दिलीप मंडल (Dilip Mandal हैदराबाद सेंट्रल यूनिवर्सिटी के रोहित वेमुला और आईआईटी कानपुर के डॉक्टर सुब्रह्मण्यम सदरेला दोनों में कई समानताएं और एक फर्क है. दोनों अपने विषय के अच्छे विद्वान माने गए. दोनों आंध्र प्रदेश के बेहद गरीब परिवार से आए और शिक्षा के शिखर पर पहुंचे. एक पीएचडी कर रहा था, दूसरे ने पीएचडी पूरी कर ली […]
“मिले मुलायम कांशी राम, हवा हो गए जय श्री राम” नारे का जादू आज भी बरकरार
चुनाव विशेष सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) जब 1993 के ऐतिहासिक उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनावों में साहब कांशी राम ने “मिले मुलायम कांशी राम, हवा हो गए जय श्री राम” का नारा दिया तो शायद ही उन्हें इस बात का अहसास होगा कि 25 साल बाद, यह नारा दुबारा ज़िंदा होकर फिर से देश की राजनीतिक दिशा बदलेगा. तब […]
हरिजन नहीं हरिद्रोही बनो (कविता)
सूरज कुमार बौद्ध (Suraj Kumar Bauddh) अब संतोष नहीं संताप करो नवीन इतिहास का परिमाप गढ़ो अपने हक हुक़ूक़ हेतु आरोही बनो विद्रोही बनो! विद्रोही बनो! गुलामी के अस्तबल से बाहर निकल अटल अडिग अश्वरोही बनो विद्रोही बनो! विद्रोही बनो! वे सर्वोच्चता की ललक में रक्तपिपासु हो गए हैं एक एक करके, बारी बारी मार कर […]
साहब कांशी राम और बहुजन आंदोलन
आज ‘बहुजन समाज दिवस’ पर विशेष सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) साहब कांशी राम का जन्म 15 मार्च 1934 को अपने नैनिहाल पिरथी पुर बुंगा साहिब, जिला रोपड़, पंजाब में हुआ था। उनकी माता का नाम बिशन कौर और पिता का नाम सरदार हरी सिंह था। उनका पैतृक गाँव खुआसपुर, जिला रोपड़ था जो की रोपड़ से 3 किलोमीटर की दुरी […]
दलित और राष्ट्रवाद/राष्ट्रीयता का सवाल (पाकिस्तान की मिटटी से)
लेखक: गणपत राय भील (Ganpat Rai Bheel) अनुवादक: फ़ैयाज़ अहमद फ़ैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) यह एक ऐसा सवाल है जो हर उस अन्तःमन में पलता है जो इस व्यवस्था और इसके सत्ताधारी साथियों के अत्याचार का शिकार है। हम इस विषय पर दलितों का नज़रिया रखने की कोशिश करेंगे। दलित पाकिस्तान में आबाद एक महत्वपूर्ण सामाजिक समूह है। दलित […]
आतंकवाद का मूल: वहाबीवाद या सैयदवाद/इबलीसवाद?【1】
एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) आतंक का मकसद और अर्थ घबराहट, डर, भय पैदा करना होता है. यदि आतंकवाद को सीधे-सीधे परिभाषित किया जाये तो हर वह व्यक्ति, संगठन निःसन्देह आतंकवादी है जिसके कृत्यों से लोगो में भय, घबराहट अथवा डर पैदा हो. एक तरफ जहाँ हमारे देश में ही कई ऐसे संगठन【2】तथा राजनैतिक दल【3】हैं जिनके […]
बाबासाहेब डॉ आंबेडकर और आदिवासी प्रश्न
डॉ रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) क्या डॉ आंबेडकर आदिवासी विरोधी थे? क्या उन्होने दलित अधिकारो की कीमत पर आदिवासी अधिकारों की अवहेलना की? ये सवाल अभी हाल ही कुछ वर्षों मे कुछ लेखकों ने उठाए हैं। हालांकि बाबसाहब पर इस तरह के इल्ज़ाम कोई नए नहीं हैं। वैसे यह सच है कि बाबा साहेब डॉ आंबेडकर तो हमेशा […]
हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? (कविता)
ओबेद मानवटकर (Obed Manwatkar) लेखक ब्रज रंजन मणि जी की प्रसिद्ध कविता ‘किसकी चाय बेचता है तू?’ की तर्ज़ पर हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? बात-बात पे नाटक क्यूँ करता है तू? पकोड़े वालों को क्यों बदनाम करता है तू? साफ़ साफ़ बता दे, हमें पकोड़ा बेचने को क्यूँ कहता है तू? खून लगाकर अंगूठे […]