एक अंबेडकरवादी परिवार के होने का महत्व

तेजस्विनी ताभाने पिछले महीने मैंने एक लेख ‘हम में से कुछ को तमाम उम्र लड़ना होगा: अनूप कुमार’ राउंड टेबल इंडिया (अंग्रेजी) पर पढ़ा था, जहां अनूप सर ने बताया कि कैसे हमारे समाज के हाशिए वाले वर्गों के छात्रों को उच्च शैक्षणिक संस्थानों में पहचान को लेकर कई असहज सवाल पूछे जाते हैं, और यह कि अगर आप एक […]

वाल्मीकियों का पहला एतिहासिक मोर्चा (1933 से 1938 तक)

पंडित बख्शी राम (Pandit Bakhshi Ram) आदि धर्म आन्दोलन के बाद जालंधर में पंजाब भर के वाल्मीकियों का 1933 में सम्मलेन हुआ. स्वागती कमेटी बनी जिसका प्रधान बाबु गंढू दास को और जनरल सेक्रेटरी पंडित बख्शी राम को बनाया गया. सम्मलेन में विचाराधीन मुद्दे महाऋषि वाल्मीकि का जन्म उत्सव मनाना और दुसरे राम तीरथ वाल्मीकि मंदिर में प्रवेश करना था. […]

पंजाब की भंगी लहर (सन 1939)

पंडित बख्शी राम (Pandit Bakhshi Ram) जालंधर म्युन्सिपल कमेटी पर क़ाज़ी बशीर अहमद का कब्ज़ा था और उसके मुकाबले शेख गुलाम मोहम्मद का ग्रुप था. उसे कांग्रेस पार्टी की हिमायत थी. शेख गुलाम साहेब बस्ती शेख के रहने वाले थे. वहीँ के ही वाल्मीकि नेता चुन्नी लाल और बालमुकुन्द थे. उनका गुलाम मोहम्मद के साथ मेलजोल था. गुलाम मोहम्मद की […]

भारत के सभ्य होने की राह में सबसे बड़ी बाधा – भारत का अध्यात्म और रहस्यवाद

संजय जोठे (Sanjay Jothe) भारत का अध्यात्म असल में एक पागलखाना है, एक ख़ास तरह का आधुनिक षड्यंत्र है जिसके सहारे पुराने शोषक धर्म और सामाजिक संरचना को नई ताकत और जिन्दगी दी जाती है. कई लोगों ने भारत में सामाजिक क्रान्ति की संभावना के नष्ट होते रहने के संबंध में जो विश्लेषण दिया है वो कहता है कि भारत […]

जाति का सवाल और खालिस्तान के दायरे – कुछ इशारे

गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) अलग सिख राज्य की मांग जो काफी समय से खालिस्तान के लिए जद्दोजेहद में तब्दील हो चुकी है, एक काबिल-ए-गौर प्रश्न है.   खालिस्तान की जद्दोजेहद में अगर ब्राह्मणवाद को सेलेक्टिव या अपनी सहूलियत के मुताबिक ही एड्रेस करना है तो मुझे अपने अनुभव से कहना होगा कि इस लड़ाई में लगे लोग गोल गोल ही […]

धर्म की व्याख्या का खेल

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म देखी The Birth of A Nation. ये फ़िल्म नैट टर्नर नामक गुलाम पे आधारित है जिसने गुलामी के विरुद्ध 1831 में अमेरिका में विद्रोह किया था. इस फिल्म के नायक नैट टर्नर को उसके गोरे मालिक पढ़ना सिखाते हैं. पर सिर्फ वहीं तक कि वह बाइबिल पढ़ सके उससे आगे उसे पढ़ने […]

मुस्लिम समाज में ऊँच-नीच की सत्यता

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) ‘वह झूठ नंगी सड़क पर उठाते फिरता है, मैं अपने सच को छिपाऊँ ये बेबसी मेरी’ कुछ लोग बड़े दावे से कहते है कि भारतीय मुसलमानों में व्याप्त ज़ात-पात/ ऊँच-नीच की बीमारी दूसरे शब्दों में किसी को हसब-नसब (वंश) की बिनाह पर आला (श्रेष्ठ), अदना (नीच/छोटा) समझने की विचारधारा की वजह […]

पसमांदा आंदोलन के बागबान- अभिनेता दिलीप कुमार

अभिजीत आनंद (Abhijit Anand) [अनुवादक: फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी] हम भारतीय सिनेमा को प्यार करते हैं उसको सोते, जागते, ओढ़ते, बिछाते हैं उसके लिए प्रार्थना करतें हैं। मशहूर हस्तियों को लोग सीमाओं से परे होकर चाहते हैं। अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हमारे दिलों दिमाग मे एक खास जगह बनाये रहते हैं और हम जैसे दर्शकों को सिनेमा हॉल की चारदीवारी के बाहर […]

तलाक़ का मामला, इस्लाम और अशराफिया सत्ता

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) तलाक़, उर्दू, अलीगढ़, मदरसे, बाबरी मस्जिद आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसपे सारी अशराफिया मुस्लिम सियासत आ के खत्म हो जाती है. न इससे आगे कुछ सोचा जाता है न बात की जाती है. शिक्षा, रोज़गार, पसमांदा जैसे मुद्दे हमेशा ही इनके लिए दुसरे दर्जे के मुद्दे रहें हैं. अशराफिया मुस्लिम सियासत हमेशा ही मुस्लिम आरक्षण […]

सवर्ण मुसलमानों के लिए फिक्रमंद सर सयेद अहमद ख़ाँ

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Nurulain Zia Momin) इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. […]