
पंडित बख्शी राम (Pandit Bakhshi Ram)
आदि धर्म आन्दोलन के बाद जालंधर में पंजाब भर के वाल्मीकियों का 1933 में सम्मलेन हुआ. स्वागती कमेटी बनी जिसका प्रधान बाबु गंढू दास को और जनरल सेक्रेटरी पंडित बख्शी राम को बनाया गया. सम्मलेन में विचाराधीन मुद्दे महाऋषि वाल्मीकि का जन्म उत्सव मनाना और दुसरे राम तीरथ वाल्मीकि मंदिर में प्रवेश करना था.
पंडित बख्शी राम जी अपनी पुस्तक, ‘मेरा जीवन संघर्ष’ में लिखते हैं – [डॉ.एस.एल.विर्दी]
राम तीरथ का महंत ख़ुशी गिर वैरागी साधू वाल्मीकि मंदिर में वाल्मीकियों को माथा टेकने से रोकता था, साथ ही सरोवर में स्नान नहीं करने देता था. यह रोक और मनाही छूआछूत के चलते थी.
वाल्मीकि जब मेले को जाते तब उनको पानी में दिक्कत होती. इस मुश्किल को एक अमृतसर की वाल्मीकि समाज की एक विधवा ने दूर कर दिया. उसने पंडितों से ज़मीन खरीद कर वहां छोटा कूआं लगवा दिया और अमृतसर की वाल्मीकि श्रधालुओं ने इस कूएँ के पास मकान बना दिया. इस मकान में बीरम दास संत को बैठा दिया. याद रहे कि यह राम तीरथ के पास नज़दीक के पंडितों की मालिकाना ज़मीन थी.
सम्मलेन ने पंजाब प्रदेश वाल्मिक सभा का चुनाव किया. प्रधान डोगर मल जालंधर और जनरल सेक्रेटरी मुझे बनाया गया. हम सब ने सभा की तरफ से 13 भादों (28 अगस्त) को राम तीरथ जाने का इश्तिहार निकाल दिया. मैंने अपना जत्था (batch) अपने गाँव बंडाला से पैदल शुरू किया. जत्थे में जोधा राम, लक्ष्मी दास, वरियाम चाँद, सीहू के नाम उल्लेखनीय हैं. जत्था जमशेर, धीणा, गढ़ा होते हुए जालंधर पहुंचा. यहाँ बूड़ा भगत, संत प्रेम दास, स्वामी शिवनंदन, पोहले राम संगीतकार, संत राम बस्ती ‘बावा खेल’, प्रधान डोगर मल, चौधरी मुनि लाल, चौधरी पीरु राम घरवाल आदि शामल हुए. जत्थे ने सरायों, करतारपुरा, रामीदी, ढिलवां और रात को ब्यास (जगहों के नाम) में पड़ाव डाला.
वीरू राम रामीदी वाला कुछ सज्जनों को लेकर जत्थे में मिल गया था.
यह जत्था ब्यास से चलकर गुरु का जंडियाला और रात को अमृतसर ‘कटड़ा महां सिंघा’ (जगह के नाम) पहुंचा. यहाँ सुंदर दास और उसके साथी शामिल हुए. अगली सुबह जत्था पैदल चलके राम तीरथ पहुँच गया, उधर लायलपुर (अब पाकिस्तान में, आजकल नाम फैसलाबाद) से तोता सिंह जत्था लेकर आया, इलाके की संगतें धूमधाम से वहां पहुँच गईं. यह गिनती हज़ारों तक जा पहुंची.
ख़ुशी गिर की दरख्वास्त पर पुलिस फ़ोर्स भी पहुँच गई. उसने राम तीरथ के इर्द गिर्द घिराव कर रखा था ताकि कोई वाल्मीकि मंदिर में दाखिल न हो सके. हमने पुलिस का घेरा तोड़कर मंदिर में दाखिल होने का एलान कर दिया. जब संगतों (श्रधालुओं) ने मार्च किया तो पुलिस ने घेरे को तोड़ना चाहा लेकिन पुलिस हज़ारों लोगों को एकसाथ देखकर घबरा गई. थानेदार ठथन लाल की ओर से हुकुम हुआ कि आपके नुमाईन्दे हमारे साथ बात करें. संगतों की तरफ से मुझे और तोता सिंह को भेजा गया. राम तीरथ की सराए के कमरे में बातचीत हुई. वहां जैलदार पाल सिंह भी था. उसने हमसे पूछा कि आप यहाँ कैसे आये हो? उत्तर दिया कि हम अपने गुरु के दरबार में माथा टेकने आये हैं. उन्होंने फिर पूछा, आपका इरादा मंदिर पर कब्ज़ा करने का तो नहीं? हमने कहा बिलकुल नहीं. उन्होंने ख़ुशी गिर को बुलाया और मंदिर का दरवाज़ा खुलवाकर चाबियाँ हमारे हवाले कर दीं और महंत को ताड़ कर कहा- खबरदार कोई हरकत की तो. आराम से अपने कमरे जाकर बैठ!
