Suchit Kumar Yadav
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सुचित कुमार यादव (Suchit Kumar Yadav)

Suchit Kumar Yadavपिछले कुछ दिनों से उत्तर प्रदेश में कई महत्त्वपूर्ण घटनाएँ घटित हो रही हैं. मसलन मिर्जापुर शहर में ईद के त्यौहार के दौरान दो दिनों तक लगातार साम्प्रदायिक टकराव हुआ. 26 नवम्बर (2018) को अयोध्या में राम मंदिर निर्माण हेतु धर्म संसद बुलाया गया. तीन दिसम्बर को बुलन्द शहर में हिंसक भीड़ ने एक पुलिस अधिकारी समेत दो लोगों की हत्या कर दिया. सवाल उठता है कि आखिर इन घटनाओं को किस तरह लिया जाए. वृहद परिदृश्य में इसका क्या प्रभाव हो सकता है जिसे भीड़ नाम दिया जा रहा है, इस भीड़ की सच्चाई क्या है, सचमुच यह एक मामूली भीड़ है अथवा भीड़ की आड़ में कोई प्रशिक्षित समूह.

एक रिसर्च1 के सिलसिले में पिछले कुछ दिनों से मैं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिले में हूँ. मुझे पता चला कि 20 नवम्बर को विश्व हिन्दू परिषद द्वारा एक शोभायात्रा निकाला जा रहा है. कौतुहल वश मैं शहर के मुख्य भाग ‘मुंगेरी बाजार’ जा पहुंचा. इस बाज़ार में अधिकतर घर व दुकानें मुस्लिम समुदाय के लोगों की हैं. चूँकि अगले ही दिन यानि 21 नवम्बर को ईद का त्योहार था अतः बाजार लाइटों व झालरों से सजा हुआ था. विश्व हिन्दू परिषद की यात्रा में डीजे साउण्ड सिस्टम से सजी एक वाहन के पीछे झंडा, डंडा लिए भगवा वस्त्र में कुछ कार्यकर्ता जय श्रीराम के नारे लगाते हुए चल रहे थे.

कार्यकर्ताओं में उग्रता देख मेरे मन में कुछ डरावने से ख्याल आ रहे थे. मसलन क्या होगा जब ये भीड़ बेकाबु हो जाए अथवा कोई आकस्मिक घटना जिससे इन्हें टकराव का बहाना मिल जाए! अचानक से मेरा डर मेरे आँखों के सामने ही वास्तविक रूप लेने लगा. देखते-ही-देखते, बचाओ, बचाओ, मारो, मारो, इसको मारो, इसको जला दो, अरे ये तो उस मुल्ले की दुकान है. आग लगा दो, इसे छोड़ दो अपना आदमी है, जय श्री राम, पाकिस्तान मुर्दाबाद जैसे नारों, आग-धुँओ, पुलिस की हूँ-हूँ करती सायरन से पूरा बाजार गूँज गया.

सब कुछ इतना तीव्र गति से व्यवस्थित ढंग से हो रहा था कि अपने आपको बचाने के क्रम में भागते हुए मेरे मुँह से अचानक निकला ‘वोह यह जरूर प्री प्लान्ड था’ बिना पूर्व योजना के ऐसा सम्भव नहीं था. घटनास्थल से कुछ दूर कार्यकर्ताओं का एक समूह पुलिस बल से ये कहते हुए दिखा कि ‘कल उनका त्योहार है ना- ईद, देखते हैं कैसे मनाते हैं.’

निश्चित रूप से एक सामान्य आदमी ऐसी धमकियों को गम्भीरता से नहीं लेगा. लेकिन अगले दिन हुए हिंसक टकराव ने यह सिद्ध किया कि न हीं यह धमकी एक घटना थी और न हीं मेरे मुँह से अचानक निकला वह शब्द ‘‘अरे यह तो प्री प्लान्ड था’’ बेवजह था. इस दो दिन के टकराव ने बड़े स्तर पर जान माल का नुकसान पहुँचाया.

