
सतविंदर मनख (Satvinder Manakh)
2021 में जनगणना होने जा रही है.
इसमें देश की बहुत सारी पिछड़ी और अनुसूचित जतियाँ, अपना धर्म क्या लिखवाएंगी, इसे लकर विवाद लगातार बना हुआ है.
देश की अनसूचित जातियों में तो यह विषय, बाबासाहेब अंबेडकर के 14 अकतूबर, 1956 में हिन्दू धर्म छोड़ बुद्ध धर्म अपनाने के बाद से उठता ही रहता है.
अब इसमें पिछड़ी जातियों और वो भी खासकर उत्तर भारत के जाटों के शामिल हो जाने के कारण, यह विवाद और भी गहरा गया है.
जहाँ पूरा देश, इस वक्त किसान आंदोलन की और देख रहा है, वहीं इसी बीच 2021 की जनगणना में जाटों द्वारा हिन्दू धर्म छोड़ने की भी बातें सुनने में आ रही हैं.
हाल ही में एक युवा जाट नेता ने हिन्दू धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाया भी है.
किसान आंदोलन में दिल्ली के चारों तरफ के जाट, बड़ी संख्या में शामिल हैं.
उनके द्वारा हिन्दू धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाने का मामला इसलिए भी विवादों में है – क्योंकि जहाँ आंदोलन कर रहे किसानों की मदद के लिए सिखों के गुरूद्वारे आगे आएं हैं, वहीं हिन्दुओं के मंदिर और उनके ब्राह्मण पुजारी, उन्हें ताला लगा कर जा चुके हैं.
पश्चिम उत्तर प्रदेश के एक बड़े जाट किसान नेता ने भरी सभा में कहा कि, भई! जिन मंदिरों में हमनें दूध चढ़ाया, आज हमारी जरूरत के समय – उन्होंने हमें एक कप चाय का भी नहीं पिलाया, जब कि सिखों के गुरुद्वारे हमारे लिए लंगर चला रहे हैं.
जाट बड़ी संख्या में किसान है.
पंजाब का जाट सिख है, इसलिए गुरुद्वारों का आगे आकर मदद करना स्वाभाविक है. वहीं – हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान समेत दूसरे राज्यों के करोड़ों जाट हिन्दू हैं, तो फिर मंदिरों द्वारा उनकी मदद क्यों नहीं की गई? यह सवाल कड़ाके की ठंड में भी आंदोलन कर रहे किसानों और खासकर जाटों में लगातार चर्चा का विषय बना हुआ है.
पहले ही जहाँ जाटों को ब्राह्मण ग्रंथों के द्वारा – मराठों, पटेलों, यादवों, कुर्मियों, गुज्जरों की ही तरह; चौथे दर्जे के वर्ण में शूद्र घोषित किया हुआ है. ऐसे में अब मंदिरों द्वारा मदद करने की बजाये, तालें लगाकर चले जाना, इस सारे मामले को और भी हवा दे गया.
अगर हम 2011 की जनगणना के आंकड़े देखे, तो उसके हिसाब से भारत की कुल आबादी तकरीबन 120 करोड़ है. इसमें से करीब 96 करोड़ हिन्दू (80 %) , 17 करोड़ मुसलमान(14%), 3 करोड़ ईसाई (2.5%), 2 करोड़ सिख (1.66%), 85 लाख बौद्ध (1% से कम) और 45 लाख जैन (आधा % से कम) हैं.
इस हिसाब से भारत में हिन्दुओं की आबादी बाकी सभी धर्मों से बहुत ज़्यादा दिखती हैं.
लेकिन अगर हम इस बात पर गौर करें कि इस 96 करोड़ आबादी में 25% आबादी तो एस.सी./एस.टी. जातियों की है, जो ब्राह्मण धर्म ग्रंथों के हिसाब से अछूत-आदिवासी हैं. वो इन्हें कभी अपने बराबर का दर्जा दे नहीं सकते और न ही अब यह जातियां अपने-आप को हिन्दू मानती हैं.
एस.सी. जातियों के तो हिन्दू धर्म छोड़ने और बुद्ध धर्म अपनाने की शुरुआत, बाबासाहेब अम्बेडकर ने 75 साल पहले ही करवा दी थी. अभी हाल ही में झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार ने आदिवासियों के अपने “सरना धर्म” को मान्यता दे दी है. भारत के बहुसंख्यक आदिवासी भी खुद को हिन्दू नहीं मानते.
इस तरह 80% हिन्दू आबादी में से अगर हम एस.सी.-एस.टी. की 25% आबादी का घटाव करें, तो यह आंकड़ा सीधे 55% पर आ जाता है.
हिन्दू जाटों (जाट पंजाब में सिख और पाकिस्तान में मुसलमान हैं) की सँख्या, 5 – 6 करोड़ बताई जा रही है. अगर हम इसे 5% ही मान लें और इसे 55% से घटा दें, तो यही भारत में हिन्दू धर्म की आबादी को 50% यानि आधे पर ले आएगा.
