एक नन्हीं कहानी – थोड़ी कविता की रंगत में गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) वो अचानक से प्रकट हुआ कहने लगा इस देश का पेट ख़राब है भ्रष्टाचार के कीड़े हैं इसमें खोखला हो रहा है ये मेरे पास दवा है मेरे साथ आओ देश भक्त बनो देश भक्ति दिखाओ सभी ने उसकी बात को […]
वो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते
पसमांदा-बहुजन आन्दोलन के सिपाही मुर्तुज़ा अंसारी जी को याद करते हुए फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) बस अब गोरखपुर शहर में दाखिल हो चुकी थी. धीरे धीरे रेंगती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ रही थी. मैं मीटिंग में जल्द से जल्द पहुंचना चाह रहा था. गोरखपुर मेरे लिए अंजाना था और मैं गोरखपुर के लिए बिल्कुल नया. लेकिन मेरे […]
कैलाश वानखेड़े की बहुआयामी कथा ‘जस्ट डांस’ को सम्मान
कथाकार कैलाश वानखेड़े हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी हर नई कहानी के साथ गाढ़े होते हस्ताक्षर हैं. उनके कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ ने अपने विषय -सामग्री, दृष्टिकोण और लेखन-विधा के चलते सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था. गए 28 अगस्त को उन्हें उनकी नई कहानी ‘जस्ट डांस’ के लिए ‘राजेंद्र यादव ‘हंस’ कथा सम्मान 2017′ से सम्मानित किया […]
हमें भारत मे छुआछूत, दंगा और बाबा म्यूज़ियम चाहिए
संजय जोठे (Sanjay Jothe) जर्मनी और रवांडा जैसे कुछ अफ्रीकी देशों में कई सारे होलोकॉस्ट म्यूज़ियम हैं. स्कूल कॉलेज के बच्चों को वहां दिखाया जाता है कि हिटलर के दौर में या हुतु तुत्सी जातीय हिंसा के दौर में किस नँगाई का नाच हुआ था, कैसे पढ़े लिखे समझदार लोग जानवर बन गए थे और एकदूसरे की खाल […]
साहब कांशी राम और ‘दलित’ शब्द का सवाल?
सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) आज पूरे भारत और यहाँ तक कि विश्वभर में ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल को लेकर समाज, विशेषकर, बहुजन समाज सहमति-असहमति की दो रायों के बीच बंट गया है. जहाँ एक ओर ब्राह्मणवादी मीडिया और समाज इसे बढ़ा-चढ़ा कर इस्तेमाल कर रहा है, वहीं ST, SC, OBC की मूलनिवासी बहुजन जातियाँ भी इस विषय पर बंटी हुईं हैं। […]
भारतीय कौमवाद (राष्ट्रवाद) : हकीक़त या छल
सरदार अजमेर सिंह (S. Ajmer Singh) ‘कौमवाद’ का संकल्प, मूल रूप में एक पश्चिमी संकल्प है जो अपनी साफ़ साफ़ सूरत के साथ मध्ययुग के आखिरी दौर में प्रकट हुआ. यह प्रिक्रिया जितनी व्यापक यानी फैली हुई है, उतनी ही अलग भी है. व्यापकता, एतिहासिकता और भिन्नता-विभिन्नता इसके संयुक्त लक्षण हैं. इसलिए इसकी कोई ठोस या पक्की परिभाषा संभव […]
बौद्ध धर्म के पतन का कारण और भविष्य की दिशा
संजय जोठे (Sanjay Jothe) बौद्ध धर्म के पतन के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं है. लेकिन आधुनिक रिसर्च से आजकल कुछ बात स्पष्ट हो रही है. इस विषय को ठीक से देखें तो भारत में बौद्ध धर्म का पतन का और स्वयं भारत के एतिहासिक पतन और पराजय का कारण अब साफ़ होने लगा है. इस प्रश्न […]
बस, मैं ही मैं हूँ, दूसरा कोई नहीं- सवर्ण द्विज की साजिशी रट
संजय जोठे (Sanjay Jothe) जापानी टेक्नोलॉजी और अर्थव्यवस्था की बात अक्सर ही की जाती है। जो सवर्ण द्विज हिन्दू जापान यूरोप अमेरिका आदि आते-जाते हैं वे बड़ी होशियारी से वहाँ के समाज और सभ्यता की विशेषताओं को छिपाते हुए वहाँ की तकनीक, विज्ञान, मौसम, भोजन आदि की बातें करते पाए जाते हैं. बहुत हुआ तो वे वहाँ के […]
सर सय्यद अहमद खां – शेरवानी के अन्दर जनेऊ
मसूद आलम फलाही (Masood Alam Falahi) मौलाना मुहम्मद क़ासिम सिद्दीक़ी नानौतवी के गुरु मौलाना ममलूक अली नानौतवी के शिष्य1 सर सय्यद अहमद खां (1817-1898) जिन्होंने क़ुरान मजीद की तफ़सीर (अनुवाद) लिखी और अलीगढ़ में (1875) में “मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज (मदरसा-तुल-उलूम)” खोला जो 1920 में ‘अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी’ में परिवर्तित हो गया. वो शैक्षिक मिशन रुपी नाव के मल्लाह थे […]
दरअसल बाबरी मस्जिद पसमांदा समाज का मुद्दा है ही नहीं
शफ़ीउल्लाह अनीस (Shafiullah Anis) हर समाज के अपने मुद्दे होते हैं। जिस तरह से विकसित देश के मुद्दों को पहली दुनिया की समस्या (first world problems) कहा जाता हैं और विकासशील देशों के मुद्दों को तीसरी दुनिया की समस्या (third world problems) कहा जाता हैं, उसी तरह पसमांदा समाज और अशराफ समाज के मुद्दे भी अलग अलग हैं। अमेरिका […]