सतविंदर मनख (Satvendar Manakh)
2021 में पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों का धर्म क्या होगा? हिन्दू, मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन?
2021 में अगली जनगणना होने जा रही है। इसमें पिछड़े, दलित, आदिवासी(OBC, SC, ST) क्या फिर से अपने को “हिन्दू” लिखवाएंगे? या जिस धर्म ने उन्हें शूद्र, अछूत, ग़ुलाम बनाया, वो इसे छोड़ “इस्लाम, ईसाई, सिख, बौद्ध या जैन” धर्म अपनाएंगे ? या वो नए धर्म की स्थापना करेंगे?
यह सवाल देश के कई हिस्सों में उठ रहा है।
पंजाब के दोआबा क्षेत्र में ‘चमार’ जाति, इसे लेकर असमंजस में है।
हम हिन्दू नहीं है; इसके खिलाफ यहां 1920 के दशक से लगातार आंदोलन चल रहे हैं। शुरुआत 1931 में “आदि धर्म” से हुई। इनका मानना था कि हम इस देश के मूलनिवासी हैं, हमारा धर्म हिन्दुओं-ब्राह्मणों से भी पुराना है। लेकिन यह आंदोलन असफल हुआ। 14 अक्टूबर 1956 को बाबासाहब के हिन्दू धर्म छोड़ कर बुद्ध धर्म अपनाने के बाद, फिर यहाँ कोशिश हुई; लेकिन इस बार भी सफलता नहीं मिली। 2009 में इस समाज के सबसे बड़े डेरे, बल्लां के संत रामानंद जी का – कुछ कट्टरवादी सिखों द्वारा यूरोप में कत्ल हुआ। अलग धर्म का मसला फिर उठा। डेरे से घोषणा हुई कि हमारा धर्म “रविदासिया” होगा। फिर आम राय नहीं बन पायी।
अब 2021 में इन तीनों में से कौन सा धर्म अपनाना है, इस पर असहमति है; लेकिन हम हिन्दू नहीं है, इस पर सभी सहमत हैं।
हिन्दू धर्म छोड़ने और दूसरा धर्म अपनाने का मसला, जाटों में भी चल रहा है। एक युवा जाट नेता ने हाल में हिन्दू धर्म छोड़ कर, सिख धर्म अपनाया। एक और जाट नेता बताते हैं कि “जाट” तो हमेशा बौद्ध रहे हैं। पाकिस्तान में जाट बड़ी संख्या में मुसलमान और पंजाब में सिख हैं। वहाँ इनकी स्थिति, हिन्दू जाटों से कहीं बेहतर हैं। इन धर्मों में हिन्दू-ब्राह्मण धर्म की तरह, वर्ण व्यवस्था की कोई धारणा नहीं है। यहां जाट सत्ता और दूसरी संस्थाओं में शीर्ष तक पहुँच पाते हैं। हिन्दू धर्म में इन्हें शूद्र समझा जाता है; यहां सर्वोच्च पद ब्राह्मण-बनिया-क्षत्रिय के लिए आरक्षित हैं। हिन्दू जाटों ने जब अपने बच्चों के लिए आरक्षण माँगा, तो आरएसएस-बीजेपी की तरफ से गोलियां मिली।
धर्मांतरण के विषय पर, दक्षिण भारत के “लिंगायतों” का मामला ही अलग है। उनके लिए यह सवाल ही नहीं है कि हिन्दू धर्म छोड़कर कौन सा धर्म अपनाना है? उनके अनुसार, “लिंगायत” तो 12वी सदी से एक स्वतन्त्र धर्म है, जिसकी शुरुआत ही ब्राह्मणवाद के खिलाफ हुई थी। हमें तो इसे; सिख, बौद्ध और जैन की तरह, हिन्दुओं से अलग धर्म की मान्यता दिलवानी है।
लेकिन हिन्दू धर्म छोड़ने और किसी दूसरे धर्म को अपनाने का सवाल; सभी 6743 पिछड़ी, दलित, आदिवासी (OBC, SC, ST) जातियों से जुड़ा है। इन सभी को शूद्र,अछुत बनाकर, ब्राह्मणवाद हज़ारों साल से अपनी ग़ुलामी करवा रहा है।