लेकिन हिन्दू धर्म छोड़ कर दूसरा धर्म अपनाने का सवाल, सिर्फ एस.सी./एस.टी. और जाटों में ही नहीं बल्कि कई और दूसरी अन्य पिछड़ी जातियों जातियों में भी चल रहा है.
इसकी सबसे बड़ी मिसाल उत्तर प्रदेश व् बिहार की शाक्य-कुशवाहा जातियाँ हैं. यह काफी बड़ी संख्या में बुद्ध धर्म अपना भी चुकी हैं.
इसके अलावा OBC की बड़ी यादव जाती भी इस विषय पर दुविधा में है.
जब अखिलेश यादव उत्तर प्रदेश के मुख्य मंत्री पद से उतरे और उनकी जगह सवर्ण ठाकुर जाती के योगी आदित्यनाथ मुख्य मंत्री बने, तो उन्होंने मुख्यमंत्री आवास की शुद्धि करवाई कि उनके पहले यहाँ एक पिछड़ी-शूद्र जाती के मुख्य मंत्री निवास करते थे.
इसके बाद एक सभा में अखिलेश सिंह यादव को कहना पड़ा कि हम तो अपने-आप को ‘फॉरवर्ड’ मानते थे, लेकिन आरएसएस.-भाजपा वालों ने हमें अहसास करवा ही दिया कि आप ‘फॉरवर्ड’ नहीं ‘बैकवर्ड’ हैं.
यादव जाति में एक प्रतीक के तौर पर, इस समय सबसे बड़ा नाम – पेरियार ललई सिंह यादव का उभर रहा है. उन्होंने भी बाबासाहेब अम्बेडकर के थोड़े समय बाद ही बुद्ध धर्म अपना लिया था.
हाल ही में बिहार के एक यादव बाहुल्य गाँव में, उनके द्वारा हिन्दू धर्म छोड़ कर बुद्ध धर्म अपनाने का विडियो भी सोशल मीडिया पर आया है.
यादवों की संख्या भारत में 8-9 करोड़ के करीब बताई जाती हैं यानि कि कुल भारत की आबादी का वो भी 5% से ज्यादा हैं.
इस तरह अगर हम यह मान लें कि शाक्य-कुशवाहा-यादव, जैसी पिछड़ी जातियाँ भी आने वाले समय में हिन्दू धर्म छोड़ देंगी, तो भारत में हिन्दू धर्म की आबादी 50% से नीचे चली जाएगी.
ऐसा में आने वाले समय में, भारत में कोई धर्म बहुसंख्यक नहीं रहेगा क्योंकि बहुसंख्यक होने के लिए सिर्फ सबसे बड़ी आबादी वाला धर्म होना ही जरूरी नहीं है बल्कि उसकी आबादी 50% से ज्यादा भी होनी चाहिए.
इसके अलावा यह आँकड़े तो राष्ट्रिय स्तर के हैं. लेकिन अगर हम राज्यों के तौर पर देखें, तो तस्वीर बहुत ही अलग नज़र आती है और हिन्दू धर्म का अल्पसंख्यक बन जाना, कोई ज़्यादा बड़ी बात भी नहीं है.
मिसाल के तौर पर अगर हम हरियाणा को ही ले लें, जो इस विवाद का मुख्य केंद्र बना हुआ है; तो यहां हिन्दुओं की आबादी 87%, मुसलमानों की 7% और सिखों की 5% के करीब है.
लेकिन अगर हम गौर से देखें, तो इस 87% हिन्दू आबादी में से 25% तो अकेले जाट हैं, जो अब हिन्दू धर्म छोड़ कर सिख धर्म अपनाने की बात कर रहे हैं. अब अगर हम 87 में से 25 घटा दे, तो यह संख्या सीधे 62% पर चली जाएगी.
हरियाणा में SC आबादी 20% है.
अगर हम इसे भी घटा दें तो हिन्दुओं की आबादी 62% से घटकर सिर्फ 42% ही रह जाएगी.
इस तरह अगर 2021 की जनगणना में इन दो ही वर्गों ने करवट ली, तो हरियाणा में हिन्दू बहुसंख्यक से अल्पसंख्यक बन जाएगा.
किसान आंदोलन में जहां इस मुद्दे के थोड़ा थम जाने का अंदेशा था, इसने उल्टा आग में घी का काम किया है.
~~~
सतविंदर मनख पेशे से एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हैं। वह साहेब कांशी राम के भाषणों को ऑनलाइन एक जगह संग्रहित करने का ज़रूरी काम कर रहे हैं एवं बहुजन आंदोलन में विशेष रुचि रखते हैं। हालही में उनके लेखों की ई-बुक (e-book) ‘21वीं सदी में बहुजन आंदोलन‘ जारी हुई है.