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चंचल कुमार (Chanchal Kumar)

जब हम बड़े हो रहे थे इस दौरान हमारे माता-पिता ने जाति पर किसी भी स्पष्ट चर्चा से हमें बचा लिया, शायद यह मानते हुए कि अगर इस दानव के बारे में बात ही न की जाए तो इसका अस्तित्व खुद ही समाप्त हो जाएगा. इसे देखने का एक और तरीका यह हो सकता है कि उन्होंने हमें चेतावनी देने की कोशिश की हो लेकिन हम इतने अधिक व्यस्त थे कि हमने ध्यान ही नहीं दिया. देश की वास्तविकताओं के बारे में भी हम बहुत भोले थे. हम किसी भी तरह से उस कठोर सदमे के लिए तैयार नहीं थे जो हमारा इंतजार कर रहा था. हमें एहसास हुआ कि बड़े ही उज्ज्वल शहर के कालेज में पढ़ते हमारे सवर्ण साथी हमसे नफरत करते हैं क्योंकि हम उसी जाति के नहीं हैं जिस जाति के वे हैं. इस पर तुर्रा ये कि इन सवर्णों ने सोच लिया कि हम इस संस्थान में पढ़ने के लायक नहीं क्योंकि उनकी नज़र में हमारे पास योग्यता की कमी थी.

मेट्रो शहरों में अपनी सवर्ण कोलोनियों में गेटेड सोसाइटीज़ में पले-बढ़े इन सवर्णों के लिए यह शायद पहली बार था कि उन्होंने अपने टीवी सेट और लैपटॉप के बाहर एक जीवित, सांस लेने वाले दलित का सामना किया था. जब उन्होंने महसूस किया कि हम उनके जैसे ही अच्छे हैं, तो इससे उनके अहंकार को ठेस पहुंची. वे समझ नहीं पा रहे थे कि जाति वर्चस्ववादीयों ने जो उनके माता-पिता को बताया और परिवार के सदस्यों ने जो उन्हें बताया वो वास्तविकता की कसौटी पर खरा नहीं था. उनकी सवर्ण दुनिया में हम एक विसंगति थे, जहां दलित इसलिए अयोग्य हैं क्यूंकि नियम ऐसा कहता है. इसलिए उन्होंने हमें मारने के लिए जो कुछ वो कर  सकते थे, करने की कोशिश की.

हम जो एक ऐसी पीढ़ी का हिस्सा हैं जो उम्मीद करते हैं कि देश के शैक्षणिक संस्थानों में हमारे समुदाय के अधिक से अधिक युवाओं को प्रवेश मिले, ऐसे में वयस्क होने के चलते हमारी क्या जिम्मेदारी होनी चाहिए? हमारी पिछली पीढ़ी ने अपने वेब प्लेटफॉर्म, प्रकाशन गृह, इंटरनेट उपस्थिति, सेमिनार और इसी तरह के अन्य हस्तक्षेपों के माध्यम से हमें सीखने, बढ़ने और विरोध करने के लिए एक सुरक्षित स्थान प्रदान किया. इसी तरह हमने अब तक जो कुछ भी सीखा है उसे अपने आने वाले युवा दिमागों को देना चाहिए.

