सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)
अमरीका में नस्लीय असमानता के खिलाफ लम्बा संघर्ष हुआ, जिसमें कई महान नेताओं ने अपनी अहम भूमिका निभाई. इन सब में मैलकम X का नाम एक अलग ही पहचान रखता है.
यूरोपीय मूल के लोगों ने 15वी शताब्दी के अंत में दुनिया के दुसरे महाद्वीपों में जाकर कब्ज़ा करना शुरू किया. अमरीका में उनके द्वारा बड़े पैमाने पर वहाँ के मूलनिवासियों का नरसंहार किया गया. दुनिया के इस बड़े अनछुऐ क्षेत्र में खेती लायक बहुत ज़मीन तो उपलब्ध थी, लेकिन मज़दूर नहीं थे. उन्होंने अफ़्रीकी मूल के लोगों को उनके देशों से अपहरण कर ग़ुलामों के रूप में अमरीका लाना शुरू किया. यहीं से ज़ुल्म-ज़्यादती की एक ऐसी दास्तान शुरू हुई, जो भारत की जाति व्यवस्था जैसी ही भयानक और दिल दहला देने वाली थी. 1861 में इसे खत्म करने को लेकर उत्तरी और दक्षिणी अमेरिकी राज्यों के बीच गृहयुद्ध हुआ. उत्तरी खेमे की जीत के बाद क़ानूनी तौर पर तो इसे खत्म किया गया, लेकिन ज़मीनी स्तर पर यह कायम रही.
इसके पूरी तरह खात्मे के लिए अफ़्रीकी मूल के लोगों ने खुद लगाम संभाली. फ्रेडेरिक डगलस, बुकर टी वाशिंगटन, मार्कस गार्वी जैसे नेताओं ने इसकी मज़बूत बुनियाद रखी. आगे जाकर इसमें एक ऐसा नाम जुड़ा, जिसकी आक्रामकता ने इसकी पूरी दिशा ही बदल डाली.
मैलकम X नाम के इस मशहूर नेता का जन्म 19 मई, 1925 को अमेरिका के नेब्रास्का प्रान्त के ओमहा शहर में हुआ था. उनके पिता का नाम अर्ल लिटिल(Earl Little) था, जो कि ईसाई पादरी होने के अलावा मार्कस गार्वी की Universal Negro Improvement Association(UNIA) के प्रचारक भी थे. इन गतिविधियों की वजह से जातिवादी यूरोपीय लोगों द्वारा उन पर हमले किये जाने लगे. तंग आकर वो पूरे परिवार के साथ, पहले कुछ समय के लिए मिल्वौकी(Milwaukee) फिर लैंसिंग, मिशिगन प्रान्त में रहने लगे.
मैलकम के मुताबिक, उनके पिता सभी भाई-बहनों में सिर्फ उसे ही अपने साथ UNIA के कार्यक्रमों में ले जाते थे. उनकी सक्रियता की वजह से यहाँ भी नस्लवादी लोगों ने उन्हें शांति से नहीं जीने दिया. सन 1931 के किसी दिन पिता की लाश ट्राम की पटरियों पर मिली. इस बात का शक था कि उनकी हत्या के बाद उनके शरीर को पटरियों पर डाला गया.
पुरे परिवार की जिम्मेवारी उनकी माँ, लूइस लिटिल(Louise Little) पर आ पड़ी; पति को खोने के सदमे ने उन्हें मानसिक तौर पर जकड़ लिया. आखिरकार उन्हें पागलखाने में रखा गया.
मैलकम और उनके सभी भाई-बहनों को अलग-अलग परिवारों के साथ रखने का बंदोबस्त हुआ. इन मुश्किल हालातों में भी मैलकम ने अपनी स्कूली पढ़ाई जारी रखी. स्कूल में वो सबसे अव्वल बच्चों में से एक थे, जहाँ लगभग सभी यूरोपीय गोरों के बच्चे ही पढ़ते थे. यहीं एक ऐसी घटना घटी, जिसने उनकी ज़िन्दगी को नया मोड़ दिया. जब वो 7वीं क्लास में अव्वल नंबरों से पास हुए, तो उनके एक यूरोपीय गोरे शिक्षक (उस समय अश्वेत लोगों में शिक्षा न के बराबर थी) ने उनसे भविष्य के बारे में पूछा कि बड़े हो कर क्या बनना चाहते हो? मैलकम ने एक वकील बनने की इच्छा जाहिर की. यह सुनते ही शिक्षक ने कहा कि तुम एक अच्छे विद्यार्थी हो, लेकिन यह मत भूलों कि तुम एक काले अफ़्रीकी हो और इस देश में यूरोपीय गोरे तुम्हें कभी यह मौका नहीं देंगे. तुम हाथ के कामों में भी अच्छे हो, तुम्हें एक बढ़ई(Carpenter) बनने के बारे में सोचना चाहिए.
