मनोज सिंह शोधार्थी, टीना कर्मवीर (Manoj Singh, Teena karamveer) भारत का संविधान 26 जनवरी 1950 को लागू होता है जहाँ से धर्मनिरपेक्षता की अवधारणा परिलक्षित होती है. इस अवधारणा की विरासत हम रविदास और कबीर दास की विचारधारा में खोज सकते हैं. जहाँ पर उन्होंने राजनीति से परे रखा तथा सर्व धर्म समभाव की बात की तथा निर्गुण भक्ति की अवधारणा […]
रावेन और रावण के भ्रम में उलझता कोइतूर समाज
डॉ सूर्या बाली ‘सूरज धुर्वे’ (Dr. Surya Bali ‘Suraj Dhurve) किसी भी संस्कृति में उसके नायकों और प्रतीकों का सम्मान व् स्वागत उस संस्कृति को संरक्षित और संवर्धित करने के लिए आवश्यक होता है. इन्ही नायकों को जीवित रखने के लिए तरह तरह के आयोजन, पर्व और तीज त्योहारों का आयोजन किया जाता है. ऐसे ही एक पौराणिक कथानक रामायण […]
साहब कांशी राम का मिशन अधूरा, कैसे हो पायेगा पूरा ?
सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) इस ९ अक्टूबर को साहब कांशी राम का १३वां परिनिर्वाण दिवस है। उनके जाने के बाद, जो लहर उन्होंने शुरू की; आज वो किस हालत में है ? बहुजन समाज को इस देश के हुक्मरान बनाने का जो सपना उन्होंने देखा था, क्या वो पूरा हो सका ? अगर नहीं, तो फिर उसके क्या कारण […]
कांग्रेस में समान प्रतिनिधित्व की अभिलाषा में पिछड़ा वर्ग
देवी प्रसाद (Devi Prasad) मुझे अभी भी याद है बचपन का वो दिन जब ग्रामीण दलित-बहुजन महिलाएं स्थानीय भाषाओं में लोकगीत गाते हुए वोट डालने जाती थी, और गाने का मुखड़ा होता था- “चला सखी वोट दय आयी, मुहर ‘पंजा’ पर लगाई.” दलित-बहुजन समाज पर अनेक लेख पढ़ने-लिखने के पश्चात मेरा ध्यान उन गाती हुयी ‘मतदाताओं’ और उस समाज के […]