जैसा कि हम में से कई लोगों के साथ हुआ था कि हमारे माता-पिता के पास एक स्थिर नौकरी थी और वे हमारी पीढ़ी के पहले शिक्षार्थी बने, जिन्होंने हमारे लिए सवर्णों की आबादी वाले कॉलेजों से डिग्री हासिल करने का मार्ग प्रशस्त किया. आज के किशोरों के पास हमारी तुलना में, जब हम उनकी उम्र के थे, पहले से ही व्यापक राजनीतिक ज्ञान तक बेहतर पहुंच है. इसके लिए इंटरनेट और बेहतर तकनीकों का धन्यवाद. इस बात की काफी संभावना है कि उन्हें पहले से ही इस बात का अंदाजा हो कि जाति क्या है. लेकिन यह सिर्फ उन बच्चों के लिए ही सच हो सकता है जो सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं. छोटे शहरों और गांवों के उन बच्चों का क्या जो अंतर्मुखी हैं और विज्ञान के जानकार हैं और जो किसी दिन एमआईटी (MIT) या स्टैनफोर्ड में पढ़ना चाहते हैं? इस कमी को दूर करने के लिए हम इसे किसी अवसर पर छोड़ सकते कि वे युवा स्वयं जाति के इतिहास के बारे में जान लेंगे. या अगर वे ऐसा करते हैं, तो वे पूरी तरह से समझ लेंगे कि वे उनका वास्ता किस्से पड़ा है. ये बुद्धिमानी नहीं होगी. इसलिए, जाति व्यवस्था के बारे में उनके साथ एक स्पष्ट बातचीत होना महत्वपूर्ण है. पहली बात जो हमें युवा मन को बतानी चाहिए वह यह है कि हिंदू उनके मित्र नहीं हैं. इनसे हमेशा सावधान रहना चाहिए. हिंदू होने का मतलब है जातिगत पदानुक्रम में विश्वास करना, जो कि एक सच जितनी ही साधारण बात है. सकारात्मक कार्रवाई के बारे में अन्य विषयों, मीडिया की भूमिका के बारे में, ब्राह्मण “बुद्धिजीवियों” के बारे में, यहां तक ​​​​कि सवर्ण नारीवाद के बारे में भी चर्चा की जानी चाहिए.

अंत में, हमें अपने युवाओं में उनके समृद्ध बौद्धिक, मानवीय इतिहास के बारे में गर्व की भावना पैदा करनी चाहिए. ताकि वे जान लें कि वे न केवल उतने ही बढ़िया है जितने कि वे लोग जिनसे भविष्य में वे आमने सामने होंगे, बल्कि एक ऐसी परंपरा से संबंधित हैं जो तर्कसंगतता और प्रेम में विश्वास करती है, और दरअसल वे कहीं बेहतर हैं और ज़िन्दगी में ख़ुशी और बहुत कुछ हासिल करने का हक़ रखते हैं.

हमें पुरुषों और महिलाओं की एक ऐसी पीढ़ी तैयार करनी चाहिए जो अंत में लड़ सके और विजयी हो सके. धर्म का मामला बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि हिंदू धर्म विचार की एक सीमा निर्धारित करता है. अनजाने में ही मिथकों और वर्चस्ववादी प्रचार से प्रभावित हमारा युवा अवचेतन रूप से अपने बारे में सोचता है कि वो उतना अच्छा नहीं जितना उसे होना चाहिए. हमें, धर्म के माध्यम से दिए गए इस ऐतिहासिक आघात की श्रृंखला को, तोड़ना चाहिए. छोटे बच्चों को अम्बेडकरवादी विचार और बौद्ध शिक्षाएँ सिखाने से उनका मन आज़ाद हो जाता है. वे तब हिंदू धर्म के नियमों के अनुसार नहीं खेल रहे होंगे. वे पाएंगे कि उन्होंने खुद ही खेल को बदल दिया है. हिंदू धर्म अब एक मध्ययुगीन धर्म के रूप में अप्रासंगिक है, जिसे सभी मनुष्यों की समानता में विश्वास करने वाले लोगों द्वारा छोड़ दिया जाना चाहिए.

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चंचल कुमार झारखंड से हैं और वर्तमान में दिल्ली, भारत में रहते हैं. उनकी कविताएँ पहले The Sunflower Collective, Hamilton Stone Review, Welter Journal, Name and None, Young Poets Network, UK सहित अन्य में प्रकाशित और सम्मानित हो चुकी हैं. हाल ही में हरकिरी जर्नल द्वारा उनकी कविताओं का बांग्ला में अनुवाद किया गया था. वह दिल्ली विश्वविद्यालय से एम.फिल कर रहे हैं.

अनुवाद: गुरिंदर आज़ाद

यह आलेख मूल रूप से अंग्रेजी भाषा में है जिसे अंग्रेजी भाषी Round Table India पर यहाँ क्लिक करके पढ़ा जा सकता है.

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