भारत, हिदुस्तान और राजनीति

एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) ये सत्य है कि संघ व उससे से जुड़े संगठनो से सम्बंधित व्यक्तियों, सदस्यों व पदाधिकारियों की टिप्पणियाँ समय-समय पर मुझे बतौर मुस्लिम आहत भी करती रही है और ये सोचने पर मजबूर भी करती रही है कि क्या किसी संगठन के पदाधिकारियों से इस तरह की तर्कहीन व निराधार टिप्पणियों की आशा […]

डाॅ. अम्बेडकर का जीवन दर्शन ही मेरे जीवन का प्रेरणा स्रोत- कैलाश वानखेडे

डॉ. रत्नेश कातुलकर कैलाश वानखेड़े जी अपने प्रथम कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ से हिंदी साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान के रूप में उभरे हैं. उनकी कहानियों की ज़मीन व्यापक बहुजन आन्दोलन है. कहानियों के पात्र गाढ़ी स्याही से हस्ताक्षर करते हैं. कई जगहों पर उनकी कहानियों को लेकर कार्यक्रम रखे गए. कहानियों का पाठ हुआ. उन्हीं की एक कहानी ‘जस्ट […]

बहुजन ऑटोनोमी – एक विचार

युवा साथियों के नाम जिनसे बहुजन दृष्टिकोण पर बातचीत हुई   गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) बहुजन गाड़ी पर 85% लोगों का बोझा है. बहुत जद्दोजेहद के बावजूद यह बहुत धीमे चल रही है. यह बोझा ज़िम्मेदारी में जब बदलेगा तब गाड़ी थोड़ी खुशगवार रफ़्तार पकड़ेगी. ज़िम्मेदारी का मतलब बहुजनों को ईंधन और पुर्जों में खुद को ढालना पड़ेगा. बहुजन ऑटोनोमी इसकी […]

माहवारी से गुज़रती हैं महिलाएं, नियम चलते हैं पुरुषों के

Aarti Rani

आरती रानी प्रजापति महावारी 10-14 की आयु में शुरू होने वाला नियमित चक्र है. जिसमें स्त्री की योनि से रक्त का स्त्राव होता है. यह वह समय है जब स्त्री के शरीर में कई परिवर्तन होते हैं. महावारी सिर्फ शरीर में घट रही एक घटना नहीं है बल्कि इसका सम्बन्ध दिमाग से भी है. महावारी के समय स्त्री थकान महसूस […]

अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में जात-पात (जातिवाद) की जड़ें

मसूद आलम फलाही (Masood Alam Falahi) मोहम्मडन एंग्लो ओरिएण्टल कॉलेज (अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी) पिछड़ी बिरादरियों को शिक्षा का अधिकार दिए जाने कि बात दूर की है. धार्मिक दृष्टिकोण से सभी मुसलमानों को बराबर नहीं समझा गया. इस का एक उदाहरण मौलाना अशरफ़ अली थानवी (र०अ०) की किताब ‘अशरफ़-उल-जवाब’ में मिलता है. उस के अन्दर है कि- “एक अंग्रेज़ अलीगढ़ कॉलेज […]

कुफ़ू मान्यता और सत्यता

एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) कुफू का शाब्दिक अर्थ बराबर, मिस्ल, हमपल्ला और जोड़ होता है। इस्लामिक विद्वानों (उलेमा) द्वारा ये शब्द सामान्यतः शादी-विवाह (वर-वधू) के सम्बन्ध में प्रयोग किया जाता है, अर्थात जब ये कहा जाता है कि फला फला का कुफू है तो अर्थ ये होता है कि फला फला आपस मे बराबर है और […]

हिंदी, ब्राह्मण के हाथ में औज़ार और पंजाब- एक बहुजन नज़रिया

गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) खबर पंजाब से है और अच्छी है. बठिंडा-फरीदकोट हाईवे पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखे राह-ईशारा तख्तियों पर रंग पोत दिया गया है. इन तख्तियों पर या तो पंजाबी भाषा में लिखे शहर के नाम अंग्रेजी और हिंदी में लिखे नाम के नीचे थे या फिर पंजाबी में लिखे ही नहीं गए. हिंदी-अंग्रेजी में लिखे नामों […]

मुम्बई की बारिश और बिहार-नार्थ ईस्ट की बाढ़

विकास वर्मा (Vikas Verma) कुछ दिनों पहले मुम्बई में भारी बारिश हुई थी. जन जीवन दो-तीन दिन तक पूरी तरह अस्त व्यस्त रहा था. मुम्बई की ये समस्या मीडिया से लेकर सोशल मीडिया पे छाई हुई थी कि- लोग किस तरह हताहत हुए? मुम्बई की गलियों में कितनी ऊंचाई तक पानी भर गया? लोग कहाँ कहाँ फंसे हुए हैं? कौन […]

गंभीर मुद्दों की ओर इशारे हैं ‘न्यूटन’ फिल्म में- एक समीक्षा

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) जब सरकार चुनाव सिर्फ इसलिए कराए ताकि ये दिखा सके कि किसी क्षेत्र विशेष पर अब उसका अधिकार है तब ऐसे में मन में एक सवाल उभरता है कि लोकतंत्र है क्या फिर? क्या चुनाव, मंत्री, विधायिका, संसद ही लोकतंत्र है या स्वतंत्रता, समानता, न्याय, गरिमा, विरोध/असहमति का अधिकार जैसे आदर्श लोकतंत्र है. इसी बात की […]

सैयद व आले रसूल शब्द – सत्यता व मिथक

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) सैयद व आले रसूल शब्दों का प्रयोग अजमी (ईरानी और गैर-अरबी) विशेषकर भारतीय उपमहाद्वीप के विद्वानों द्वारा जिस अर्थ में किया जाता है उसका अपने शाब्दिक अर्थ व इस्लामिक मान्यताओं से कोई सम्बन्ध नही है। अधिकांश अजमी विद्वानों द्वारा अपने लेखो,पुस्तको व भाषणों में “सैयद व आले रसूल” शब्द का प्रयोग […]