जाति आधारित हिंसा और स्वतंत्रता का अमृत

डॉ शीतल दिनकर आशा कांबले (Dr. Sheetal Dinkar Asha Kamble) मैं आज बहुत परेशान हूँ। देश में अमृत महोत्सव चल रहा है। देश को आज़ाद हुए 75 साल हो चुके हैं। लेकिन क्या जाति व्यवस्था खत्म हो गई है? यह कार्य अभी अधूरा पड़ा है। राजस्थान के जालोर जिले में स्वतंत्रता दिवस समारोह की पूर्व संध्या पर एक बर्तन से […]

जाति, और भारतीय कानूनी व्यवस्था की विफलता

रचना गौतम (Rachna Gautam) प्रत्येक सभ्य समाज में समाज के समुचित शासन के लिए कानून की अनिवार्य आवश्यकता होती है. मनुष्य होने के कारण लोग तर्कसंगत होते हैं और उस दिशा में आगे बढ़ते हैं जो उनके हित को सर्वोत्तम रूप से पूरा कर सके, और विभिन्न रुचियों वाले कई लोगों की एक साथ उपस्थिति के कारण हो सकता है […]

हिन्दू राष्ट्रवाद सदी का सबसे बड़ा झूठ

के.सी. सुलेख (K. C. Sulekh) राष्ट्रवाद उस सामूहिक जज्बात का नाम है जो एक देश/इलाके के निवासियों को अपने साझे हितों की सुरक्षा के लिए जोड़कर रखता है. अलग अलग देशों में रहने वाले लोगों के स्थानीय हालातों के मुताबिक धार्मिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और सुरक्षात्मक हित अलग अलग हो सकते हैं जो कई बार आपसी झगड़ों और, यहाँ तक […]