगा| यकीन तो हमे बहुत पहले से था जब आपने बिहार चुनाव का बिगुल आंबेडकर जयंती के दिन फूंका था | पर ये मीडिया वाले भी न देखो कितनी गन्दी बातें करते हैं, आपके बारे में कितना दुष्प्रचार करते हैं | कहते हैं की भाजपा आरक्षण विरोधी है| कहते हैं की दलितों के कल्याण के लिए होने वाले बजट में आपने कटौती की है | एक बार आप इनके मुंह पर प्रेस कॉन्फ्रेंस करके क्यों नहीं कह देते की सब झूठ है , इनका मुंह भी बंद हो जाएगा|
जिस तरह से आपलोगों ने पांचजन्य में बाबा साहब के बारे में बताया की बाबा साहब भी चाहते थे की भारत हिन्दू राष्ट्र बने, सुनकर हमे तसल्ली हुयी की अब हमे मंदिर प्रवेश पर कोई नहीं पीटेगा | थोड़ा बहुत पीटना-पाटना तो चलता है, ये मीडिया वाले खामखा तिल का ताड़ करते रहते हैं| सच कहें तो आपको कल एक दलित के घर में खाना खाते देख कर हमारी सारी गलतफहमियां दूर हो गयी , वैसे ग़लतफ़हमी तो उसी दिन दूर हो गयी थी जिस दिन आपने सिंहस्थ मेले में समरसता वाला सामूहिक स्नान किया था| सच कहता हूँ मन अंदर तक स्नेह के समरस में भींगकर सराबोर हो गया था| सब कहते रहे की दलित साधुओं को पीछे बिठाया पर वो समझते नहीं की साथ तो बिठाया | हम तो आपके स्नेह में दबे हुए हैं , सच पूछिए तो हमे अजीब से आध्यात्मिक सुख की अनुभूति हो रही है|
पर , आदरणीय अमित शाह जी आपको हमने ये चिठ्ठी अपने यहां खाने की दावत देने के लिए लिखवाया है | कोई बता रहा था की यूपी में आपने जिसके यहाँ खान खाया वहाँ बर्तन और पानी अपना लेकर गए थे| यहां भी लेकर आइएगा क्यूंकि हमाये यहां अल्मुनियम का पचका हुआ एक थाली और प्लास्टिक की एक कटोरी है , आप उसमे खाएंगे तो अच्छा नहीं लगेगा और अखबार टीवी में फोटो भी तो देखने में अच्छा लगना चाहिए | और पानी तो आपको लेकर आना ही पड़ेगा अमित जी क्यों की हमारे यहां एक ही चापाकल है जिससे आर्सेनिक वाला पानी आता है गर्मियों में तो सूखा ही रहता और और प्रायः खराब| और आप आर्सेनिक वाला पानी पिएंगे तो हमे अच्छा नहीं लगेगा | क्यूंकि आप हमलोगों के लिए अवतार बनकर आये हैं.. शहंशाह बनकर ..
मज़ा देखिये आपका नाम भी तो अमित है, अमित जी बोलने से कभी कभी अमिताभ बच्चन वाला फीलिंग आता है| जैसे अमिताभ बच्चन शहंशाह फिल्म में हर ज़ुल्म मिटाने को मसीहा बनकर आता था वैसे ही आप हम दलितों की ज़िंदगी में मसीहा बनकर आ रहे हैं.. आप जब हमारे गावं आएंगे तो हमलोंग बैकग्राउंड से यही धुन बजाएंगे.. “हर ज़ुल्म मिटाने को एक मसीहा निकलता है, जिसे लोग शहंशाह कहते हैं, शहंशाह, शहंशाह शहंशाह …”
अच्छी बात ये है की आप अपना बर्तन और पानी भले ही अपना लेकर आएंगे पर खाना तो हमारे घर का ही बना खाएंगे, वैसे भी सुना है दोष कच्ची रसोईं का है पक्की रसोईं का नहीं | हम मुस खाते हैं , घोंघा खाते हैं. तेल थोड़ा मंहगा है इसलिए प्रायः उबाल कर नमक मिर्च के साथ खा लेते हैं | पर आप जिस दिन आएंगे उस दिन हम उसे अच्छे से तेल में फ्राई करके बनाएंगे, ताकि रसोईं कच्ची भी ना हो और अच्छी भी बने – हमारे यहाँ का सबसे स्वादिष्ट व्यंजन है “मूस कढ़ी” वैसे आप चाहें तो घोंघा भी खा सकते हैं पर अभी नदी सूखी पड़ी है सो हम खेत से मूस खोद कर ले आएंगे | मेरी पत्नी बहुत बढ़िया और स्वादिष्ट बनाती है| साथ खाएंगे , बड़ा मज़ा आएगा | अख़बार में फोटो भी छपेगी और हो सकता है आपके बहाने हमारे गावं में बिजली, स्कूल सड़क और अस्पताल भी बन जाए….
सो आइएगा जरूर कुछ लोग तो ये कहकर भी आपकी कोशिश को बदनाम कर रहे हैं की जिसके यहां आपने खान खाया वो दलित नहीं ओबीसी है, बाँध जाति का | पर अमित शाह जी हम इनके झांसे में आने वाले नहीं हैं… क्यूंकि हमें पता है आप ही हो हमारे मसीहा ….हमारे शहंशाह … शहंशाह …शहंशाह …शहंशाह….
आपके आने के इंतजार में अपनी पलकें बिछाए और मुस बनाए|
आपका अपना,
मोहन सदा एवं मुरला मुसहरी की जनता..
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डॉ ओम सुधा लगातार सामाजिक कार्यों से जुड़े रहे हैं. . बिहार के भागलपुर में रहकर लगातार दलित सरोकारों की लड़ाइयां सड़कों पर लड़ते रहे हैं.फिलवक्त आल इण्डिया पीपुल्स फोरम के राष्ट्रीय पार्षद और आंबेडकर फुले युवा मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं..
कार्टून क्रेडिट :इंटरनेट