सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)
पिछली दो सदियों में बहुजन समाज के महापुरषों द्वारा चलाये गए अनेकों सामजिक, धार्मिक, राजनीतिक, सांस्कृतिक आंदोलनों के बाद अब 2019 में समय आ गया है कि हम आर्थिक आंदोलन की ओर भी बढ़ें.
आर्थिक ताकत आज भारत ही नहीं बल्कि दुनिया की सबसे मज़बूत ताकतों में से एक बन चुकी है. वो ज़माना गया जब कोई भी देश, सेना और हथियारों के बल पर किसी दूसरे देश को अपना ग़ुलाम बना सके. आज जिसके पास आर्थिक ताक़त है; वहीं राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक ताक़तों पर भी हावी हो जाता है. अगर हम भारत की अर्थव्यवस्था को देखें, तो लगभग सारा का सारा व्यापार आज भी सिर्फ 4-5 प्रतिशत आबादी वाले बनियों के ही हाथों में है.
हमारी आबादी तो 100 करोड़ से भी ज़्यादा है और हम एक सूई से लेकर हवाई जहाज़ों का इस्तेमाल, अपनी ज़रूरतों के लिए करते हैं. लेकिन इनमें से कितनी चीज़ों का उत्पादन हम खुद करते हैं? यह सोचने वाली बात है.
आर्थिक क्रांति लाने की दिशा पर मैंने कुछ समय पहले एक लेख लिखा था, “अश्वेत राष्ट्रवाद से बहुजन राष्ट्रवाद तक”, जिसमें अमरीका के अफ़्रीकी मूल के लोगों द्वारा विकसित की गयी अश्वेत राष्ट्रवाद (Black Nationalism) की विचारधारा के बारे में बताया था. इस विचारधारा के संस्थापक माने जाने वाले आदरणीय मार्कस गार्वी ने नारा दिया था कि “Negro Producers, Negro Distributors, Negro Consumers” यानि कि उन्हें अपनी इस्तेमाल की चीज़ों का खुद ही उत्पादन करना होगा और फिर खुद ही उसका वितरण कर खरीदना होगा.
अगर हम भी यह नारा दें कि “Bahujan Producers, Bahujan Distributors, Bahujan Consumers,” तो हम आर्थिक मोर्चे पर भी अपना झंडा गाड़ सकते हैं. आज हमारे बहुत से युवाओं में व्यवसायी बनने की चाहत भी है और गुण भी, लेकिन इस दिशा में कुछ ज़्यादा तरक्की न होने के कारण, वो अपने आप को लाचार पाते हैं.
आज शोध करने वालों की कोई कमी नहीं है और हो सकता है कि हमारे कई ऐसे प्रोफेसर भी हों, जिन्होंने Economics(अर्थशास्त्र) में PhD की हो. ऐसे बुद्धिजीवियों को अब आगे आकर हमारे युवाओं का मार्गदर्शन करना चाहिए.
आज अमरीका में अफ़्रीकी मूल के लोगों को और खासकर युवाओं को उनके दो अर्थशास्त्री अश्वेत प्रोफेसर; Dr. Boyce Watkins और Dr. Claud Anderson इस दिशा में काफी मदद कर रहे हैं. वो कई किताबें भी लिख चुके हैं और सोशल मीडिया पर लगातार सक्रीय हैं. अपनी युवा पीढ़ी को वो अब यूरोपीय मूल के गोरों के यहां नौकरियां करने की बजाय – खुद के कारोबारों को विकसित करने पर ज़ोर दे रहे हैं. इससे न सिर्फ वो आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर होंगे बल्कि अपने समाज के युवाओं को रोज़गार भी मुहैया करवा सकेंगे.
इस दिशा में कुछ कोशिशें भारत में हुई हैं; जैसे ग्वालियर में NB Market(नमोः बुद्धाए बाज़ार), जय भीम शैम्पू, साबुन आदि. DICCI (दलित कारोबारियों की संस्था) और इस तरह के कुछ और भी संगठन बने हैं, जो बहुजन समाज को व्यवसाय के क्षेत्र में आगे बढ़ने में मदद कर रहें हैं. लेकिन अभी भी यह एक देश व्यापी आंदोलन का रूप नहीं ले सका है.
अगर हमें अपने समाज को पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ा करना है, तो सिर्फ आरक्षण से मिली सरकारी नौकरियों के बल पर यह नहीं हो सकता. इसके लिए हमें अपने व्यवसाए शुरू करने ही होंगे. 100 करोड़ से ज़्यादा आबादी होने के बाद कोई कारण नहीं है कि हम इसमें कामयाब न हो पाएं.
2018 में सामाजिक आंदोलनों और मीडिया के क्षेत्र में कई उपलब्धियां हासिल करने के बाद, अब 2019 में बहुजन समाज को आर्थिक मोर्चे पर भी अपनी मौजूदगी दर्ज करा ही देनी चाहिए.
बहुजन राष्ट्रवाद ज़िंदाबाद!
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सतविंदर मदारा
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