सन 1952 से ही दिन 31 अगस्त विमूक्त दिन के रूप में मनाया जाता आ रहा है. यह दिन इसीलिए ज़रूरी है क्यूंकि इस दिन, क्रिमिनल ट्राइब एक्ट (CTA) 1871 के तहत, विमुक्त जनजातियों (Denotified Tribes) को “क्रिमिनल” यानी अपराधी होने के लांछन से मुक्त किया गया था. यूं कहिये कि इस दिन ख़ानाबदोश और विमुक्त जनजातियों को इस लांछन से स्वतंत्रता प्राप्त हुईं, ब्रिटिश हुक़ूमत से आज़ादी पाने के 5 वर्ष बाद.
हमारे संघर्ष, इतिहास, कला, संस्कृति और गानो का पूंजीवाद और ऊँची-जाति कहे जाने वाले समाज ने अपने स्वार्थी मनोरंजन के लिए शोषित किया है. इस महीने, हम अपने अस्तित्व, संघर्ष और अनुभवों को अपनी शर्तों पर चित्रित करेंगे. इस प्रयास के माध्यम से, हम चाहते हैं कि वे लोग रौशनी में सामने आयें जिन्होंने अपने स्वयं के रिक्त स्थान को तराशा है, जो विशेषाधिकार का दोहन करने वाले समाज के खिलाफ खड़े हैं और अपने अध्ययन, अनुसंधान और जीवित अनुभवों के आधार पर कार्यक्रमों के माध्यम से अपनी आवाज़ मुखर करके मुख्यधारा के आख्यानों (narratives) को चुनौती दे रहे हैं.
ब्रिटिश हुक़ूमत अपराध को देखने का नजरिया जाति व्यवस्था जैसा ही था. ख़ानाबदोश और विमुक्त जनजाति के लोग जो ब्रिटिश हुक़ूमत के खिलाफ प्रतिरोध कर रहे थे, इनके ऊपर नियंत्रण रखने के उदेश्य से ब्रिटिश हुक़ूमत ने क्रिमिनल ट्राइब्स एक्ट 1871 के तहत करीब 200 आदिवासी समूहों को “जन्म-जात अपराधी” घोषित कर दिया था. दरअसल, औपनिवेशिक ब्रिटिश हुक़ूमत को मुश्किल हो रही थी, इनके विद्रोह को रोकने में.
ख़ानाबदोश जनजातियाँ जो गतिशील थीं, वह ब्रिटिश हुक़ूमत को अपनी ज़िंदगी और प्रशासन के लिए, एक “ख़तरे” के रूप में देखाई देती थीं. ब्रिटिश हुक़ूमत ने, ना सिर्फ़ उनको अपराधी घोषित किया बल्कि उन्होंने उनकी परंपरागत आजीविका के साधनों को, औपनिवेशिक बाजार की अर्थव्यवस्था और वनों का व्यावसायिक शोषण करके, नष्ट कर दिया.
भले ही क्रिमिनल ट्राइब एक्ट को 1952 में निरस्त कर दिया गया, लेकिन इसका स्थान तुरंत अभ्यासिक अपराधियों का क़ानून (हेबिचुयल अफेंडर्स एक्ट) ने ले लिया, जो CTA के सिलसिले को जारी रखे रहा. 70 साल की आज़ादी के बाद भी, हमारे लोगों की आज़ादी जो, 15% से ज़्यादा भारत की जनसंख्या का हिस्सा बनाते है, हमे विमुक्त घोषित करने के बाद भी, हम हिंसा, शोषण और भेदभाव से आज़ादी नहीं मिली है. हम अभी भी, समाज से बहिष्कृत और “अपराधी जन” के रूप में देखे जाते है. ऊंची जाति के लोगों से और पुलिस-प्रशासन द्वारा उत्पीड़ित होते है और भारतीय राज्य द्वारा उपेक्षित है.
