जाहिलियत खत्म नहीं हुई: सिलहट-कछार क्षेत्र के महिमल के खिलाफ सामाजिक पूर्वाग्रह

डॉ. ओही उद्दीन अहमद (Ohi Uddin Ahmad) एक अंतर्देशीय मुस्लिम मछली पकड़ने वाली जाति जो मुख्य रूप से बांग्लादेश के सिलहट क्षेत्र और असम के बराक घाटी और उनके आसपास के क्षेत्रों में बसी हुई है, उनकी महिमल (स्थानीय बंगाली बोली में मैमल) के नाम से जाना जाता है। महिमल शब्द की उत्पत्ति दो फ़ारसी शब्दों ‘माही’ अर्थात मछली और […]

भारतीय सिनेमा के पसमांदा सवाल

अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) एक लंबे दौर तक भारतीय सिनेमा जाति और जातिगत समस्याओं की न केवल अनदेखी करता रहा है बल्कि भीषण जातिगत वास्तविकताओं को अमीर बनाम गरीब (कम्युनिस्ट नज़रिये) की परत चढ़ा कर परोसता रहा है। दलित सिनेमा की कोशिशों से ये परत साल दर साल धूमिल पड़ती जा रही है और इस प्रयास में 2021 दलित सिनेमा […]

Ghoul वेबसीरीज | राज्य का आतंकवाद व् पसमांदा दृष्टिकोण | समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) अरबी दास्तानो में एक राक्षस या फिर जिन्न् के बारे में ज़िक्र है जो इंसानो की रूह के बदले उनका कोई काम कर देता है. इस राक्षस का नाम गूअल “Ghoul” हैं. इसी राक्षस (Ghoul) के नाम पर नेटफ्लिक्स (Netfilix) ने एक डरावनी मिनीसीरीज़ (horror miniseries) बनाई है जो मात्र 3 एपिसोड की है. इसे पैट्रिक […]

रिक एंड मोर्टी: सृष्टि, विज्ञान और इंसान (वेबसीरिज़ समीक्षा)

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) रिक एंड मोर्टी (Rick and Morty) एक अमेरिकी सिटकॉम (sitcom) है जिस को जस्टिन रोइलैंड (Justin Roiland) और डेन हारमॉन (Dan Harmon) ने बनाया है। 2013 से अब तक इसके पाँच दौर यानि सीज़नस (seasons) आ चुके हैं। पहली नज़र में यह सीरीज़ आप को बच्चों का कोई आम सा कार्टून नज़र आएगी पर यक़ीन करें […]

रेडियो रवांडा बनता भारतीय मीडिया

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) “जब मैं अनाथालय में पहुंची तो उससे पहले ही हुतू समुदाय के दंगाई वहाँ पहुंच चुके थे। वह दोनों बहनें बच्चियां थीं। उसकी छोटी बहन को वह लोग पहले ही मार चुके थे। बड़ी बहन दौड़ कर मेरे पास आई और मुझ से लिपट गयी। उसे लगा कि मैं उसे बचा लूंगी। वह ज़ोर-ज़ोर से कहने […]

क्या पसमांदा शब्द पर पुनः विचार करने की ज़रुरत है?

khalid anis ansari

खालिद अनीस अंसारी (Khalid Anis Ansari) इधर कुछ दिनों से एक व्हाट्सएप ग्रुप में पसमांदा शब्द पर चल रही भीषण बहसों को देख रहा था. ग्रुप में कुछ लोगों की राय थी कि पसमांदा शब्द पर दोबारा सोचने की ज़रुरत है क्योंकि यह पिछड़ेपन को दर्शाता है और ऐसी मानसिकता के साथ विकास संभव नहीं है. मैं अपने सीमित अनुभव […]