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शैलेश नरवड़े (Shailesh Narwade)

जब मुझे ‘भीमबाबा’ नामक इस पुस्तक की प्रस्तावना लिखने के लिए प्रशांत भाई ने कहा तो मैं ऐसा करने की अपनी क्षमता को लेकर थोड़ा आशंकित था। लेकिन जब मुझे लगा कि मुझे प्रस्तावना लिखनी चाहिए तो मैंने भीमबाबा के पन्नों को पढ़ना शुरू किया। पढ़ते-पढ़ते मुझे अहसास हुआ कि आज के समय में यह पुस्तक कितनी महत्वपूर्ण है।

पाँच साल से ज़्यादा समय गुज़र चुका है जबसे मैं प्रशांत भाई को जानता हूँ। इन वर्षों के दौरान मैंने उन्हें एक व्यक्ति के रूप में जाना है। मैंने उन्हें समानता और न्याय पर आधारित समाज को बनाने के लिए और सामाजिक परिवर्तन के कार्यों के लिए प्रतिबद्ध देखा है।

मैं ‘भीमबाबा’ पुस्तक को डॉ बी आर आंबेडकर के जीवन और व्यक्तित्व के विभिन्न पहलुओं को युवा पीढ़ी के सामने लाने के लिए एक बहुत ही अनूठे प्रयास के रूप में देखता हूँ, और प्रशांत भाई ने पुस्तक लिखी भी ऐसी सरल भाषा में है जिसे बच्चे एवं युवा आसानी से समझ सकते हैं। कहानी कहने की ऐसी शैली के माध्यम से हम युवा मन में अपनी संस्कृति को सहजता के साथ बिठा सकते हैं और उन्हें एक जिम्मेदार नागरिक बनने की उनकी यात्रा में मदद कर सकते हैं।

वो सभी बाधाएँ जिनका सामना बाबासाहेब ने खुद को शिक्षित करने के लिए किया, किताबों के प्रति उनके प्रेम और लगभग सभी जगहों पर कठिन परिस्थितियों से दो-चार होने के उनके संघर्ष के बारे में, यह पुस्तक बच्चों को उनके साहसिक स्वभाव के बारे में जानने-सीखने का अवसर देती है।

जब भी हम किसी किताबों की दुकान पर जाते हैं, तो हमें काल्पनिक चरित्रों और अवास्तविक कहानियों पर आधारित किताबों और कॉमिक्स का भंडार दिखाई देता है। हालाँकि महान सामाजिक नेताओं पर साहित्य की हमेशा कमी रहती है, जिन्होंने सामाजिक असमानता को दूर करने और सभी मनुष्यों के लिए एक बेहतर दुनिया की स्थापना के लिए अपना जीवन समर्पित कर दिया।

‘भीमबाबा’ पुस्तक निश्चित रूप से इस अंतर या खाई को भरती है। यह पुस्तक केवल बच्चों के लिए ही नहीं बल्कि उनके माता-पिता के लिए भी है क्योंकि लेखक ने भारतीय समाज में जाति व्यवस्था और पितृसत्ता जैसे गंभीर और महत्वपूर्ण मुद्दों को समझदारी के साथ सामने रखा है। उन्होंने बच्चों में प्रश्न पूछने के चलन को भी बढ़ावा दिया है।

मैं डॉ. प्रशांत तांबे को वर्तमान के साथ-साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए इतनी मूल्यवान पुस्तक रचने के लिए बधाई देता हूँ। मैं कामना करता हूँ कि आने वाले वर्षों में हमारे बुकशेल्फ़स उनके द्वारा ऐसी और महत्वपूर्ण पुस्तकों से समृद्ध होंगीं।

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शैलेश नरवड़े एक फिल्म निर्माता, लेखक और मीडियाकर्मी हैं।

 

राजू अरमुगम (Raju Aarmugam)

भीमबाबा पुस्तक प्रशांत ताम्बे के द्वारा भावुक मन से बच्चों के लिए लिखी गई एक अद्भुत पुस्तक है। उन्होंने नरेशन को इस तरह से बुना है कि बच्चे इसे पढ़ने बैठेंगे तो बस पढ़ते ही रह जाएँगे। इसकी भाषा सरल है और कहानी कहने का अंदाज़ बहुत ही शानदार है। वर्णन का उप-पाठ दिलचस्प है और कहना न होगा कि केवल प्रशांत ही इस तरह की कल्पना कर सकते हैं व् दिलचस्प तरीके से लिख सकते हैं। रंगोली बना रहे मिलिंद, गाड़ी चला रहे जसप्रीत: ये जेंडर न्यूट्रल और जेंडर बराबरी के विचार पूरी पुस्तक में नज़रंदाज़ नहीं किए जा सकते।

प्रशांत ने अपनी कहानी में धार्मिक समावेश और विविधता से संबंधित सबटेक्स्ट (subtext) भी डाला है। यह बहुत ही विचारशील है। इससे लेखक की परिपक्वता का पता चलता है कि वह एक बाकमाल लेखक हैं। पेंच (पेंच नेशनल पार्क) का अनुभव और उसमें व्यक्त पर्यावरण के सरोकार उसकी महक और वातावरण अपने भीतर संजोय पाठक को उस स्थान की कल्पना करने के लिए प्रेरित करता है, ऐसी है कहानीकार की रचनात्मकता। पुस्तक पढ़ते हुए हम वास्तव में उस वाहन में यात्रा कर रहे हैं: यही लेखक की सफलता है।

इस पुस्तक को पढ़ने वाला कोई भी व्यक्ति बाबासाहेब पर उसके ज्ञान को और विकसित करने के लिए प्रेरित करेगा। पुस्तक की कहानियाँ और उसमें दिए विचार बच्चों के मन में लंबे समय तक बने रहेंगे यह पुस्तक इस बात को संभव बनाती है। छोटे-छोटे वाक्यों में लिखी गई प्रशांत की पुस्तक बच्चों के बीच हिट होगी। पुस्तक का डिज़ाइन और चित्र उच्च स्तर के हैं।

आज जब बच्चे पढ़ने की आदत से दूर होते जा रहे हैं ऐसे में जो भी बच्चा इस पुस्तक को हाथ में लेगा उसमें पढ़ने की आदत जरूर जगेगी।

इस पुस्तक के लिए अगर एक शब्द में पूरा विवरण लिखना हो तो वह शब्द होगा- विलक्षण!

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राजू आरमुगम तीन दशक से मानव संसाधन के क्षेत्र में सक्रिय हैं एवं एक विशेषज्ञ हैं और अमेरिका में ह्यूबर्ट हम्फ्री फेलो हैं। वह दो पुस्तकों के लेखक भी हैं।

अनुवाद : गुरिंदर आज़ाद

अंग्रेजी भाषा में आप इस आलेख को Round Table India पर पढ़ सकते हैं.

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One thought on “‘भीमबाबा’ वर्तमान और भावी पीढ़ी के लिए एक बहुमूल्य पुस्तक

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