इस घटना पर जब मैंने कुछ जिला स्तर के अधिकारियों से बात की तो दबी जुबान से लगभग हर किसी ने स्वीकार किया कि हम पर ऊपर से दबाव है और दरअसल यह तैयारी है 26 नवम्बर को अयोध्या में होने वाली धर्म संसद की. 25 नवम्बर को अयोध्या में धर्म संसद बैठाई गई. इधर मिर्जापुर में जन-जीवन धीरे-धीरे सामान्य हो रहा था. 28 नवमबर को शाम एस.पी. रैंक के पुलिस अधिकारियों के सुरक्षा घेरे में निश्चलानन्द बाबा नामक एक तथाकथित संत आगे आगे चल रहे थे. उनके पीछे विश्व हिन्दू परिषद का झंडा लिए, दो पहियों वाहनों पर बिना हेलमेट के चार-चार लोग सवार होकर, जय श्रीराम के नारे लगाते हुए एक स्कूल के प्रांगण में पहुँचे. वहाँ बाबा उपदेश में कहते हैं कि हमारा धर्म उनके धर्म से बहुत ही श्रेष्ठ है, हमारी श्रेष्ठता की बदौलत वो इस देश में रहते हैं. केन्द्रीय व प्रान्तीय सत्ता को चाहिए कि कोई ऐसी नीति न बनाये, न्यायपालिका कोई ऐसा निर्णय न दे जो हमारे धर्म और हमारी भावना को ठेस पहुँचाए. बाबा ने आगे कहा कि इस देश को बर्बाद करने का सबसे बड़ा कारण वी.पी. सिंह द्वारा लाया गया आरक्षण व्यवस्था. इनका मानना था कि आरक्षण जन्म के आधार पर होना चाहिए यही धर्म नीति है.

दिल्ली से करीब उत्तर प्रदेश के बुलन्द शहर जिले के एक गाँव में तीन दिसम्बर को एक हिंसक घटना हुई. महल गाँव के एक किसान के खेत में गोवंश के कुछ अंश मिले. मीडिया रिपोर्टों के अनुसार ग्रामीणों ने पुलिस को इस घटना से अवगत कराया और मौके पर पहुँचकर पुलिस ने स्थिति को संभाल लिया. अचानक बजरंग दल के कुछ कार्यकर्ता. पुलिस के खिलाफ नारेबाजी करते हुए, आये और अवशेष को ट्रैक्टर ट्राली में डाल पुलिस स्टेशन ले गये. बाद में उग्र हुई भीड़ ने पुलिस इन्स्पेक्टर सुबोध सिंह की हत्या कर दी. आगजनी व तोड़-फोड़ की घटनाएँ भी सामने आईं.

भीड़, मोब या समूह: हिंसा का विश्लेषण

जब अधिक संख्या में किसी स्थान पर लोग इकट्ठा होते हैं तो ऐसे जुटाव को भीड़ (Croud) का नाम दिया जाता है. जब यह भीड़ बेलगाम होकर हिंसक हो जाती है तथा गैर कानूनी कृत्यों में शामिल होती जाती हैं तो इसे माब (Mob) नाम दिया जाता है. जब दो या दो से अधिक लोग किसी सामूहिक कार्ययोजना के तहत इकट्ठा होते हैं तो इसे समूह के रूप में परिभाषित किया जाता है.

पिछले कुछ सालों में भारत में कई ऐसी घटनाएं हुई जिसे भीड़ हिंसा (Mob Lunching) का नाम दिया गया. इन घटनाओं को ध्यान में रखते हुए भारतीय सर्वोच्च न्यायालय ने हिंसक भीड़ को रोकने लिए सभी राज्यों को एक व्यवस्थित दिशा निर्देश जारी कर चुकी है.

मिर्जापुर और बुलन्दशहर की घटना के बारीकी अवलोकन के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि जिसे भीड़ हिंसा का नाम दिया जा रहा है. वह एक प्रायोजित समूह हिंसा है. एक ऐसा समूह जिसे हिंसक प्रशिक्षण के साथ साथ हथियार, लाठी-डण्डे, भाले, तलवार भी दिया गया. मिर्जापुर की घटना में उग्रता पूर्वक हिंसक घटना में शामिल वो लोग नहीं थे जो बाजार में उपस्थित थे और अचानक मार-धाड़ में जुड गये. ये वो लोग रहे हैं जिनकी वैचारिक प्रशिक्षण निश्चलानन्द बाबा जैसे लोगों के उपदेशों द्वारा हुआ है. ध्यान रहे कि बाबा के कार्यक्रम में लगने वाला नारा जय श्री राम, और कार्यकर्ताओं की उग्रता वैसी ही थी जैसी मिर्जापुर व बुलन्दशहर के हिंसक झड़पों में थी.

