भारतीय सिनेमा के पसमांदा सवाल

अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) एक लंबे दौर तक भारतीय सिनेमा जाति और जातिगत समस्याओं की न केवल अनदेखी करता रहा है बल्कि भीषण जातिगत वास्तविकताओं को अमीर बनाम गरीब (कम्युनिस्ट नज़रिये) की परत चढ़ा कर परोसता रहा है। दलित सिनेमा की कोशिशों से ये परत साल दर साल धूमिल पड़ती जा रही है और इस प्रयास में 2021 दलित सिनेमा […]

‘आर्टिकल 15’ : ‘समरसता’ के सहारे जाति के जाल में जोर-आजमाइश

arvind shesh

अरविंद शेष (Arvind Shesh) पिछले कुछ समय से लगातार यह मांग उठ रही थी कि अगर कोई सवर्ण पृष्ठभूमि का व्यक्ति जाति से अभिन्न समाज में बदलाव लाने की इच्छा रखता है तो उसे सबसे पहले ‘अपने समाज’ यानी अपने जाति-वर्ग को संबोधित करना चाहिए। इसकी वजह यह है कि जाति का समूचा ढांचा न केवल उच्च कही जाने वाली […]