स्वप्निल धनराज (Swapnil Dhanraj)
आखिरी बार कब भारतीय अकादमिया में एक जनजातीय समुदाय से आने वाली महिला की सफलता की कहानी का जश्न मनाया गया? यदि हम इस बारे में सोचते हैं कि भारतीय शिक्षा प्रणाली ने दलितों, आदिवासियों और अन्य हाशिए के समुदायों के मुद्दों से कैसे निपटा है, तो ऐसा प्रतीत होता है कि उन मुद्दों को खराब रोशनी में और किसी भी तरह के शैक्षणिक महत्व दिए बिना चर्चा करते हुए पेश किया गया है. जाति का समाजशास्त्रीय वर्ग अभी भी उन लोगों के लिए महत्वहीन है जो जाति के विनाश की आवश्यकता को नहीं समझते हैं. इसके अलावा, जाति की वास्तविकता के साथ, भारतीय शैक्षणिक संस्थानों को महिलाओं के प्रतिनिधित्व की कमी पर ध्यान केंद्रित करके अपने फैकल्टी सदस्यों की संरचना को प्रतिबिंबित करना चाहिए, खासकर आदिवासी समुदायों से. क्योंकि भारतीय विश्वविद्यालयों में हाशिए के समुदायों से आती महिलाओं के लिए अकादमिक प्रतिनिधित्व और अवसर न केवल लैंगिक समानता को बढ़ावा देने के लिए, बल्कि उच्च शिक्षा में एक लोकतांत्रिक संस्कृति के लिए भी महत्वपूर्ण है. उच्च शिक्षा वाले भारतीय संस्थानों को मुख्यधारा के समाज और हाशिए के समुदायों की महिलाओं के प्रतिनिधित्व के बीच में मौजूद विषमताओं को नजरअंदाज नहीं करना चाहिए.
हालांकि हमारे देश के विभिन्न संस्थानों ने दलित और आदिवासी समुदायों की महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने का दावा किया है, लेकिन इन संस्थानों में उच्च पदों पर उनकी दृश्यता और ऊपर उठने की गतिशीलता समानता की स्थितियों पर एक प्रश्न चिह्न लगाती है. इसके अलावा, महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों में उनके प्रतिनिधित्व की कमी उनके द्वारा अनुभव किए गए बहिष्करण की प्रक्रिया को निरंतर बढ़ाती है. इसलिए, उच्च शिक्षण संस्थानों में संरचनात्मक और लोकतांत्रिक परिवर्तन लाने के लिए हमारे संस्थानों को एक नए तरह के विचारशील और रणनीतिक हस्तक्षेप की आवश्यकता है. ऐसा करना शैक्षणिक गलियारों में इन महिलाओं के लिए समान अवसर बनाने के लिए इन संस्थानों के आत्मविश्वास को भी दर्शाएगा.
झारखंड के दुमका स्थित सिदो कान्हु मुर्मू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में प्रोफेसर सोनाझरिया मिंज की नियुक्ति की हालिया खबर ने बहुजन छात्रों के बीच उम्मीदों और उत्साह की पूरी श्रृंखला खड़ी कर दी है. अपने कंधों पर इस नई जिम्मेदारी के साथ, वह भारतीय शिक्षा प्रणाली के इतिहास में यह सम्मान पाने वाली पहली आदिवासी महिलाओं में से एक बन गई हैं. वर्तमान में वह स्कूल ऑफ कंप्यूटर एंड सिस्टम्स साइंस में प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं. दूसरों के लिए यह एक नियमित नियुक्ति की तरह लग सकता है. लेकिन जो लोग हजारों वर्षों से शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश करने की प्रतीक्षा कर रहे हैं, उनके लिए प्रोफेसर सोनझरिया मिंज की उपलब्धि असाधारण बनी हुई है. भारतीय शैक्षणिक संस्थानों को यह महसूस करना होगा कि उनका लोकतंत्रीकरण हाशिए के समुदायों की महिलाओं को शामिल करने की मांग करता है.
हमें यह समझने की आवश्यकता है कि शिक्षाविदों में जनजातीय विद्वानों और बुद्धिजीवियों के प्रतिनिधित्व पर एक अजीब चुप्पी है. यह एक गहरा सच है जिसे समझना होगा. ऐसा क्यों होता है?