अमृतसर लाहौरी गेट वाल्मीकि मंदिर में शाम को दीवान सजा (लगा). जिस में अमृतसर के वाल्मीकि शामिल हुए. इस दीवान में राम तीरथ मेले पर कांफ्रेंस करने का फैसला सुनाया गया. स्वागती कमेटी बनाई गई. प्रधान तोता सिंह और जनरल सेक्रेटरी दास को और खजांची चौधरी करम चंद अमृतसर को बनाया गया. स्वागती कमेटी का दफ्तर वाल्मीकि मंदिर लाहौरी गेट खोल दिया और तोता सिंह को यहाँ रहने के लिए कहा गया. कांफ्रेंस के इश्तिहार छाप कर बाँटने शुरू कर दिए.
राम तीरथ मंदिर में प्रवेश करके हम चले तो गए लेकिन ख़ुशी गिर डर गया. उसने अपनी हिफाज़त के लिए पालतू गुंडे रखने शुरू कर दिए. वीरम दास को वहां से भगा दिया गया. मकान ढहा दिया. कूएं को भर दिया गया. यह वही स्थान है, जहाँ अब बाबा ज्ञान नाथ जी रहते हैं.
संत प्रेम दास और दीना नाथ दोनों कांफ्रेंस के इश्तिहार लेकर राम तीरथ के इलाके में गए. जब वह साथ के गाँव गए तो वहां गाँव में मवेशियों का टोना (शायद जादू/टोना की कोई रसम –अनुवादक) था. गाँव के लोग दरवाजे पर बैठे थे. वहीँ ख़ुशी गिर भी उनके पास बैठा था. संत और दीना नाथ, दोनों, जब दरवाज़े से निकलने लगे तब एक व्यक्ति ने इश्तिहार उनके हाथ से छीन कर पढ़ लिया. ख़ुशी गिर इस इश्तिहार को देख लाल पीला हो गया. उसने दोनों को वहीँ बिठा लिया. इश्तिहार को तीली लगा के फूंक दिया. शाम को संत और दीना नाथ को अपने डेरे में ले गए. बदमाशों से उसने दोनों को पिटवा के अधमरा कर दिया. फिर उन्हें दूर खेतों में फेंक आये. वहाँ तब दूर दूर तक बयाबाँ होता था.
प्रभात काल संत प्रेम दास धीरे धीरे चलके अमृतसर स्वागत कमेटी के दफ्तर पहुंचा. उन्होंने ख़ुशी गिर की करतूत के बारे में बताया. उनको अस्पताल दाखिल करवाया गया. अगले दिन पिटाई का मारा दीना नाथ दम तोड़ गया. उसके मरने की खबर शहर के वाल्मीकियों में बिजली की तरह फ़ैल गई. उसकी लाश लाई गई. उसके दाह संस्कार पर वाल्मीकि बड़ी संख्या में पहुंचे. वाल्मीकियों में गुस्से की लहर दौड़ गई, जिसने सत्यग्रह का रूप ले लिया. बात क्या मोर्चा लग गया. मुझे जालंधर से मोर्चे के बारे में तार मिली. मैं झटपट जालंधर आ गया और बाबु मंगू राम को लेकर अमृतसर पहुंचा. मोर्चा ठीक चल रहा था. मंगू राम वापिस आ गए और मैं वहीँ रुक गया.
जब मैंने देखा कि मोर्चे का घेरा अमृतसर, बटाला, तरनतारन तक ही है तब मैंने अपनी गिरफ़्तारी देने का मन बनाया. मैंने अपना नाम सत्याग्रह दफ्तर में लिखवा दिया. उन्होंने छ्टे जत्थे का जत्थेदार बना कर सत्याग्रह के लिए मुझे तयार कर दिया. शाम को फूलों के हारों से हमारे गले भर दिए गए और कर्मो डेहड़ी (जगह का नाम) की औरतों ने हमारे ऊपर फूलों और पैसों की बारिश की.
हमारा जत्था रात को अमृतसर के जरा बाहर स्थित एक बस्ती में रहा. हमने सलाह की कि गिरफ़्तारी राम तीरथ मंदिर में माथा टेकने के बाद ही देनी है. प्रातःकाल उठ कर अँधेरे-अँधेरे ही हम गाँवों के बीच से पैदल चलकर दिन चढ़ते ही राम तीरथ चले गए. वाल्मीकि मंदिर का दरवाज़ा खुला था. ख़ुशी गिर खड़ा था. दोनों तरफ दरवाजे का रास्ता छोड़कर पुलिस खड़ी थी. हम उनके बीच आगे-पीछे लग कर पंक्ति बना खड़े हो गए. सबसे आगे मैं था.
जब मैं मंदिर में दाखिल होने लगा तब ख़ुशी गिर ने मुझे पीछे हटा दिया. पंक्ति से निकल कर एक सत्यग्रही आगे आया. उसने ख़ुशी गिर को गले से पकड़ के पीछे हटाया. बस फिर क्या था? हमें गिरफ्तार कर लिया गया. हमारे ऊपर ख़ुशी गिर को जान से मारने का दोष भी लगा दिया.
