
कुणाल रामटेके (Kunal Ramteke)
दलितों, आदिवासियों के खिलाफ बढ़ते जुर्म, आरक्षण के खिलाफ बनती नीतियाँ और संविधान के खिलाफ ज़हर उगलने की प्रिक्रिया इस मौजूदा मनुवादी सरकार में भयानक तेज़ी लिए हुए है. हालही में यूथ इक्वलिटी फाउंडेशन और आरक्षण विरोधी पार्टी द्वारा एस.सी./एस.टी. एक्ट में एस.एस/एस.टी समुदायों के हक में संशोधन के खिलाफ और जंतर मंतर पर संविधान की प्रति जलाने और बाबा साहेब के खिलाफ अभद्र भाषा इस्तेमाल करने की घटना इसी कड़ी का हिस्सा है. इस घटना को लेकर अखिल भारतीय भीम सेना के राष्ट्रीय इंचार्ज अनिल तंवर ने गए शनिवार को पार्लियामेंट स्ट्रीट पुलिस स्टेशन में उपरोक्त समूहों के सदस्यों के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई. कुछ लोगों की गिरफ़्तारी भी हुई है. लेकिन आज़ादी के सात दशकों बाद भारत के लोगों को गरिमा और अधिकार सुनिश्चित करने वाले संविधान के खिलाफ इन युवाओं में पलते ज़हर की नाली जिस विचारधारा से जुड़ती है उसे समझना भले ही मुश्किल न हो, लेकिन इससे उभरते खतरों और आगे के माहौल का सही अंदाज़ा लगाना सबके लिए ज़रूरी है. इसी ज़रुरत से सभी बहुजनों के साझे खतरे जुड़े हुए हैं.
यह घटना देश के किसी छूटे हुए कोने में नहीं बल्की राजधानी दिल्ली के ‘संसद मार्ग’ पर पुलिस की मौजुदगी मे हुई. इसी बीच इस संविधान विरोधी तबके ने देश के ‘एस. सी./ एस. टी.’ समुदाय के विरोध मे भी नारे लगाये. ऑगस्ट क्रांती दिवस के अवसर पर तथाकथित आज़ाद सेना द्वारा आरक्षण के विरोध में उग्रता प्रतीकात्मक
भी है जिसका अर्थ यह है कि उन्हें ऐसी आज़ादी मंज़ूर नहीं जो समता-समानता की बात करती है.
भारतीय जनता को स्वतंत्रता, समता, न्याय और बंधुता के उपयोजन का आश्वासन देने वाले सर्वोच्च ग्रंथ संविधान हमारे लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव है. सभी प्रकार की विषमता मूलक रचना नष्ट कर संविधान के माध्यम से डॉ. आंबेडकर जैसे महापुरुषों ने नव समाज के निर्माण हेतू प्रयास किया था. हमारे संविधान ने हज़ारों सालों से चलती विषमता को नष्ट कर ‘एकमय समाज’ के निर्माण का मार्ग प्रशस्त किया. मात्र, लोकतंत्र को नकार देने वाले और जाति, धर्म, लिंगभेद आधारित समाज की रचना को लागू कराने के अत्त्याग्रही सनातनवादी मानसिकता के वाहक तत्व संविधान को ही जलाकर देश मे दहशत का वातावरण निर्माण करना चाहते है.
वहीँ इस घटना ने समूची लोकतांत्रिक व्यवस्था के सामने बृहद प्रश्न चिन्ह खड़ा कर दिया है. क्या इस तबके की यह कृती केवल ‘भारतीय संविधान’ नामक कागज़ी दस्तऐवज जलाने भर ही सीमित है? क्या आंबेडकर मुर्दाबाद के नारे केवल एक व्यक्ती विरोध हैं? क्या एस.सी./ एस.टी. समुदाय के विरोध मे लगे नारे उस तबके की भावनात्मक कृती भर थी? क्या यह सारा राष्ट्रद्रोही क्रियाकलाप केवल जन समूह की तात्कालिक क्रोध कृती थी? इस तरह के कई प्रश्न आज हमारे दिल मे उठ रहे है.
इसी बीच, महाराष्ट्र के पूना और नालासोपारा मे तीन हिंदुत्ववादी दहशदगर्दो को बीस जिंदा बम और अन्य जानलेवा हथियारों के साथ गिरफ्तार किया गया. हिंदू राष्ट्र की घोषणा इस देश मे निश्चित ही नई नहीं है. लेकिन, इस घटना ने देश की व्यवस्था के विरोध में अन्य बडी साजिशें चल रही होने की आशंका को हकीकत होने के तथ्य को भी मजबूती प्रदान की है.
क्या संविधान जलाया जाना, आधुनिक समतामुलक समाज के जनक डॉ. आंबेडकर के विरोध मे नारे प्रदर्शन, एस. सी./ एस. टी. समुदाय के विरोध में नारेबाजी और तीन हिंदुत्ववादी दहशदगर्दों की गिरफ्तारी इन सभी घटनाओं के बीच कोई समान श्रंखला है? निश्चित ही बदलते दौर में भी देश के हमेशा से दबाये गये बहुसंख्य दलित, पिछड़े, आदिवासी, अल्पसंख्यक समाज को नकार कर मानवतावाद को अमान्य करने वाले तथाकथित धर्माधारीत राष्ट्र निर्माण की दिशा मे उठाया गया यह एक कदम है. जिसके माध्यम से देश का माहौल और खराब कर दहशत का वातावरण निर्माण करना है. बाबासाहब ने “अगर एक व्यक्ती किसी व्यक्ती के खिलाफ अपराध करता है, तो राज्य एवं न्यायपालिका उसे दंडित कर सकती है, लेकिन एक समाज ही समाज के विरोध मे अपराध करता है तो क्या किया जाए?” यह प्रश्न उपस्थित किया था. आज कानून एवं सुव्यवस्था के राज्य द्वारा दिये गये आश्वासन के बीच मे भी यह सवाल प्रासंगिक लगता है. इसी प्रश्न का उत्तर हमें विवेकाधिष्टीत समाज के रूप मे खोजना होगा. और निश्चित ही हमारी समझ, विवेक को बढ़ाना होगा.
और, रही बात महापुरुषों के विरोध की, तो वह किसीं जाति बिरादरी के नहीं होते. वे सभी के हैं. माफ करें लेकिन आप सूरज पर थूक नहीं सकते. हो सकता है ये मनुवादी लोग महामानव के खिलाफ ज़हर उगलें, उनके पुतले भी गिराएं लेकिन आप उनके विचारों को नष्ट करना इनके बस का कतई नहीं है. बहुजन आन्दोलन ने अपने दम पर अपने महापुरुषों को स्थापित करने का आन्दोलन चलाया है. वे अपने आदर्शों से लगातार ऊर्जा ले रहे हैं. इस आन्दोलन ने लाखों करोड़ों की तादात में आन्दोलनकारियों को जन्म दिया है. लेकिन यहाँ ये बात हम सभी बहुजनों के लिए आवश्यक है कि वह हरहाल में विरोध के स्वर को बुलंद करें. जहाँ पर भी वे हों अपना विरोध दर्ज कराएं. इन समूहों के पीछे लोगों या राजनितिक पार्टियों को पहचान कर, इनके खिलाफ एक होकर, हमारे विरोधियों का जवाब दें. जय भीम.
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कुणाल रामटेके, दलित और आदिवास अध्ययन एवं कृति विभाग, टाटा सामजिक विज्ञानं संस्थान (मुंबई) में विद्द्यार्थी हैं. उनसे ramtekekunal91@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.