आश्चर्य की बात यह है कि कोई भी क़ानून अभी तक नहीं बनाया गया जो इस तरह के शोषण और अन्याय से DNT समुदाय को बचाए. समाज और राज्य दोनो ही हमारे उत्पीड़क है. विमूक्त दिन पर हम अपना बुनियादी सवाल फिर से उठा रहे हैं कि हमारी आज़ादी कहाँ है?
ज़रूरी है के लोगों के बीच और प्रशासन के लोगों में ज़्यादा जागरूकता हो और क़ानून को बिना किसी भेदभाव के लागू किया जाए. इसी कारण से, कई कमिशन और कमेटियां, सरकार ने बनाई हैं, DNT जन के विकास के लिए. DNT जन की आवाज़ों और मुद्दों को अभी भी नहीं सुना जा रहा है. इसी वजह से हम सबको इस बातचीत को और समावेशी बनाते हुए न केवल जागरूकता बढ़ानी है बल्कि अलग अलग रणनीतियों को भी बनाने की ज़रूरत है.
हमारे हिस्से का काम करने के लिए, हम कुछ छात्र, एक्टिविस्ट, अकादमिक, ख़ानाबदोश और विमुक्त जनजाति से, इस महीने को, हमारे संघर्षों और हमारे पूर्वाजों के संभाषण को आगे ले जाने की कोशिश कर रहे है.
हम यह विमुक्त महीने की शुरुआत, अन्नाभाऊ साठे के जन्मदिन, 1 अगस्त को मानते हुए कर रहे है. उन्होंने हमारी सामाजिक वास्विकताओं को कहानियों, नाटकों और किताबों द्वारा बताया है. बरबादया कंजरी, येनकु मकड़वाला, गिलवर और येमु जैसों की तिरस्कृत जिंदगियाँ उनके लेखन के केंद्र में आयीं.
पहले सप्ताह में, हमारे अतिथि वक्ता – प्रदीप मोहिते, संगीता पाइकेरी और रेणुकादास उबाले उनके लेखन का अन्वेषण करेंगे. यह समर्पण हमारे हिस्से पर साठे के श्रम की विनम्र स्वीकारोक्ति है.
बाद के हफ्तों में, हम सांस्कृतिक प्रदर्शनों की मेजबानी करेंगे, जिसमें ऑटोबायोग्राफ़िकल रीडिंग, कविता, NT, DNT जन को दर्शाते हुए गीतों का प्रदर्शन और प्रस्तुति करेंगे.
शनिवार और रविवार को NT, DNT के ज़िन्दगियों से संबंधित चुनौतियों की एक विस्तृत श्रृंखला पर सम्मानित अतिथियों के साथ सप्ताहांत पर आयोजित पैनल चर्चा होगी, जेंडर, स्वास्थ्य, शिक्षा और आगे के रास्ते और रणनीतियों को लेकर.
1 और 31 अगस्त के बीच विमुक्त माह मनाने के लिए ‘भटके विमुक्त युवा परिषद’ और ‘नोमेडिक लिबर्टी मूवमेंट’ के फेसबुक पेजिस पर हमसे जुड़ें और अपडेट पाते रहे.
इस कार्यक्रम का आयोजन विमूक्तंचे स्वतन्त्र्या आंदोलन, भटके विमूक्त युवा परिषद, अनुभूति चैरिटेबल ट्रस्ट, संघर्ष वाहिनी, भूमि ग्रामोत्थान, इवाम शभगी ग्रामीण विकी समाज समिति, मुरैना सांसद, और विटनेस फॉर जस्टीस इन संस्थानो द्वारा सामूहिक रूप से किया गया है.
#VimuktaMonth
#NTDNTLivesMatter
#NTDNTFight
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उपरोक्त लेखन आरती, जो TISS, मुंबई में पी.एच.डी. स्कॉलर हैं और दिशा वाडेकर, जो दिल्ली में वकालत कर रही हैं, से प्राप्त हुई.
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