Vruttant Manwatkar1
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 वृत्तान्त मानवतकर  (Vruttant Manwatkar)

Vruttant Manwatkar1क्योंकि मोंटी उर्फ़ अप्पा एक असली क्रांतिकारी हीरो है. मोंटी ने अपने मुहल्ले में ऐसी क्रांति कर दी है कि आजकल वो मुहल्ले के सारे नौजवानों और बुज़ुर्गों की चर्चाओं का मुख्य किरदार हैं. उसने ऐसी क्रांति की हैं जिसे बड़े-बड़े भाषणबाज़ ज़िक्र करने से भी कतराते हैं. इतना ही नहीं, कुछ लोग मोंटी को समाज का एक आदर्श युवा मान अपने बच्चों को उससे सीख दे रहें हैं. ऐसा क्या किया मोंटी ने…

31 मार्च को मोंटी के मुहल्ले – मुनिरका में पहली बार बौद्ध महिला सम्मेलन हुआ. मोंटी इस आयोजन से बहुत उत्साहित था और उसने सम्मेलन में महिलाओं और बच्चों को इकट्ठा करने में बहुत मेहनत की. सम्मेलन से यहाँ के लोगों ने बुद्ध, फुले, आम्बेडकर के बारे में बातें सुनी. पर लोगों में इन बातों को तुरंत समझने वाला और उन्हें आचरण में उतार के क्रांति करने वाला एक मोंटी निकला.

बुद्ध, फुले और आम्बेडकर की बातों का ऐसा असर हुआ कि सम्मेलन के दूसरे दिन ही आंदोलित मोंटी ने अपने घर से कुछ पत्थर निकाल बाहर फेंक दिए. ये वही पत्थर थे जिनसे उसकी माँ ने घर में मंदिर बनाकर रखा था और जिन्हें वो भगवान समझ कर पूजती थी. घबराई माँ को मोंटी ने एक ही तर्क दिया 

“जिन पत्थरों को दिन-रात पूजने के बावजूद भी मेरे शराबी बाप में ज़रा भी सुधार नहीं आया और मेरी माँ की परेशानी बढ़ती ही रही, ऐसे पत्थरों को घर में रखने से क्या फ़ायदा? भलाई इसी में है मैं इन्हें घर से बाहर फेंक दूँ!”

मोंटी की माँ की उलझन का निपटारा होने के लिए समय नहीं लगा. अंधश्रद्धा से उपजी मानसिक ग़ुलामी पर प्रहार कर, उसके बेटे ने उसके परिवार की उन्नती का रास्ता साफ़ कर दिया. अब वो ख़ुश हैं. उसके बेटे ने ईश्वर के डर को समाप्त कर समाज में एक आदर्श प्रस्थापित किया है. उसने एक बहुत बड़ा आंदोलन खड़ा किया है. मोंटी ने यह साबित कर दिया है कि वह बुद्ध, फुले, बाबासाहेब का सच्चा अनुयायी है. वो एक समाजिक और वैज्ञानिक क्रांति का कारण बन गया है. मोंटी और उसके जैसे नौजवान कई हज़ारों सालों की ग़ुलामी के अंत की एक जगमगाती उम्मीद हैं.

आज बुद्ध विहार की सामूहिक वंदना में मुनिरका के एक बुज़ुर्ग व्यक्ति ने मोंटी का यह आंदोलन सुनाकर उसे आगे बुलाया. फिर तलियाँ बजाकर सभी उपासकों ने उसे साधुवाद दिया. नज़ारा बहुत ख़ूबसूरत था.

Monti

दायें पीली टी-शर्ट में मोंटी लेखक वृत्तान्त मानवतकर के साथ

चमक-धमक वाली मीडियाबाज़ी के दौर में किसी को भी क्रांतिकारी हीरो बनाना बायें हाथ का खेल हैं. शासक वर्ग ऐसी मीडियाबाज़ी का उपयोग ग़ुलामों की ग़ुलामी क़ायम रखने के लिए करता हैं. ऐसे धोखेबाज़ दौर में एक सच्चे क्रांतिकारी के साथ फ़ोटो खिचवाने में मैंने स्वयं को गौरवान्वित महसूस किया.

मुझे यक़ीन है कि हम सभी के आसपास ऐसे अनजान क्रांतिकारी हीरो रहते है. लगभग हम सभी के पास फ़ोन में केमरें है और लगभग सभी को लिखना भी आता हैं. 

हम सब यह जानना चाहते है कि तथागत बुद्ध, फुले दंपत्ति और बाबासाहेब की परंपरा को आगे ले जाने वाले असली क्रांतिकारी कौन हैं!

 

जयभीम!

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वृत्तान्त मानवतकर जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी से पी.एच.डी कर रहे हैं.

 

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