30 जुलाई 2017 को दिल्ली में भीड़ हिंसा (mob lynching) के खिलाफ़ एक विशाल बाइक रैली में अली अनवर साहेब, MP JDU (राज्य सभा) से DEMOcracy के पत्रकार लेनिन मौदूदी की बातचीत
लेनिन मौदूदी: सलाम, नमस्ते, आदाब!! आप जुड़े हुए हैं डेमोक्रेसी से और हमारे साथ इस समय अली अनवर साहब हैं. वो भीड़ हिंसा के खिलाफ इस रैली का हिस्सा हैं. आइये उनसे जानने की कोशिश करते है कि वो भीड़ हिंसा के बारे में क्या सोचते हैं?
अली अनवर साहब, ये जो माब-लिंचिंग (mob lynching) हो रही है, इसमें अल्पसंख्यको को ज्यादा महत्व दिया जाए या फिर पसमांदा मुस्लिमो को?
अली अनवर: देखिये, पहले तो ये जो माब-लिंचिंग हो रही है, उसमे सिर्फ मुसल्मान ही नहीं मारे जा रहे. हिन्दू भी मारे जा रहे हैं, ईसाईयों पर भी हमले हो रहे हैं, सिखों पर भी हमले हो रहे हैं, दलितों पर भी हमले हो रहे हैं. इसीलिए यह एक देशव्यापी संकट का दौर है. मुसलमानों को खास तौर से, खास मकसद से टारगेट किया जा रहा है. और मारे जा रहे हैं पसमांदा मुसलमान, खास तौर से. आप देख लीजिए, झारखण्ड में जो मारे गये, वो पसमांदा मुस्लिम थे. मेवात में जो मारे गये, वो पसमांदा मुस्लिम थे. नजीब जिसको JNU से ले जाया गया, पसमांदा है. वो भी एक माब लिंचिंग की घटना थी.
तो सवाल ये है की जो कमजोर होता है समाज में, ये कमजोर तबके के लोग हैं. दंगा-फसाद का इतिहास देखिएगा तो जहाँ दंगा-फसाद होता है…तो जो लोग सुरक्षित जगहों पर रहते हैं, जिन को लाइसेंसी असलहा मिला हुआ है, या पॉश (posh) कॉलोनियों में रहते हैं, वह लोग कम विक्टिम (victim) होते हैं. तो जो फूटपाथ पर लोग हैं, जो स्टेशन से, बस स्टैंड से पैदल अपने घर जा रहे होते हैं, दंगो का इतिहास देखिएगा या जो आग लगाई जाती है, तो वो जो रोड के किनारे जो छोटे-छोटे खोलियां होती हैं, उनपर हमला होता है. तो यह सवाल है, और यह बड़ा सवाल है, और यह देश की समस्या है. यह एक राज्य की समस्या नहीं है, यह लॉ एंड आर्डर की समस्या नहीं है, यह सिर्फ मुसलमान की भी समस्या नहीं है. इसलिए जरुरत इस बात की है…दलित हैं या हिन्दू हैं, मुसलमान हैं, OBC के लोग हैं…OBC के लोग भी मारे जा रहे हैं.
मैं झारखण्ड गया था. OBC हिन्दू भाई यादव लोग जा रहे थे गाड़ी से, कुछ गाय खरीद कर जा रहे थे. उनको घेरकर लोगों ने मरना पीटना शुरू कर दिया. तो किसी को पता चल गया की ‘ई तो यादव लोग हैं’. बगल में यादव लोगों का डेरा था. वो लोग लाठी निकाले और जो दंगाई हैं, जो इस तरह का गौ-रक्षक तथाकथित कहिये, वो हैं, उनकी जमकर कुटाई की. पुलिस ने उनको बचा लिया. केस तो कुछ किया नहीं. उनको केस नहीं किये लेकिन कम से कम उनको बचा लिया. इन लोगों पर भी कुछ नहीं किया. तो यह बात है. पुलिस के लोग भी इनके विक्टिम हो रहे हैं. कश्मीर में जो आदमी गया मस्जिद के हिफाजत के लिए, मुस्लिम अफसर था, वो भी तो माब लिंचिंग की घटना है. उसको मारा गया. तो ये नफरत की बात जो हिन्दू करे या मुसलमान करे, वो चाहे ‘जय श्री राम’ का नारा लगा कर के करे चाहे ‘या अली’ का नारा करके करे या नारे तक भी नहीं, ‘अल्लाह-हु-अकबर’ का नारा लगाकर…तो हर तरह की घटनाओं के हम खिलाफ हैं, और उसके खिलाफ़ सब लोग हिन्दू, मुस्लिम, सिख, इसाई सब लोग आये हैं. और एक रैली निकाल कर मार्च कर रहे हैं.
