संगठनात्मक-नेतृत्व के सिवा कोई करिश्मा दलित-राजनीति के किसी काम का नहीं

राहुल सोंनपिंपले (Rahul Sonpimple) करिश्मा मायावी दुनिया का शब्द है लेकिन नेतृत्व को परिभाषित करने के लिए यह शब्द आम इस्तेमाल होता है. करिश्माई नेतृत्व को आमतौर पर आवश्यक और सहमति के रूप में लिया जाता है, खासकर राजनीति में. हालांकि, करिश्माई नेतृत्व का इतिहास इस तरह के रोमांसवाद को जारी रखने की अनुमति नहीं दे सकता है. हिटलर के […]

एंटी-कास्ट पॉलिटिक्स को समझने में उदारवादियों के भीतर दर्शन की कंगाली

ओमप्रकाश महतो (Omprakash Mahato) ऐसे सामाजिक वैज्ञानिक भी हैं जो केवल कागज़ों-किताबों के माध्यम से या सम्मेलनों और सेमिनारों में भाग लेकर या समाज का दूर से अवलोकन आदि करके ही जाति पर अपने विचार विकसित करते हैं. जबकि पाठ्यपुस्तकों को पढ़ना एक पारंपरिक तरीका है, कुछ विद्वान बॉलीवुड फिल्में देखने, समाचार पत्र पढ़ने, न्यूज़-रूम स्टूडियो में बहस देखकर, अपने […]

तेजस्वी के तेवरः जिसकी जरूरत समूचे विपक्ष को है

Arvind Shesh New

अरविंद शेष (Arvind Shesh) सन 2015 में जब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा था कि ‘आरक्षण की समीक्षा का वक्त आ गया है’, तब राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख लालू प्रसाद ने इसके जवाब में चुनौती पेश किया था कि ‘किसी ने मां का दूध पिया है तो आरक्षण को खत्म करके दिखाए’! इसके बाद उसी […]