झुंडः सरोकार का कलात्मक सौंदर्यबोध और समाज मनोविज्ञान की संवेदना

परतों के पार से फूटते सवाल के साथ झुंड ने नजरिये की नई कसौटी सामने रखी है, जिसके पैमाने पर परंपरावादी विचार-सत्ता को शायद अपने आग्रहों के भीतर झांकने का मौका मिले। अरविंद शेष (Arvind Shesh) शेर अगर भेड़िए से डरता है तो इसकी वजह है! भेड़िए की असली ताकत उसके दांत नहीं होती है, भेड़िए की असली ताकत उसका […]

शैक्षणिक संस्थानों में प्रशासनिक अकर्मण्यता: प्रावधान और अनुपालन

राघवेंद्र यादव (Raghavendra Yadav) जैसा कि यह सर्वविदित है कि अतीत में हुए सामाजिक अन्याय व भेदभाव से उपजे गैर बराबरी को मिटाने के लिए संविधान प्रदत्त अधिकार सही तरह से जमीनी स्तर पर इम्प्लीमेंट (अमल) नहीं हो पायें हैं। आज आज़ाद भारत आठवें दशक के पूर्वार्द्ध में है लेकिन हैरत की बात है कि आज तक सरकारें और स्वायत्त […]

झुंड- मानव अस्तित्व की लड़ाई

जे. एस. विनय (J. S. Vinay) नागराज मंजुले वापस आ गए हैं और इस बार वह हमें अपनी पहली हिंदी फिल्म झुंड (जो 4 मार्च, 2022 को रिलीज़ हुई थी) के माध्यम से साहस की अज्ञात कहानियाँ बता रहे हैं। नागराज लोगों को सबसे संवेदनशील तरीके से चित्रित करने के लिए जाने जाते हैं और उनकी फिल्मों में उच्च श्रेणी […]