लेनिन मौदूदी: सर एक बात है जैसे कि पसमांदा आन्दोलन के ओर से एक बात आती है, ऐसे आन्दोलन जो हैं वो अल्पसंख्यक राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं, उसमे अशराफ जो है उनका ही फायदा होता है. आप पसमांदा नेता हैं, ऐसी रैलियों में अगर आप जाते हैं तो आप भी उसी अल्पसंख्यक राजनीति को बढ़ावा दे रहे हैं जिसके खिलाफ़ आप खड़े हैं.
अली अनवर: आपने नहीं सुना गौर से, हमने क्या कहा कि मेवात में क्या हुआ. 1940 में कौन लोग आये थे. हमने कहा की कोई सूता के लिए सब्सिडी मांगने नहीं आये थे. ये कौन लोग आये थे जिनको समाज में हिकारत की नज़र से देखा जाता है, उन लोगों ने अगुवाई की थी. तो आपका एक चीज़ को पकड़ लेना, यह मुनासिब नहीं है. यह बड़ा थोडा, बड़ा दायरा है और इसको कोई एक पार्टी, कोई भी सियासी पार्टी इस खतरे को अकेले मुकाबला नहीं कर सकती. मैं तो कहता हूँ कि चाहे वो गांधीवादी हो, चाहे अम्बेडकरवादी हो, चाहे मार्क्सवादी हो, चाहे कोई वादी हो, इन सब लोगों को, या मानवतावादी हो, या जिनका संविधान में भरोसा है, या जिनका जम्हूरियत में भारोसा है, उन सब लोगों को मिलकर के इस खतरे के खिलाफ लड़ना है.
लेनिन मौदूदी: सर आप जैसा बता रहे थे की खतरा है, बहुत बड़ा खतरा है, तो अभी JDU शामिल हो गई है भाजपा के साथ, आप उन्ही के प्रत्याशी हैं, तो आपका इस पर क्या TAKE है?
अली अनवर: मैने अपना स्टैंड क्लियर कर दिया है. मैं पहला आदमी हूँ पूरे देश में, कि हमने, अखबारों ने लिखा कि “बागवत का स्वर”…और मैं अपने स्टैंड पर क़ायम हूँ और क़ायम रहूँगा. और पहले भी, पहले से भी मैं इसके लिए लड़ाई लड़ता रहा हूँ.
लेनिन मौदूदी: सर एक सवाल यह भी आता है की अशराफ अपना हित देखते हैं तो पसमांदा अपना हित क्यूँ न देखे ?
अली अनवर: अरे भाई उसी की तो बात हो रही है. अली अनवर आगे किस बात के लिए है? कि जो समाज के कमजोर तबके के लोग हैं उनकी भी कयादत हो. कयादत करने के लिए और देश दुनिया के कहने की जरुरत है? हमने बिगुल बजाया है और यह झंडा उठाया है बगावत का. यह तो अपने आप में…..देखिये कि यह क्या चीज़ है.
लेनिन मौदूदी: धन्यवाद सर.
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प्रतिलिपि: अभीजीत आनंद, असिस्टेंट प्रोफेसर, ग्लोकल लॉ स्कूल, ग्लोकल यूनिवर्सिटी, सहारनपुर
लेनिन मौदूदी लेखक हैं एवं DEMOcracy विडियो चैनल के संचालक हैं. अपने पसमांदा नज़रिये से समाज को देखते-समझते-परखते हैं और प्रलेखन करते हैं.
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