मेरे हाथ में कलम है…

करुणा (Karuna) 1इतिहास हमारा छीन कर कब तक मौज मनाओगे वीर गाथा दबा कर हमारी शेर तो ना बन जाओगेधूर्त ही कहलाओगे मेरे हाथ में कलम है जो अब उसने चलना सीख लिया है इतिहास की परतें खोल रही हूँ मैंने खोजी होना सीख लिया है काफी कुछ तो ढूँढ लिया है बहुत कुछ मगर अभी है बाकि झूठी शानो-शौकत […]

भारतीय सिनेमा के पसमांदा सवाल

अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) एक लंबे दौर तक भारतीय सिनेमा जाति और जातिगत समस्याओं की न केवल अनदेखी करता रहा है बल्कि भीषण जातिगत वास्तविकताओं को अमीर बनाम गरीब (कम्युनिस्ट नज़रिये) की परत चढ़ा कर परोसता रहा है। दलित सिनेमा की कोशिशों से ये परत साल दर साल धूमिल पड़ती जा रही है और इस प्रयास में 2021 दलित सिनेमा […]

भारत के शहरी निजी क्षेत्र में जातिगत भेदभाव

प्रीति चंद्रकुमार पाटिल (Preeti Chandrakumar Patil) सुखदेव थोरात और कैथरीन न्यूमन ने अपने लेख ‘जाति और आर्थिक भेदभाव: कारण, परिणाम और उपाय’ (कास्ट एंड इकनोमिक डिस्क्रिमिनेशन: कॉसेस, काँसेकुएन्सेस एंड रेमेडीज) में सामाजिक बहिष्कार को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया है जिसके द्वारा कुछ समूहों को सामाजिक सदस्यता निर्धारित करने वाली आर्थिक, शैक्षिक और सामाजिक संस्थाओं में प्रवेश […]