खुद मैलकम के मुताबिक इस घटना ने उनका पूरा मानसिक संतुलन हिला कर रख दिया. उन्हें पहली बार इस बात का अहसास हुआ कि होनहार होना, उस देश में कोई मायने नहीं रखता, जहाँ पर हुकूमत करने वाले यूरोपीय लोग उनसे नफरत करते हों. उन्होंने जैसे-तैसे करके 8वीं पास की, लेकिन अब उनका मन पढ़ाई से पूरी तरह उठ चुका था.
उनकी सबसे बड़ी बहन, एला(Ella) बोस्टन शहर में रहती थी. मैलकम ने उन्हें खत लिख कर वहां बसने की इच्छा जताई और वहां चले गए. कुछ साल छोटे-मोटे कामों को करने के बाद, मैलकम को बोस्टन से न्यूयॉर्क जाने वाली ट्रेन में नौकरी मिली. 1942 में 17 साल की उम्र में वो न्यूयॉर्क के अश्वेत लोगों के इलाके “हार्लेम” में जा बसे, जो उस समय पूरी दुनिया में अफ़्रीकी लोगों की सबसे बड़ी बस्ती थी. यहाँ उन्होंने सभी तरह के मवालियों वाले काम किये और कुछ विवादों में पड़ने की वजह से वापिस बोस्टन लौट गए.
न्यूयॉर्क में गैर-क़ानूनी कामों में लगे रहने के बाद बोस्टन में भी वो इससे पीछा नहीं छुड़ा पाए. एक घड़ी चोरी करने के ज़ुल्म में फरवरी 1946 को अदालत ने उन्हें दस साल की सज़ा सुनाई.
यहीं जेल में फिर एक ऐसी घटना हुई, जिससे मैलकम के जीवन ने दुबारा करवट ली. एक साल जेल में काटने के बाद, उनकी मुलाकात एक और अफ़्रीकी कैदी “बिम्बी” से हुई, जो अपने अच्छे विचारों के लिए जाना जाता था. उसने मैलकम को बताया कि तुम एक समझदार आदमी हो और तुम्हें इसका सही इस्तेमाल करना चाहिए. उसने जेल में बनी लाइब्रेरी में जाकर किताबें पढ़ने की सलाह दी और यहीं से मैलकम का किताबों से एक गहरा रिश्ता कायम हुआ. खुद उनके मुताबिक, उन्होंने अपनी शिक्षा किताबों और लाइब्रेरी से ही हासिल की.
1948 में उनके भाई फिल्बर्ट ने उन्हें जेल में खत लिखा कि वो “Nation of Islam” (इस्लाम का देश) नामक संस्था, जिसका नेतृत्व एलाइजा मोहम्मद कर रहे थे- से जुड़ चुका है. जल्द ही उनके परिवार के और लोग भी उससे जुड़े. उन्हें संस्था के बारे में बताया गया कि वो अमरीका में ग़ुलाम बना कर रखे गए अफ़्रीकी लोगों की आज़ादी की लड़ाई लड़ रहा है.
प्रभावित होकर मैलकम ने जेल से ही एलाइजा मोहम्मद से संवाद कायम किया. नस्लीय भेदभाव के खिलाफ चलाये जा रहे इस आंदोलन ने मैलकम को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने खुद भी इस लड़ाई में कूद जाने का मन बनाया. जेल की लाइब्रेरी में एक अमीर व्यक्ति ने अपनी सभी किताबें दान कर दी थी. उन्होंने अपने खाली समय का पूरा फ़ायदा उठाया और सैकड़ों किताबे पढ़ डाली, जो उन्हें इस संघर्ष में मदद कर सके.
