राउंड टेबल इंडिया
बीते कुछ दिनों से सर सैयद के लेखों और उनकी स्पीचों को लेकर फेसबुक पर लगातार पसमांदा संगठन और बहुजन छात्र विरोध दर्ज करा रहे हैं. आरोप ये है कि सर सैयद अहमद खान ने अपनी किताब असबाब-ए-बगावतें हिन्द के पृष्ठ: 60 पर भारतीय मुसलमानों की एक जाति को बदज़ात जुलाहा लिखा था. इस बात से खासे नाराज़ बहुजन छात्र सर सैयद को जातिवादी बोल रहे हैं. बहुजन छात्रों का कहना है की वह ऐसे किसी भी व्यक्ति को महान या बाबा-ए-कौम नहीं कह सकते जो जातिवादी रहा हो. बहुजन छात्रों द्वारा सर सैयद पर महिला शिक्षा का विरोधी होने का भी आरोप लगाया जा रहा है. बहुजन छात्र 20 अप्रैल 1894, जालंधर (पंजाब) में सर सैयद द्वारा महिलाओं की शिक्षा पर दिए गए भाषण का हवाला देते हैं, जिसमे सर सैयद कहते हैं-
“मैं लड़कियों को स्कूल भेजने के विरुद्ध हूँ, पता नहीं किस प्रकार के लोगों से उन की संगत होगी!”
सर सैयद आगे कहते हैं-
“परन्तु मैं बहुत ही बल के साथ कहता हूँ कि सवर्ण (मुसलमान) एकत्र हो कर अपनी लड़कियों की शिक्षा की ऐसी व्यवस्था करें जो उदहारण हो अतीत की शिक्षा का, जो किसी काल में हुआ करती थी. कोई अच्छे परिवार का व्यक्ति यह कल्पना नहीं कर सकता कि वह अपनी पुत्री को ऐसी शिक्षा दे जो टेलीग्राफ़ ऑफिस में सिग्नल देने का काम करे या पोस्ट ऑफिस में पत्रों पर ठप्पा लगाया करे.” [अलीगढ़ इंस्टिट्यूट गज़ट, 15 मई 1894, खंड: 29, अंक: 39 (ससंदर्भ ख़ुत्बात-ए-सर सय्यद), शीर्षक- मुसलामनों की तरक्क़ी और तालीम-ए-निस्वां पर सर सय्यद की तक़रीर, 20 अप्रैल 1894, स्थान: जालंधर, 2/279]
सोशल मीडिया पर सर सैयद अहमद खान को पसमांदा-बहुजन आन्दोलन द्वारा अस्वीकार करता दर्शाती एक तस्वीर
बहुजन छात्रों का साथ ही ये भी कहना है कि सर सैयद अहमद खान अंग्रेजी शिक्षा के समर्थक तो थे पर सिर्फ अशराफ अर्थात सिर्फ मुस्लिम सवर्ण जातियों के लिए थे. पसमांदा (मुस्लिम दलित/पिछड़ी जातियों) के लिए उनका नज़रिया दूसरा था. छात्र उदाहरण देते हैं कि बरेली के ‘मदरसा अंजुमन-ए-इस्लामिया’ के भवन की नींव रखने के लिए सर सय्यद साहब को बुलाया गया था जहाँ मुसलामानों की नीच कही जाने वाली जाति के बच्चे पढ़ते थे. इस अवसर पर जो पता उन को दिया गया था उस पते पर उत्तर देते हुए उन्होंने कहा था कि-
“आप ने अपने एड्रेस में कहा है कि हम दूसरी कौमों (समुदाय) के ज्ञान एवं शिक्षा को पढ़ाने में कोई झिझक नहीं है. संभवतः इस वाक्य से अंग्रेज़ी पढ़ने की ओर संकेत अपेक्षित है. किन्तु मैं कहता हूँ ऐसे मदरसे में जैसा कि आप का है, अंग्रेज़ी पढ़ाने का विचार एक बहुत बड़ी ग़लती है. इसमें कुछ संदेह नहीं कि हमारे समुदाय में अंग्रेज़ी भाषा एवं अंग्रेज़ी शिक्षा की नितांत आवश्यकता