सबसे पहले हमें यह समझना होगा कि आदिवासी समुदायों के बहुत कम छात्रों को समाज में विश्वविद्यालय शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनने का अवसर मिलता है. एक बार जब उन्हें एक प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में प्रवेश मिल जाता है, तो सिस्टम को उन्हें और उनकी शैक्षणिक क्षमता को स्वीकार करने में बहुत समय लगता है. अक्सर वे शिक्षकों और विश्वविद्यालय प्रशासन के साथ रोजमर्रा के संचार की सबसे सरल कार्यों में भी नज़रंदाज़ और उपेक्षित रहते हैं, जहाँ उन्हें अपनी जातीय पहचान से संबंधित अबूझ पॉवर-डायनामिक्स, पूर्वाग्रह और लांछन के साथ रहना पड़ता है. इसलिए, वे खुद को उन परिस्थितियों से दूर होते हुए देखते हैं जहाँ सामाजिक सहानुभूति का अभाव है. शैक्षणिक जीवन के नए पहलुओं की खोज करते हुए, आदिवासी समुदायों की लड़कियों को इन विश्वविद्यालयों में अपने रूप-रंग को लेकर नस्लीय भेदभाव और मौखिक दुर्व्यवहारों का सामना करना पड़ता है. इसके परिणामस्वरूप, उनमें से कई संस्थानों को छोड़ने का विकल्प चुनते हैं. इसलिए, शैक्षणिक स्थानों में आदिवासी महिलाओं की अनुपस्थिति को मान्यता नहीं देना आज भी दलित-बहुजन राजनीति में हाशिए के समुदायों के सशक्तिकरण के डिस्कोर्स के लिए हानिकारक है. यह सच है कि अब तक केवल हाशिए के समुदायों के पुरुष ही विद्वानों, सार्वजनिक बुद्धिजीवियों और भारतीय शिक्षाविदों के अन्याय के आलोचक के रूप में दिखाई देते रहे हैं. लेकिन उन्हें भी भिन्न भिन्न तरह के भेदभावों का सामना करना पड़ता है, इस संदर्भ में हाशिए की महिलाओं की अनुपस्थिति को अनदेखा करना बहुत कठिन है.
इसके अलावा, प्रशासन की आधिपत्य (hegemonic ) वाली संरचना और इसके भेदभावपूर्ण चरित्र, हाशिए के समुदायों के छात्रों के लिए न्याय और समान अवसरों के लिए कभी गुंजाइश नहीं बनाते हैं. हम रोहित वेमुला पर, एचसीयू विश्वविद्यालय के प्रशासन के द्वारा सहयोग की कमी के चलते हुई संस्थागत यातना को नहीं भूले हैं, जिसका गवाह रोहित अपने जीवन को समाप्त करने से पहले खुद रहा है. जब यह प्रशासन हाशिए के समुदायों से आते संघर्षरत छात्रों से निपटने की बात करता है तब इस व्यवस्था का खोखलापन उजागर हो जाता है. इसलिए, विश्वविद्यालय प्रशासन में लोकतांत्रिक आवाज़ों का होना महत्वपूर्ण है जो देश भर के परिसरों में दलित और आदिवासी छात्रों पर होते अत्याचारों में विद्यार्थियों का समर्थन और प्रतिनिधित्व कर सकें.
2018 में JNUTA (जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय शिक्षक संघ) के अध्यक्ष के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, प्रोफेसर मिंज ने सीटों में कटौती के मुद्दे पर जोरदार तरीके से संबोधित किया और यह सामाजिक रूप से वंचित समुदायों से आने वाले छात्रों को प्रभावित करता है. सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि जबकि वह सीधे तौर पर सामाजिक विज्ञानों के अनुशासन से जुड़ी नहीं है, फिर भी उन्होंने विभिन्न विरोध प्रदर्शनों के दौरान अपने वैचारिक किस्सों से लबरेज़ सार्वजनिक भाषणों के माध्यम से हमारे देश में बहुजनों के सामने आने वाली समस्याओं को कलात्मक रूप से महसूस करते हुए अपनी उपस्थिति दर्ज कराई. इस अर्थ में वह महज़ एक शिक्षाविद से कहीं अधिक हैं जो कि एक कार्यकर्ता का जीवन भी जी रही हैं. यह तथ्य कि हमारे पास एक महिला है, जो महत्वपूर्ण शैक्षणिक पदों में आदिवासियों के प्रतिनिधित्व की शुरुआत का प्रतीक है, उत्सव का क्षण है. यह वास्तव में हम सभी के लिए गर्व का क्षण है. उनकी यह उपलब्धि शिक्षा की दुनिया में प्रवेश करने के लिए पिछड़े और हाशिए के समुदायों के छात्रों के आत्मविश्वास को प्रेरित करने और बढ़ाने में सहायक होगी. आईये हम एसकेएम विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में उनकी नई जिम्मेदारी के लिए उनकी सफलता की कामना करें.
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स्वप्निल धनराज हरियाणा के सोनीपत के ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में असिस्टेंट प्रोफेसर हैं. उन्होंने ‘सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ सोशल सिस्टम’, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली से पीएचडी की है.
नोट: यह आलेख मूल अंग्रेजी भाषा में राउंड टेबल इंडिया (इंग्लिश) में यहाँ पर छपा था, जिसका हिंदी में अनुवाद गुरिंदर आज़ाद ने किया है.
चित्र सौजन्य: इंटरनेट
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