पुलिस ने हमें अमृतसर पैदल चलने के लिए कहा. हम लोगों ने पैदल चलने से मना कर दिया. उन्होंने हमें डराया धमाया और खींच कर चलाने की कोशिश की. लेकिन हम ज़मीन पर लेट गए. आखिर हमें बस में बिठा कर ले गए. अजीज़दीन मजिस्ट्रेट के सामने पेश करके हमें अमृतसर की जेल में डाल दिया. वहां हमारा वास्ता दरोगा मिर्जे से पड़ा. वह बहुत रिष्ट-पुष्ट था और हम लोगों पर टूट टूट पड़ता था. वह हमें नारेबाजी करने से मना करता था. वहां लड़कों ने गीत बना लिए –
दो रोटियां और एक कड़छी दाल की और मांगें तो पुलिस हमें मारती
अगले दिन अख़बारों में सुर्खी लग गई- ‘जत्थेदार पंडित बख्शी राम का पैदल चलने से इन्कार’. यह खबर पढ़कर पंजाब के वाल्मीकियों को गुस्सा चढ़ गया. कई जगहों पर मीटिंगें और जलसे किये गए. जुलूस निकाले गए. हड़ताल करने के एलान हो गए. सरदार मोदन सिंह सत्यग्रही जत्था लेकर शिमले से चल पड़ा. चौधरी मुनि लाल जालंधर से जत्था लेकर चल पड़ा. सारा पंजाब हरकत में आ गया. बयान और एलान अख़बारों में छपने लग गए. हिन्दू अखबारें मिलाप, प्रताप और वीर भारत इस मोर्चे के खिलाफ संपादकी लिखने लग गए. मोर्चा और भी ज्वलित हो उठा. पंडित भगत राम ने शिमले से भजनावली छाप दी. जिसमे लिखा था- कौम का नेता बख्शी राम गिरफ्तार हो गया है. यह हालत देखकर भोलाराम एम्.एल.ए. श्री चौधरी बंसी लाल, मोहन लाल जनरल सेक्रेटरी अछूत उधार मंडल, लाहौर, डॉ. संत राम अरोड़ा प्रधान हरिजन सेवक संघ, अमृतसर आदि ने इस मामले में बीच में पड़ते हुए मोर्चा कमेटी के महंत ख़ुशी गिर से समझौता करवा दिया. समझौते की शर्तें यह थीं. एक यह कि, वाल्मीकि मंदिर से किसी भी वाल्मीकि को माथा टेकने से रोका नहीं जायेगा. दुसरे, सरोवर में इशनान करने की इज़ाज़त होगी, तीसरे, वीरम दास वाला मकान बनाके दिया जायेगा. और चौथा, सारे सत्यग्रही रिहा किये जायेंगे.
यह वाल्मीकियों का पहला एतिहासिक मोर्चा था जो वाल्मीकि जाति ने बड़ी शान के साथ लड़कर जीत हांसिल की.
अभी भी वह एतिहासिक वाल्मीकि मंदिर जो बादशाह जहाँगीर ने अपनी बेगम के साथ यहाँ आकर बनवाया था, हिन्दू महंतों के उसी तरह कब्ज़े में है जहाँ सारे देश के यात्री मेले में आकर मंदिर में माथा टेकते और बाबा के धूने की राख पुजारी से लेकर जाते हैं. इस सत्याग्रह का नतीजा आगे चल कर 1939 में भंगी लहर की शक्ल में निकला, जिसने सारे पंजाब के सफाई मजदूरों को अपने हक़ की मांगें मनवाने के संघर्ष में डाल दिया, क्यूंकि वह राम तीरथ का मोर्चा लड़कर निडर हो गए और मोर्चाबंदी की जांच सीख गए. [एस.एल.विर्दी]
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पंडित बख्शी राम वाल्मीकि समाज में पैदा हुए एक लेखक और जाति के खिलाफ एक सजग कार्यकर्ता थे. 1931 में उन्होंने खुद को आदि धर्म मंडल (बाबु मंगू राम जी के द्वारा चलाई गई लहर) समर्पित कर दिया. उपरोक्त आन्दोलन में वह एक बेहद सक्रिय नेता थे. वह आज़ाद फ़ौज में भर्ती हुए और रंगून गए. अंग्रेजों द्वारा पकड़े गए और एक साल जेल काटी. 1949 में वह पंजाब परदेस वाल्मीकि सभा के प्रधान बने. 1968 आई फिल्म ‘लवकुश’ के खिलाफ प्रदर्शन किया, फिल्म लगने नहीं दी. वजह थी वाल्मीकि समाज के बारे में गलत टिपण्णी. उन्होंने चार किताबें लिखीं. उपरोक्त लेख उनकी किताब ‘मेरा जीवन संघर्ष’ (पूंजाबी में, पन्ना 70 से 76 तक) से लिया है.
डॉ.एस.एल.विर्दी वकील हैं एवं पंजाब के जाने माने साहित्यकार एवं लेखक हैं. वे पंजाब में चली दलित पैंथर मूवमेंट के फाउंडर मेम्बर रहे हैं.
अनुवाद : गुरिंदर आज़ाद