Kundan
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कुंदन मकवाना (Kundan Makwana)

Kundanबहुजन नायक मान्यवर साहब कांशीराम मतलब गौतम बुद्ध से लेकर संत गुरु रविदास, कबीर से होकर ज्योतिबा फुले, शाहूजी महाराज, और बाबासाहब डॉ भीमराव आम्बेडकर के सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन के आन्दोलन का निचोड़ है.

जरा सोचकर देखिये, बहुजन समाज के एक सामान्य परिवार में जन्मा व्यक्ति, अपने ऐतिहासिक संकल्प, त्याग और मेहनत की बदौलत बहुजन आन्दोलन में अपना एक विशेष स्थान बनाता है. बाबासाहब डॉ आम्बेडकर के परिनिर्वाण के बाद दो-तीन दशकों से नेतृत्व-विहीन हो चले मिशन को एक नया नेतृत्व प्रदान करता है. बाबासाहब डॉ आंबेडकर की लिखी किताब, ‘जातिभेद का बीजनाश’ को एक रात में तीन बार पढ़ने के बाद अपना घर, परिवार, नौकरी छोड़ कर बाबासाहब के अधूरे मिशन और स्वप्न को आगे ले जाने में लग जाता है. कांशी राम इससे भी बहुत आगे हैं. उनका खुद का मिशन बाबा साहेब आंबेडकर के मिशन को ही मंजिल तक पहुँचाना था. 

लेकिन क्या था बाबासाहब का अधुरा मिशन? क्या थे बाबासाहब का सपना? बाबासाहब चाहते थे कि भारत देश का बहुजन समाज हाथी की तरह विशाल है और वह इस भारत देश का हुक्मरान बने.

बाबा साहेब कहते थे- हमारी लड़ाई धन-दौलत व् सत्ता की नहीं है, यह तो आज़ादी की लड़ाई है. यह तो मानव व्यक्तित्व के पुनर्दावे की लड़ाई है. 

1956 के साल में बाबासाहब डॉ आम्बेडकर ने आगरा में कहा था कि, “मुझे मेरे समाज के पढ़े-लिखे लोगों ने धोखा दिया है!!” इस  बात से सीख लेते हुए, पढ़े-लिखे लोगों पर लगे हुए दाग को दूर कर सामाजिक जागृति के हेतु से दबे, कुचले, पिछड़े व् अल्पसंख्यक वर्ग के सरकारी कर्मचारियो का एक बिनराजकीय बिनरजिस्टर्ड संगठन “बामसेफ” बनाया, जिसका लक्ष्य था “व्यवस्था परिवर्तन”.

लेकिन मान्यवर साहब बहुत दूरंदेशी व्यक्ति थे.. बाबासाहब के अध्ययन से उन्होंने यह जाना था कि, राजकीय सत्ता पर अपना कब्ज़ा किये बिना, व्यवस्था परिवर्तन का यह लक्ष्य बहुत कठिन है, इसलिए बामसेफ के बाद मान्यवर साहब ने “दलित शोषित समाज संघर्ष समिति” और “बहुजन समाज पार्टी” का निर्माण किया, जो बहुजनो के राजकीय संगठन थे.

एक व्यक्ति जो बाबासाहब और बहुजन मिशन से पूरी तरह से अंजान था, वह इस मिशन के लिए अपना सब कुछ छोड़कर निकल पड़ा और इस बात को भी साबित किया कि, “मिशन के वारसदार तो विचारधारा से बनते है, खून से नहीं.”

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बामसेफ से लेकर बसपा तक के सफ़र में मान्यवर साहब ने बहुजन समाज के नामी-अनामी नायक और नायिकओं के जीवन और उनकी लिखी किताबों का बारीकी से अध्ययन किया और इस अध्ययन से मान्यवर साहब ने परिवर्तन का एक फ़ॉर्मूला खोज निकाला, जो बहुजन समाज के लिए जानना बहुत जरुरी है. 

नागपुर में दिए गए एक भाषण में, परिवर्तन के बारे में समझाते हुए मान्यवर साहब कहते है कि, परिवर्तन यानि Change के लिए इन तीन चीज़ों का समन्वय ज़रूरी है. एक- ज़रुरत यानि Need, दूसरा- ताक़त यानि Strength और तीसरा, इच्छा यानि Desire. मतलब यह कि Need * Strength * Desire = Change.

इस बात के उदहारण के तौर पे मान्यवर साहब, बहुजन समाज के तीन महानायक राष्ट्रपिता ज्योतिराव फुले, छत्रपति शाहूजी महाराज और बाबासाहब डॉ आम्बेडकर के साक्ष्य देते है.

