0 0
Read Time:7 Minute, 26 Second

सरदार मनधीर सिंह (Sardar Mandhir Singh)

किसान-संघर्ष के दौरान 26 जनवरी के आगे के 3-4 दिन सही मायनों में संघर्ष का दौर था.

26 तारिख के घटनाक्रम के बाद सरकार ने किसानों के लाल किले में प्रवेश, केसरी निशान (खालसा पंथ का झंडा) और किसानी झंडा झुलाने और तिरंगे के कथित अपमान के हवाले से गोदी (ब्राह्मणवादी) मीडिया के ज़रिये मनोवैज्ञानिक हमला शुरू किया गया. किसान नेताओं के साथ साथ सोशल मीडिया पर किसानी संघर्ष की हिमायत कर रहे और इनके ज़रिये आम लोग भी इस मनोवैज्ञानिक हमले के प्रभाव तले आये.

इस मनोवैज्ञानिक हमले के असर में नेताओं ने आन्दोलन को कथित तौर पर नाकाम करने के दोष मढ़ने और गद्दरियों के फतवे जारी करने शुरू कर दिए. सोशल मीडिया के ऊपर किसानी संघर्ष के हिमायती या तो किसी के हक में फिर विरोध में पूरी तरह बंट गए, और आपस में ही उलझते रहे.

इन्टरनेट बंद होने के चलते किसानी संघर्ष में आये लोग, तनाव के बेशुमार बढ़ने और नेताओं की नकारात्मक बयानबाज़ी के कारण निराशावाद का शिकार हुए. 26 जनवरी की संध्या तक किसान मोर्चे में ‘चढ़ती कला’ (high-spirited) वाला माहौल था जोकि 27 तारिख को सरकार के मनोवैज्ञानिक आक्रमण के प्रभाव में स्टेज से दी गईं तकरीरों और, दूसरी तरफ, मोर्चे के बाहर से जानकारों के द्वारा फोन पर बांटी जा रही ख़बरों के चलते, निराशा के आलम में बदल गया.

जब मोर्चा इस मानसिक आक्रमण के प्रभाव में आ गया तो सरकारी शह पर मोर्चे के ऊपर शारीरिक हमले शुरू हुए. भाजपा की और से उकसाए कुछ गिरोहों ने पंजाब की ओर वापिस लौट रहे किसानों को राह में रोककर ज़लील करने की कोशिशें की गईं. कुछेक बार बात शारीरिक हमलों तक भी गई. उधर मोर्चे में सरकारी सख्ती बढ़ा कर बदमाशों के गिरोहों से हमले करवाए गए.

इन्टरनेट बंद होने के कारण सही समय पर और समय रहते (सही) बात बाहर ना जा सकी. जब मोर्चे में स्थिति पल-पल बदल रही थी उस वक़्त लीडरशिप और सोशल मीडिया पर समर्थन वाला हिस्सा 26 जनवरी के घटनाक्रम के ऊपर ही अड़ के खड़ा हुआ था और सारी बहसबाज़ी उस घटनाक्रम के सही-गलत के इर्दगिर्द घूमती रही. यह बात ध्यान देने वाली है कि 31 जनवरी के बाद जब हालात पुनः सामान्य स्थिति की और बढ़ने लगे तो इस बार चर्चा फरवरी में घटने वाली बातों, गाज़ीपुर का चढ़ाव और रोज़मर्रा की घटनाओं के बारे में चलने लग गईं. सारे हालातों को देखकर लगता था कि शायद मोर्चे की वापिसी हो गई है और इन्टरनेट भी फिर से बहाल हो गया है फिर भी अधिकतर हिस्सों में उन दिनों के संघर्ष को जानने की रूचि अपने आप प्रकट नहीं हुई जिन दिनों के दौरान मोर्चे में आम दिनों के मुकाबले गिनती के लोग ही रह गए थे, यहाँ तक कि व्यस्त रहने वाले खेमे भी खाली हो गए थे और जब मोर्चे को खदेड़ने के लिए सरकारी बदमाशों के टोले आक्रमण कर रहे थे. अब जब यह बातें लिख रहे हैं तो कुछ और नए मसले उभर चुके हैं जिनपर गर्मागर्म और जज्बाती चर्चाएँ ज़ोरों पर हैं. ऐसे में शायद इस लेखन और 27-31 (जनवरी) के माहौल के बारे में कुछ खबर एजंसियों के साथ लोगों द्वारा की गई बातचीत की तरफ किसी का कुछ ख़ास ध्यान न जाए, लेकिन फिर भी अपना फ़र्ज़ समझकर (आप सभी से) यह निवेदन ज़रूर कर रहे हैं कि

  1. ज़मीनी हालातों को ज़मीन के ऊपर खड़े होकर बेहतर तरीके से जाना और और महसूस किया जा सकता है. इन्टरनेट के ज़रिये पूरी ज़मीनी हकीक़त का पता नहीं चलता.
  2. ज़रूरतों और संभावनाओं के बारे में भी, दरअसल, ज़मीनी हालातों के अहसास के साथ ही पता चलता है वर्ना जो दृष्टिकोण ईन्टर्नेट के ऊपर पेश हो जाएँ सभी उस ओर हो लेते हैं और अन्य, बराबर या अधिक महत्वपुर्ण दृष्टिकोण आँखों से ओझल ही रह जाते हैं.
  3. सोशल मीडिया से आती हुई हिमायत बहुत महत्वपूर्ण है लेकिन वह कारगर तभी हो सकती है यदि वह ज़मीनी हालात से जुड़ी हुई हो.
  4. ज़मीनी हालातों से टूटी इन्टरनेट-हिमायत एक अलग संसार ही बन जाती है. 27-31 जनवरी का घटनाक्रम दर्शाता है कि ख्याली संसार के मानसिक आक्रमण के प्रभाव में आने की सम्भावना अधिक होती है. जबकि दूसरी ओर ज़मीन के ऊपर रहे लोग (उन ख़ास दिनों में) खुद पर हुए शारीरिक आक्रमण के कारण मानसिक हमले के असर से बहुत पहले ही बाहर निकल आये थे.
  5. सोशल मीडिया के ऊपर चर्चा सही-गलत और हक-विरोध के अलग अलग और पक्के दायरों में चलती है जबकि हकीक़त में अक्सर ही यह दायरे ना तो बहुत अलग-अलग होते हैं और न ही बहुत पक्के होते हैं.
  6. यदि हम घटनाक्रमों, परिघटनाओं और अपने व्यवहार की समीक्षा नहीं करते तो हमें अपनी कमियों व् कमजोरियों का पता नहीं लगता. बिना कमियों-कमजोरियों को दूर किये पहले घट रहे नतीजों से बेहतर नतीजे हासिल नहीं किये जा सकते.

आशा है कि किसानी संघर्ष का सहृदय हिमायती हिस्सा इन निवेदनों की और गौर करेगा.

~~~

 

सरदार मनधीर सिंह, ‘पंथ सेवक जथा दुआबा’ (दुआबा- पंजाब के एक हिस्से का नाम) से जुड़े हैं व् पंथ सेवक हैं. यह आलेख सरदार मनधीर सिंह के इंटरव्यू पर आधारित है जो कि मूलतः पंजाबी में है.

अनुवाद: गुरिंदर आज़ाद

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
0 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “किसानी संघर्ष में असली संघर्ष 26 से 31 जनवरी तक था

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *