हिंदी भाषा की वरिष्ठ लेखिका व् दलित लेखक संघ की पूर्व अध्यक्ष अनीता भारती ने राजकमल प्रकाशन को एक पत्र लिखा है जिसमें उन्होंने राजकमल द्वारा प्रकाशित एक पुस्तक ‘उसने गाँधी को क्यूँ मारा’ (लेखक अशोक कुमार पांडे) को ऐसी पुस्तक छापने जिसमें डॉ. आंबेडकर की छवि को बिगाड़ने की कोशिश की गई है, स्पष्टीकरण माँगा है. 13 नवम्बर को भेजे पत्र का अभी तक कोई जवाब प्रकाशन की ओर से नहीं आया है. प्रकाशन की इस चुप्पी पर ‘आंबेडकरवादी लेखक मंच’ ने भी सोशल मीडिया पर अपना पक्ष रखते हुए जवाब माँगा है.
राजकमल द्वारा प्रकाशित पुस्तक में दरअसल डॉ. आंबेडकर के ही एक पत्र (जिसकी प्रमाणिकता अभी भी विवादों के घेरे में है) से कुछ पंक्तियों को ही उठाकर यह साबित करने की कोशिश की गई है कि गाँधी की हत्या पर मानो डॉ. आंबेडकर खुश थे. किताब के लेखक ने इस ‘पत्र’ की कुछेक पंक्तियों को उठाते हुए बाद में अपनी बात रखते हुए लिखा है- आश्चर्य होता है कि यह हृदयहीन कथन उस गांधी के लिए है जिसने मुस्लिम लीग के समर्थन से बंगाल से चुनकर आए आंबेडकर के क़ानून मंत्री बनाए जाने के लिए दबाव डाला था आदि… प्रश्न यहाँ यह भी है कि लेखक क्यों मोरल स्टैंड लेकर बात कर रहे हैं? यह सब लिखते -करते ज़ेहन में आखिर चल क्या रहा था?
बीबीसी को 1956 में दिए अपने एक इंटरव्यू में बाबा साहेब ने महात्मा गाँधी को ‘महात्मा’ मानने से इनकार किया था. बाबा साहेब के मत उनके प्रति स्पष्ट रहे हैं. ऐसे में एक ऐसे पत्र का हवाला देना जिसके ऊपर आशंकाएं जताई जा रही हैं, उस पर भी पत्र की कुछ पंक्तियों को उठाकर अपना मत इस रूप में देना कि ‘आश्चर्य होता है कि यह हृदयहीन कथन….’ एक सचेतन किया कृत्य है. इसी ख़त की बात करें जिसका हवाला पुस्तक में है तो उसी में लिखा है कि बाबा साहेब गाँधी के पार्थिव शरीर को देखकर द्रवित हो गए थे. तबियत खराब होने के बावजूद वह शव यात्रा में कुछ दूर तक गए. बहरहाल….
दलित साहित्यकारों और कार्यकर्ताओं ने भी किताब में ऐसी टिप्पपणियों पर आपति जताई है व् सोशल मीडिया पर इसे साझा किया है.
लेखिका अनीता भारती व् आंबेडकरवादी लेखक संघ के खतों को नीचे प्रकाशित किया जा रहा है – संपादक
बाबा साहेब के अपमान पर राजकमल प्रकाशन को खुला पत्र।
बाबा साहेब के अपमान पर राजकमल प्रकाशन को खुला पत्र. पहले मैंने उनको मेल किया पर उनका कोई उत्तर नही आया तो मैं यहाँ फेसबुक पर डाल रही हूँ। पेज भी अटैच कर रही हूँ। बाबासाहेब की पत्नी शारदा कबीर जो बाद में सविता अम्बेडकर यानी माई साहब कहलाई उनके पत्र की किताब का फोटो यहाँ लगा रही हूँ। – अनीता भारती
अनीता भारती द्वारा लिखी चिट्ठी
प्रिय
अशोक माहेश्वरी जी,
राजकमल प्रकाशन
उम्मीद है आप इस पत्र की गंभीरता को समझेंगे।
आपके प्रकाशन से एक किताब छपी है ‘उसने गांधी को क्यों मारा?’ इसे पढ़कर मैं गुस्से और क्षोभ से लिख रही हूँ। और मेरा सवाल है कि क्या आपका प्रकाशन बाबा साहेब डा. अम्बेडकर के खिलाफ किसी मुहीम का हिस्सा है?
उक्त किताब में पेज नंबर 157-158 पर गांधी जी की हत्या के बाद बाबा साहेब अम्बेडकर द्वारा अपनी दूसरी पत्नी माई साहेब सविता अम्बेडकर को लिखा गया एक कथित पत्र शेयर किया गया है और उसपर लेखक ने हिकारत भरी टिप्पणी की है।
वह लिखता है, ‘ आश्चर्य होता है कि यह हृदयहीन कथन उस गांधी के लिए है जिसने मुस्लिम लीग के समर्थन से बंगाल से चुनकर आए अम्बेडकर के कानून मंत्री बनाए जाने के किए दवाब डाला था। आश्चर्य यह भी है कि इसमें हत्यारे के मराठी होने पर दुःख है लेकिन उस विचारधारा पर एक शब्द नहीं है जिसके प्रतिनिधि ने गांधी की हत्या की थी।’ इस दो वाक्य के कथन में ही कई दुष्टतापूर्ण ऐतिहासिक छेड़छाड़ है। और लेखक व प्रकाशक के इरादे स्पष्ट होते हैं।
अम्बेडकरी समाज में सबको पता है कि हमारे बीच से ही कुछ संकीर्ण मानसिकता वाले लोग हैं जिन्होंने माई साहेब को बदनाम किया। माई साहेब को बाबा साहेब की हत्यारिन तक बताया है। उक्त पत्र का बाबा साहेब के वांग्मय में कोई उल्लेख नहीं है। बाबा साहेब के पत्रों के संपादक अनिल गजभिये भी इस पत्र को मान्य नहीं मानते। इसपर बहस कर अम्बेडकरवादियों ने पहले ही इसे खारिज कर दिया है। एक स्त्रीवादी होने के नाते मैं माई साहेब को इस अभियान से पहुंची पीड़ा को समझती हूँ। अम्बेडकरवादियों ने उन्हें इस पीड़ा और इन आरोपों से मुक्त कराने के बड़े प्रयास किये हैं।
बाबा साहेब और माई साहेब की शादी गांधी जी की हत्या के तीन महीने बाद हुई थी। सवाल है कि क्या उनकी शादी के पहले वे पत्राचार में थे?