मान्यवर साहब आगे समझाते हुए कहते है कि-

ज्योतिराव फुले के समय में सामाजिक परिवर्तन की बेहद आवश्यकता थी और परिवर्तन लाने की उनकी तमन्ना भी मजबूत थी. लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात थी कि, वे आर्थिक रूप से मजबूत थे. ज्योतिराव फुले का फूलों का धंधा था और इसलिए वह आर्थिक रुप से थोड़े बहुत मजबूत थे. ऐसे में वह, अपनी पत्नी सावित्रीबाई फुले और अन्य साथियो के साथ मिलकर स्त्री-शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह, जैसे महत्त्व के सामाजिक परिवर्तन ला सके. 

शाहूजी महाराज के समय में भी परिवर्तन लाने की तमन्ना और परिवर्तन की जरूरत तो थी, लेकिन साथ ही साथ वह महाराज होने के कारण आर्थिक रूप से मजबूत भी थे. इस तरह तीनों फेक्टर मजबूत होने के कारण वह भी परिवर्तन ला सके और अपने शाशन में दबे-कुचले लोको के लिए आरक्षण लागु कर सके.

बाबासाहब डॉ आम्बेकर के समय में भी परिवर्तन की बेहद आवश्यकता थी. भारत का बहुसंख्यक समाज जातिवाद और धर्म के नाम पर दबा-कुचला गया था. और बाबासाहब में परिवर्तन लाने की तीव्र इच्छा भी थी. लेकिन फुले शाहू की तुलना में वह आर्थिक रूप से बहोत मजबूत नहीं थे. इसके बावजूद बेहद मेहनत, संघर्ष, और त्याग से आर्थिक मजबूती बना कर अपनी विद्वता से परिवर्तन को साकार किया और भारतीय संविधान में उसे निहित किया.

कुछ इस कदर मान्यवर साहब ने बहुजन आन्दोलन के परिवर्तन को समझाया.

बाबासाहब के परिनिर्वाण के बाद बहुजन आन्दोलन के परिवर्तन का ये कारवां कुछ रुक सा गया था, जिसे मान्यवर साहब ने आगे बढाने का काम किया.. बहुजन आन्दोलन को आर्थिक मजबूती प्रदान करने हेतु मान्यवर ने बामसेफ नामक एक संगठन बनाया – जो दबे, कुचले, पिछड़े व् अल्पसंख्यक वर्ग के सरकारी कर्मचारियों का एक बिन-राजकीय बिन-रजिस्टर्ड संगठन था. बेशक इस समय में भी परिवर्तन लाने की इच्छा और ज़रुरत तो थी ही!

लेकिन अभी वर्तमान समय में नजर डाली जाये तो, आज के समय में बहुजन समाज आर्थिक रूप से कुछ मजबूत हुआ है, उसको परिवर्तन की ज़रुरत भी है और इच्छा भी. लेकिन फिर भी व्यवस्था परिवर्तन का यह लक्ष्य दूर दिखाई दे रहा है. कदम कदम पर हम निष्फल दिख रहे है. ऐसा क्यों?

शायद इसकी वजह यह है कि आज हम शिक्षित तो हो गए है, लेकिन जागृत अभी भी नहीं हैं. संगठित हो कर भी सैंकड़ों अलग-अलग सामाजिक और राजनीतिक संगठनों में बंटे हुए हैं. आंदोलित तो हैं व्यवस्था परिवर्तन के लक्ष्य के लिए, लेकिन विचर रहे हैं अलग-अलग ही. शायद इसीलिए यह लक्ष्य दूर दिख रहा है. ऐसे में कांशी राम साहेब के बहुजन समाज के लोगों को जोड़ने के फोर्मुले याद आते हैं. आज दरअसल हमारे समाज को फिर से मान्यवर साहब के उस कैडर की ज़रुरत है जिसे सुनने के बाद लोग संगठित होकर काम करते थे और परिणाम भी निकलते थे.

अंत में, 
दावे के साथ कहता हूं कि  होउ शकत है,
जरूरत चंद ईमानदार लोगों की फकत है!!

~~~

 

कुंदन मकवाना कनाडा में रहते हैं. हॉस्पिटैलिटी के क्षेत्र में कार्यरत हैं व् बहुजन मुद्दों में दिलचस्पी रखते हैं.

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2 thoughts on “परिवर्तन के मायने और मान्यवर कांशी राम साहब

  1. बहोत बहोत साधुवाद। साहबके बारेमे बहोतसे लोगोने लीखा है और लिखते रहते ही है, आपने भी ईसे अपने कलम से साहबके त्यागको सही न्याय दिया है । हम आपके ईस कार्यकी सराहना करते है और और भी लिखे ऐसी आशा के साथ आपको मंगलकामनाए।

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