इन घटनाओं ने निचले स्तर की संस्थाओं को विशेषकर पुलिस सेवा को बेहद कमज़ोर किया है. इन संस्थाओं के तटस्थ भूमिका पर सवाल खड़ा हुआ है. ऐसे में समाज के एक तबके का विश्वास इन संस्थाओं से कम हुआ है जो किसी लोकतान्त्रिक देश व समाज के लिए बेहद खतरनाक है.

आई.पी.एस. रैंक के अधिकारी एक ऐसे व्यक्ति की कार्यक्रम और सुविधा में लगे  हैं जो संविधान के नियमों के खिलाफ खुले आम बोलता है. जिला स्तर के अधिकारी ‘ऊपर से दबाव है’ की बात स्वीकारते हैं. यह संस्थानिक गिरावट का ही महज़ संकेत नहीं बल्कि उदहारण है. 

इन घटनाओं ने जान-माल के नुकसान के अलावा भारतीय समाज के सामाजिक व सांस्कृतिक ताने-बाने को समाज के भीतर तक चोट पहुंचाना शुरू किया है जहाँ कि ताना बाना एक खूबसूरत धार्मिक भाईचारे व धार्मिक सौहार्द का रिश्ता रहा है. मिर्जापुर में दंगे स्थल के थोड़े दूरी पर एक गाँव में मैंने इस भाईचारे की मिसाल देखी. पूरे दंगे के दौरान चार-पाँच दिनों तक हिन्दू मुस्लिम लोग बड़ी समझदारी से एक दूसरे से जुडे रहे. यहाँ एक दूसरे के हालात पूछते रहे और ध्यान रखने की बात करते रहे.

कुछ ऐसी ही खबर बुलन्द शहर से मिली जहाँ हिन्दू लोगों ने मुस्लिमों को नवाज अदा करने के लिए अपने मन्दिर में जगह दिया और उनके साथ विनम्रता से पेश आये. यह सामाजिक-धार्मिक मेल-मिलाप भारतीय बहुसंस्कृति का हिस्सा है. और यह आज भी जिन्दा है. इस सौहार्द को देखकर आप यह कह सकते हैं कि आपस में साथ रहने वाले ये लोग भीड़ व भीड़ का हिस्सा नहीं बनते हैं. और जिन्हें भीड़ कहा जाता है वो भीड़ नहीं बल्कि कुछ भड़के-भड़काए गुंडों का समूह है. ऐसे ही समूह एक व्यवस्थित पैटर्न (तरीके) पर पूरे देश में इस हिंसक घटनाओं को अंजाम दे रहे हैं.

व्यवस्थित पैटर्न पर घटती ये घटनाएँ एक डर का माहौल बनाने में सफल रही है. अमेरिका की एक गैर सरकारी एजेंसी (PEW)3 ने धर्म आधारित सामाजिक शत्रुता के मापन में भारत को सिरिया जैसे देश के आस पास रखा है. यह संख्या देशों की रैकिंग करने की प्रिक्रिया में सामाजिक शत्रुता रैंक (Social Hostalities Index)  में धार्मिक घृणा, धार्मिक भीड़ हिंसा, साम्प्रदायिक हिंसा, धार्मिक बंधन के उल्लंघन पर महिलाओं के प्रति हिंसा, निम्न जाति (दलितों) के खिलाफ धार्मिक हिंसा जैसे मापदण्ड/पैमाने का प्रयोग करती है. खतरे का सबसे उच्चस्तर 10 है जिसमें भारत को 8.7 तथा सिरिया को 9.2 तथा नाइजीरिया को 9.1 स्तर पर रखा गया है.

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नोट-

1. यह रिसर्च उत्तर भारत में दलित पहचान की राजनीति विषय पर है. जिसके सामूहिक दलित चेतना का मापन, बहुजन समाज पार्टी, हिन्दुत्व की राजनीति तथा दलित मुक्ति उपविषय के रूप में शामिल हैं.

2. पी.ई.डब्ल्यू रिसर्च सेन्टर एक निष्पक्षीय तथ्य संग्रह संस्था है जो विभिन्न वैश्विक सार्वजनिक मुद्दों पर जानकारी देती है.

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सुचित कुमार राजनीतिक विज्ञान विभाग दिल्ली विश्वविद्यालय में रिसर्च स्कॉलर हैं और हिंदू कॉलेज में राजनीति विज्ञान पढ़ाते हैं.

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