मराठी और हिंदी दलित आत्मकथाओं में स्त्री चिंतन

Daya Aruna

  डी. अरुणा (D. Aruna) आत्मकथा में आत्म का सम्बन्ध लिखने वाले से है और कथा का सम्बन्ध उसके समय और परिवेश से है. कोई लेखक जब अपने विगत जीवन को समूचे परिवेश के साथ शब्दों में बाँधता है तो उसे हम आत्मकथा कहते हैं. हिन्दी में अन्य विधाओं की तुलना में आत्मकथा कम ही लिखी गई है परन्तु पिछले […]

जननायक कर्पूरी ठाकुर: अपमान का घूँट पीकर बदलाव की इबारत लिखने वाला योद्धा

jayant jigyasu

  जयन्त जिज्ञासु (Jayant Jigyasu) पिछड़ों-दबे-कुचलों के उन्नायक, बिहार के शिक्षा मंत्री, एक बार उपमुख्यमंत्री (5.3.67 से 31.1.68) और दो बार मुख्यमंत्री (दिसंबर 70 – जून 71 एवं जून 77- अप्रैल 79) रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर (24.1.1924 – 17.2.88) के जन्मदिन की आज 94वीं वर्षगांठ है। आज़ादी की लड़ाई में वे 26 महीने जेल में रहे, फिर आपातकाल के दौरान […]

अशराफिया समाज के बोल – समुद्र में अदहन

iqbal ansari

  एम्.इकबाल अंसारी (M. Iqbal Ansari) कभी कभी ज़िन्दगी में ऐसी घटनाएँ, ऐसी बातें देखने व् सुनने को मिल जाती हैं जो दिल दिमाग में गहराई तक चोट करती हैं. ऐसी ही कभी न भूलने वाली सवर्ण मुस्लिम शिक्षक द्वारा की गई व्यंग्य पर आधारित यह प्रसंग समुन्द्र में अदहन [अदहन माने ‘खौलता हुआ पानी ‘(भोजन आदि के लिये)] वाला […]

गालियों का समाजशास्त्र

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) गालियाँ लगभग हर भाषा हर ज़ुबान में मौजूद है. तो क्या गालियाँ भाषा की सामाजिकता का अनिवार्य हिस्सा है? शायद हाँ! भाषा की सामाजिकता उसको बोलने वालों के बीच के अंतर्संबंधों को ज़ाहिर करती है और गालियों का जातिये एंव लैंगिक चरित्र की भी व्याख्या भी करती है. इसीलिए जब अनुराग कश्यप से पूछा गया कि […]

“दलित” शब्द एक साजिश या भूल?

satvendra madara

  सतविंदर मदारा (Satvendar Madara) आज बहुत सारे अनुसूचित जाति के युवाओं में तेजी से बढ़ रहा “दलित” शब्द के प्रति लगाव भारी चिंता का विषय है। ब्राह्मणों द्वारा बनाई गई अमानवीय जाति व्यवस्था के विरोध में जब आधुनिक भारत में पहली बार महात्मा जोतीराव फुले ने विद्रोह किया, तो उन्होंने सारे OBC, SC, ST जातियों की गोलबंदी, शूद्र और […]

जेल से लालूजी की आम जन को लिखी चिठ्ठी

lalu prasad yadav

  मेरे प्रिय बिहारवासियों, आप सबों के नाम ये पत्र लिख रहा हूँ और याद कर रहा हूँ अन्याय और ग़ैर बराबरी के खिलाफ अपने लम्बे सफ़र को, हासिल हुए मंजिलों को और ये भी सोच रहा हूँ कि अपने दलित पिछड़े और अत्यंत पिछड़े जनों के बाकी बचे अधिकारों की लड़ाई को. बचपन से ही चुनौतीपूर्ण और संघर्ष से […]

अंबेडकरवाद के ध्वजवाहक: डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन

ratnesh katulkar

(5 January 1905 – 22 June 1988) डॉ रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) डॉ भदंत आनंद कौसल्यायन हिंदी और पाली भाषा के मूर्धन्य विद्वान और डॉ आंबेडकर मिशन के एक ऐसे ध्वजवाहक थे जिन्होंने अपनी किताबों, अनुवादों और प्रचार के द्वारा बाबासाहेब के मिशन को आमजन के बीच स्थापित किया. भारत में आम्बेडकरवाद को स्थापित करने में इनकी अहम भूमिका […]