बुद्धिज़म में लैंगिकता की परिभाषा

डॉ. अमृतपाल कौर (Dr. Amritpal Kaur) मनुष्य में यौन भावनाओं की क्षमता को लैंगिकता (Sexuality) का नाम दिया गया है. लैंगिकता को विचारों, कल्पनाओं, अरमानों, विश्वासों, रवैयौं, मूल्यों, व्यवहारों, आचरणों अथवा संबंधों के माध्यम से अनुभव और व्यक्त किया जाता है. सामंजस्यपूर्ण समाजिक और पारस्परिक संबंधों के निर्माण के लिए लैंगिकता का एक साकारात्मक अथवा रचनात्मक ढंग से विकसित होना […]

एक बौद्ध पीढ़ी को तैयार करना

चंचल कुमार (Chanchal Kumar) जब हम बड़े हो रहे थे इस दौरान हमारे माता-पिता ने जाति पर किसी भी स्पष्ट चर्चा से हमें बचा लिया, शायद यह मानते हुए कि अगर इस दानव के बारे में बात ही न की जाए तो इसका अस्तित्व खुद ही समाप्त हो जाएगा. इसे देखने का एक और तरीका यह हो सकता है कि […]

संगठनात्मक-नेतृत्व के सिवा कोई करिश्मा दलित-राजनीति के किसी काम का नहीं

राहुल सोंनपिंपले (Rahul Sonpimple) करिश्मा मायावी दुनिया का शब्द है लेकिन नेतृत्व को परिभाषित करने के लिए यह शब्द आम इस्तेमाल होता है. करिश्माई नेतृत्व को आमतौर पर आवश्यक और सहमति के रूप में लिया जाता है, खासकर राजनीति में. हालांकि, करिश्माई नेतृत्व का इतिहास इस तरह के रोमांसवाद को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकता है. हिटलर के […]

भारत सरकार को चाहिए कि एक लाख एससी-एसटी युवाओं को उच्च शिक्षा के लिए विदेश भेजे

अंशुल कुमार (Anshul Kumar) महल के शिखर पर बैठे पुरुष “तो , मैं एक दिन लिनलिथगो के पास गया और शिक्षा पर होने वाले खर्च के बारे में कहा, “यदि आप क्रोधित न हों तो मैं एक प्रश्न पूछना चाहता हूँ। मैं पचास [हाई स्कूल] स्नातकों के बराबर हूँ, है ना?” उसे (लिनलिथगो को) इसके लिए राजी होना पड़ा। फिर […]

जाति, और भारतीय कानूनी व्यवस्था की विफलता

रचना गौतम (Rachna Gautam) प्रत्येक सभ्य समाज में समाज के समुचित शासन के लिए कानून की अनिवार्य आवश्यकता होती है. मनुष्य होने के कारण लोग तर्कसंगत होते हैं और उस दिशा में आगे बढ़ते हैं जो उनके हित को सर्वोत्तम रूप से पूरा कर सके, और विभिन्न रुचियों वाले कई लोगों की एक साथ उपस्थिति के कारण हो सकता है […]

तब्लीग़ी जमात से दुनिया और आख़िरत की बात

Ayaz S 3

डॉ. अयाज़ अहमद (Dr. Ayaz Ahmad) सालों बाद कल तब्लीग़ी जमात के दो सिपाहियों से एक बार फिर आमना सामना हो ही गया. हुआ यूँ की शाम के वक़्त सोसाइटी पार्किंग के पास एक पड़ोसी से पार्किंग झमेलों पे बात चल रही थी. तभी चार जमाती सिपाही दो बाइक्स से पार्किंग के पास उतरे. उनकी नज़र हमारे पड़ोसी पे शायद […]

अर्ध सत्य और समानांतर सिनेमा के आधे-अधूरे सत्य

राहुल गायकवाड (Rahul Gaikwad) तो उस दिन, मैं बस यही सोच रहा था कि इस समाज में भ्रष्टाचार विरोधी भाषणबाजी कैसे और कब से चलन में आई। मुख्यधारा के मीडिया द्वारा समर्थित अन्ना हजारे और केजरीवाल की जोड़ी के नेतृत्व में ‘इंडिया अगेंस्ट करप्शन अभियान’ के दौरान हमने इसे बदसूरती के पूर्ण चरम पर देखा। अचानक, मुझे फिल्म ‘अर्ध सत्य’ […]