लेखक ने बहुत हिकारत के साथ इस पत्र पर टिप्पणियां की है। मेरी नज़र में लेखक महोदय इतिहासकार नहीं हैं। उनके इतिहास ज्ञान के बारे में बहुत कुछ सोशल मीडिया में लिखा जा चुका है। माई साहेब का नाम शारदा कबीर था। उन्हें बाबा साहेब अपनों पत्रों में शरू (Sharu) लिखते थे। लेखक ने माई साहेब का एक नाम लक्ष्मी लिखा है। क्या स्रोत है?
क्या एक ‘जिम्मेवार प्रकाशक के रूप में आपको यह नहीं लगता कि आप ऐसी किताबें इतिहास या विषय-विशेषज्ञ से लिखवाएं या उनसे एक बार दिखवा लें।
अब मैं अपने सवाल पर आती हूँ। यह किताब क्या कट्टरवादियों के उस एजेंडे के पक्ष में नहीं लिखी गई है, जो बाबा साहेब को अपने खेमे में खींचना चाहते है? आखिर उनको और बाबा साहेब को एक साथ रखने का क्या इरादा है? क्या छुपे कट्टरतावादियों से आप बाबा साहेब पर हमला करवाने की मुहीम में हैं? यह पांडे नामक आपका तथाकथित स्टार इतिहासकार क्या ऐसी मुहीम का छुपा एजेंट है? समय-समय पर डाक्टर अम्बेडकर के प्रति इसकी नफरत सामने आती रहती है।
मैं आपसे आग्रह करती हूँ कि आप इस किताब को वापस लें और बाबा साहेब व देश से माफी मांगें। किताबों में दर्ज इतिहास ही कल का सच बनेगा।पूर्वाग्रह से ग्रसित ऐसी किताबें पाठकों को गुमराह करती हैं जिससे लेखक के साथ प्रकाशक की भी विश्वसनीयता पर सवाल उठना वाजिव है।
अनिता भारती,
लेखिका
13 नवम्बर 2022
(अशोक कमर पांडे की किताब से – 1)
(अशोक कमर पांडे की किताब से – 2)
(वह ख़त जिसे डॉ. आंबेडकर द्ववारा लिखा कहा गया है – 1)
(वह ख़त जिसे डॉ. आंबेडकर द्ववारा लिखा कहा गया है – 2)
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आंबेडकरवादी लेखक मंच द्वारा लिखी चिट्ठी
अशोक माहेश्वरी जी,
वरिष्ठ साहित्यकार अनिता भारती ने दो दिन पहले आपको एक पत्र लिखकर सूचित किया था कि राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित किताब ‘गांधी को क्यों मारा’ में एक कथित पत्र से मनमानी पंक्तियाँ उठाकर बाबा साहेब अम्बेडकर को गोडसे के साथ खड़ा करने की कोशिश की गयी है। वह पत्र विवादित रहा है और उसकी कोई हस्तलिखित प्रति नहीं है।
यदि पत्र डा. अम्बेडकर ने लिखा है तो अशोक पांडे नामक इसके लेखक ने उसकी कुछ पंक्तियाँ उड़ाकर अपने मतलब की पंक्तियाँ पेश की हैं। यह काम हिंदुत्ववादी लोग करते हैं। हमें पता है कि आपका प्रकाशन हिन्दुत्ववादियों का प्रकाशन नहीं है। प्रगतिशीलता के नाम पर ऐसे छेड़छाड़ भ्रम पैदा करते हैं। सीधे हिंदुत्व की किताबें होंगी तो सामाजिक न्याय की सरकारों के सामने स्पष्ट होगा कि उन्हें अपनी लायब्रेरी में लेनी है या नहीं?
वरिष्ठ लेखिका की चिट्ठी पर आपकी चुप्पी दुखद है। लेकिन बाबा साहेब हम सबके आदर्श हैं। ऐतिहासिक तथ्य और बाबा साहेब की छवि से इस खिलवाड़ पर आक्रोश को क्या एक चुप्पी से रोका जा सकता है?
आप या तो पूरी चिट्ठी शामिल कर लेखक की हिकारत भरी टिप्पणियां हटाएँ। किताब चिट्ठी के विवादास्पद होने की बात लिखें या किताब वापस लें। ऐसा नहीं करने पर लेखक के साथ आपके इरादे पर भी सवाल उठेंगे।
आपका
संयोजक
आंबेडकरवादी लेखक मंच
15 नवम्बर 2022
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