उन्हें अपने लोगों की दयनीय अवस्था के बारे में मालूम चला और यह भी कि इससे कैसे छुटकारा पाया जा सकता है. समझ में आये पैनेपन से अब लड़ाई के रास्ते दिखने लगे. खुद मार्कस गार्वी और इलाइजा मोहम्मद जैसे नेताओं का मानना था कि अफ़्रीकी लोगों को अमरीका छोड़ कर वापिस अपने महाद्वीप लौट जाना चाहिए. एक देश में दो अलग नस्लों का एक साथ खुशहाल रहना, वो भी जब उनमें इस तरह की कड़वाहट पैदा हो चुकी हो, लगभग नामुमकिन है. दूसरा रास्ता यह भी था कि अमरीका के एक हिस्से को अलग देश बनाया जाये ताकि अफ़्रीकी लोग खुद वहां पर अपना शासन स्थापित कर सकें. मैलकम के “Revolution”(क्रांति) पर भी बड़े दो-टूक विचार थे कि क्रांति का मतलब किसी व्यवस्था में शामिल होना नहीं बल्कि पुरानी व्यवस्था को उखाड़ कर एक नई व्यवस्था बनाना है.
6 साल से कुछ ज़्यादा समय जेल में काटने के बाद मैलकम 1952 को रिहा हुए. बड़ी बहन एला(Ella) की सलाह पर वो वापस मिशिगन प्रान्त लौट आये, जहां उनके परिवार के ज़्यादातर लोग अब भी रह रहे थे. इसी साल शिकागो में एक कार्यक्रम में उनकी मुलाकात “Nation of Islam” के संस्थापक इलाइजा मोहम्मद से हुई. उन्हें अपने नाम के पीछे X(एक्स, जिसका अंग्रेजी में मतलब भूतपूर्व है) नाम दिया गया. इस संस्था का मानना था कि क्योंकि अश्वेत लोगों के गोत्र उनके अपने न हो कर उन यूरोपीय लोगों के थे, जो उनके पूर्वजों को ग़ुलाम के तौर पर खरीदते थे. इसलिए वो अब अपने आप को उस नाम के साथ नहीं जोड़ना चाहते, जो उनकी ग़ुलामी का प्रतीक हो.
मैलकम ने डेट्रॉइट में “Nation of Islam” के बने धार्मिक स्थल, जिसे “टेम्पल” कहा जाता था – की गतिविधियों में भाग लेना शुरू किया. जल्द ही उनकी कड़ी मेहनत से उसकी सदस्य्ता बढ़ने लगी. इसे देखते हुए 1953 में उन्हें डेट्रॉइट टेम्पल नंबर एक का सहायक मंत्री बनाया गया. मार्च, 1954 में मैलकम फ़िलेडैल्फ़िया, टेम्पल के मंत्री बने और इसी साल वो वापिस अपने पसंदीदा शहर न्यूयॉर्क में मंत्री के तौर पर नियुक्त हुए. इसी संस्था की एक कार्यकर्ता बेट्टी X के साथ जनवरी, 1958 को उनका विवाह हुआ.
1953 से लेकर 1963 तक मैलकम एक्स की कड़ी मेहनत, करिश्माई व्यक्तित्व, आक्रामक तेवर और असीम ज्ञान के बदौलत “Nation of Islam” न सिर्फ अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया की सुर्ख़ियों में आ गया. देखते ही देखते उनकी गिनती अफ़्रीकी मूल के सबसे बड़े अमरीकी नेताओं में होनी लगी. देश के सबसे बड़े विश्विद्यालयों में उन्हें अपने विचार रखने के लिए बुलाया जाने लगा. सभी बड़े अख़बारों और TV चैनलों में उनके इंटरव्यू होने लगे. उन्हें बार-बार पूछा जाता कि क्या वो हिंसा को बढ़ावा दे रहे हैं? जवाब में वो साफ कहते कि कोई भी विचारधारा जो आपके ऊपर होने वाले हिंसक हमले का जवाब शांति से देना चाहती है, मैं उसे “Criminal Philosophy” (आपराधिक विचारधारा) मानता हूँ. मैलकम का मानना था कि अमेरिका में रह रहे अफ़्रीकी लोगों को मानसिक, आध्यात्मिक, आर्थिक और राजनीतिक तौर से ग़ुलाम बनाया गया है और इसलिए हमें इन सभी मोर्चो पर उनको आज़ाद करवाना होगा. सिर्फ दस साल के इस छोटे से समय में अमरीका ने अफ़्रीकी लोगों का एक ताक़तवर आंदोलन खड़ा होते देखा.
कम ही लोगों को इस बात का पता है वो बॉक्सिंग के विश्व चैंपियन “मोहम्मद अली” के धार्मिक गुरु भी थे.
लेकिन इसी सबके बीच 1963 में “Nation of Islam” में चल रहे कुछ अंदरूनी विवादों के कारण, उन्हें इस संस्था से बाहर किया गया. 1964 को वो मक्का में हज करने गए और 21 मई को बहुत सारे अफ़्रीकी और अरबी देशों का दौरा कर; जहाँ उन्हें भरपूर सम्मान मिला, वापिस अमरीका लौट आये. उन्होंने अपने आप को “Nation of Islam” से पूरी तरह अलग करते हुए अफ़्रीकी मूल के लोगों को नस्ल के आधार पर एकजुट करने के लिए Organisation for Afro-American Unity(अफ़्रीकी-अमरीकी एकता संघ) की स्थापना की.
उन्हें जान से मार देने की धमकियाँ मिलने लगी और उनके घर पर रात के समय बमों से पुरे परिवार पर जानलेवा हमला भी किया गया. 21 फरवरी 1965 को न्यूयॉर्क के मैनहैटन स्थित औडुबोन बॉलरूम(Audubon Ballroom) के हॉल में अपना भाषण शुरू करते ही हमलावरों ने उन पर गोलियां चलाई और उन्हें हस्पताल में मृत घोषित कर दिया गया.
इसी के साथ अमरीका में अफ़्रीकी मूल के लोगों की आज़ादी के संघर्ष को भारी धक्का लगा. 400 सालों से भी ज़्यादा समय तक ग़ुलामी झेलने वाला यह समाज एक असाधारण नेता खो बैठा, जिससे उसने अपनी आज़ादी की सारी उम्मीदें लगा रखी थी. एक ऐसा नेता जो कभी भी अपने व्यकितगत स्वार्थ को समाज के ऊपर नहीं रख सकता था. हालांकि मैलकम आज हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनके विचारों ने जितना अफ़्रीकी-अमरीकी लोगों को प्रभावित किया है शायद ही किसी और नेता ने किया हो.
उनके जन्मदिन 19 मई को सिर्फ अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में जहाँ भी लोग गैर-बराबरी और असमानता के खिलाफ संघर्ष कर रहे हैं – बड़े ही धूमधाम से मनाते हैं. उनकी आत्मकथा(Autobiography) दुनिया में सबसे ज़्यादा पढ़ी जाने वाली किताबों में से एक है, जिसे टाइम मैगज़ीन ने अब तक की दस सबसे महत्वपूर्ण सच्ची कहानी पर आधारित किताबों की सूचि में शामिल किया है. इसी पर आधारित 1992 में हॉलीवुड निर्देशक स्पाइक ली(Spike Lee) की “Malcolm X” नाम की सुपरहिट फिल्म भी बनी, जिसमें मशहूर अभिनेता डेन्ज़ेल वाशिंगटन ने मैलकम की भमिका निभाई. उन्हें ऑस्कर अवार्ड के लिए भी चुना गया.
मैलकम के बहुत से आक्रामक विचारों में से एक बहुत ही चर्चित विचार था कि “शांत रहो, मिलनसार रहो, कानून को मानो, सबका सम्मान करो; लेकिन अगर कोई तुम पर हमला करता है तो उसे कब्रिस्तान पहुँचा दो.”
19 मई 2018 को मैलकम X के 93वें जन्मदिन पर पूरी दुनिया में भेदभाव और असमानता के खिलाफ जंग लड़ने वालों को बहुत-बहुत बधाई.
सतविंदर मदारा पेशे से एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हैं। वह साहेब कांशी राम के भाषणों को ऑनलाइन एक जगह संग्रहित करने का ज़रूरी काम कर रहे हैं एवं बहुजन आंदोलन में विशेष रुचि रखते हैं।
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