ऐसा भी नहीं है कि OBC, SC, ST की और जातियों में हिन्दू धर्म के खिलाफ बगावत नहीं हुई।
दरअसल, इसकी शुरुआत ही सैनी-माली जाति में जन्में, राष्ट्रपिता महात्मा जोतीराव फुले द्वारा महाराष्ट्र से हुई। इसके बाद इसका नेतृत्व छत्रपति शिवाजी महाराज के वंशज, मराठा छत्रपति शाहू जी महाराज ने किया। इन्हें हिन्दू धर्म को मानने वालों और खासतौर पर ब्राह्मणों के भारी विरोध का सामना करना पड़ा।
दक्षिण की इज़हवा जाति, जो पहले अछूत समझी जाती थी और अब OBC है- में जन्मे नारायणा गुरु ने ब्राह्मणवाद के खिलाफ संघर्ष किया। इसके बाद पेरियार रामास्वामी ने दक्षिण में इस मशाल को उठाया।
उत्तर भारत में कुर्मी जाति के राम स्वरुप वर्मा, कुशवाहा-कोइरी जाति के बाबू जगदेव प्रसाद, यादव जाति के पेरियार ललई सिंह यादव; पिछड़ी जातियों में हुए इन ब्राह्मणवाद विरोधी आंदोलनों के बड़े प्रतीक हैं।
लेकिन यह बात दिलचस्प है कि इन जातियों के महानायक ब्राह्मणवाद विरोधी रहे हैं; लेकिन इन्हें मानने वाले, आज भी हिन्दू। वो ब्राह्मणवाद का विरोध भी करते हैं और हिन्दू बने रहकर इसे बढ़ावा भी देते हैं।
हिन्दू धर्म ग्रंथों- खासकर मनुस्मृति के अनुसार, शूद्र-ओबीसी (जाट, मराठा, सैनी, पटेल, कुर्मी, यादव) का धर्म; ब्राह्मण, बनिया, ठाकुर की सेवा करना है। इन्हें अधिकार नहीं है कि शिक्षा हासिल करें, ऊँचे पदों पर पहुँचे, अपना कारोबार करें या सरकारें बनायें। इनका जन्म, तीनों उच्च वर्णों (ब्राह्मण-बनिया-क्षत्रिय) की सेवा करना है। इसी से इनका जीवन सफल होगा। अगर सेवा अच्छे से की, तो शायद अगले जन्म में किसी उच्च वर्ण में जगह मिल सके।
तो क्या इन्हें फिर भी अपने को हिन्दू लिखवाते रहना चाहिए?
या फिर वो समय आ गया कि यह सभी जातियां, इनके नेता, बुद्धिजीवी, जागरूक लोक इस पर विचार-चर्चा शुरू करें। यह सवाल बौद्धिक वर्ग में तो चलता रहता है, लेकिन कभी आम चर्चा का विषय नहीं बना। जिस तरह आज उत्तर और दक्षिण भारत के कुछ हिस्सों में इस पर बहस छिड़ गयी है, उसी तरह देश की सभी OBC, SC, ST जातियों को इस पर चिंतन-मनन करने की ज़रूरत है।
इन्हें कौन सा धर्म अपनाना चाहिए? मुसलमान, ईसाई, सिख, बौद्ध, जैन या फिर इन्हें अपनी जाति के अलग धर्म स्थापित करने चाहिए? इस विषय पर सहमति 2021 तक बन सकेगी, यह कहना तो जल्दबाज़ी होगी। लेकिन कम-से-कम, इस ज़रूरी विषय पर ब्राह्मणों द्वारा 6743 जातियों में बाटें गए पिछड़ों, दलितों, आदिवासियों को सोचना तो शुरू कर ही देना चाहिए।
उसूलों पर जहाँ आँच आए, टकराना ज़रूरी है; जो ज़िंदा हो तो फिर ज़िंदा नज़र आना ज़रूरी है।
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सतविंदर मनख पेशे से एक हॉस्पिटैलिटी प्रोफेशनल हैं। वह साहेब कांशी राम के भाषणों को ऑनलाइन एक जगह संग्रहित करने का ज़रूरी काम कर रहे हैं एवं बहुजन आंदोलन में विशेष रुचि रखते हैं।
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