है. हमारे समुदाय के सरदारों एवं ‘शरीफों का कर्तव्य है कि अपने बच्चों को अंग्रेज़ी ज्ञान की ऊँची शिक्षा दिलवाएं. मुझ से अधिक कोई व्यक्ति ऐसा नहीं होगा जो मुसलमानों में अंग्रेज़ी शिक्षा तथा ज्ञान को बढ़ावा देने का इच्छुक एवं समर्थक हो. परन्तु प्रत्येक कार्य के लिए समय एवं परिस्थितियों को देखना भी आवश्यक है. उस समय मैंने देखा कि आपकी मस्जिद के प्रांगण में, जिसके निकट आप मदरसा बनाना चाहते हैं, 75 बच्चे पढ़ रहे हैं. जिस वर्ग एवं जिस स्तर के यह बच्चे हैं उनको अंग्रेज़ी पढ़ाने से कोई लाभ नहीं होने वाला. उनको उसी प्राचीन शिक्षा प्रणाली में ही व्यस्त रखना उनके और देश के हित में अधिक लाभकारी है. [सर सय्यद अहमद खां: व्याख्यान एवं भाषणों का संग्रह, संकलन : मुंशी सिराजुद्दीन, प्रकाशन : सिढौर 1892, ससंदर्भ अतीक़ सिद्दीक़ी: सर सय्यद अहमद खां एक सियासी मुताला, अध्याय: 8, तालीमी तहरीक और उस की मुखालिफ़त, शीर्षक : गुरबा को अंग्रेज़ी तालीम देने का खयाल बड़ी ग़लती है, पृष्ठ : 144/245]
इसी कड़ी में सर सैय्यद् अहमद खान का लखनऊ, 1887 का भाषण भी देखा जा सकता है। भाषण के तीसरे पैराग्राफ में वो कहते हैं कि-
“यह बहुत जरूरी है कि वाइसराय परिषद के लिए सदस्यों को उच्च समाज का होना चाहिए. मैं आपसे पूछता हूँ- क्या हमारा कुलीन वर्ग एक ऐसे व्यक्ति को खुद से ऊंचा मान सकता है, जो निम्न या ऐसी ही किसी जाति से हो, भले ही वह बी.ए. या एम्. ए. हो, भले ही आवश्यक क्षमता भी रखता हो, और क्या उसे कानून बनाने की ताक़त जिससे कि वो उनकी जिंदगियां और सम्पदा को प्रभावित कर सकता हो दी जानी चाहिए? कभी नहीँ! कोई भी इसे पसंद नहीं करेगा. (हँसते हैं) वाइसराय परिषद में एक भी सीट बेहद सम्मान और प्रतिष्ठा वाली है। और किसी को नहीं सिर्फ अच्छी नस्ल वाले व्यक्ति को ही वाइसराय अपने सहयोगी के रूप में ले सकते हैं, उसे अपने भाई के रूप में व्यवहार कर सकते हैं, अपने आतिथ्य में आमंत्रित कर सकते हैं जिसमे उसे Dukes और Earls के साथ भोजन करना हो.”
इसी स्पीच में आगे बोलते हैं कि-
“इंग्लैंड में प्रतिस्पर्धी परीक्षा का नतीजा क्या है? आप जानते हैं कि सभी सामाजिक पदों के पुरुष, Dukes या Earls के बेटे, दर्जी और कम रैंक वाले लोगों को समान रूप से इस परीक्षा को उत्तीर्ण करने की अनुमति है। उच्च और निम्न परिवार दोनों पुरुष सिविल सेवा के लिए भारत आते हैं। और यह दुनिया जानती है कि सरकार के लिए यह बात उपयुक्त नहीं कि वो निम्न रैंक के पुरुषों को लाये. और ये भी बात है कि अच्छी सामाजिक स्थिति के पुरुष भारतीय सज्जनों से विनम्रता से पेश आते हैं, ब्रिटिश जाति की प्रतिष्ठा बनाए रखते हैं, और लोगों के दिलों पर प्रभाव छोड़ते हैं कि ब्रिटिश न्याय करते हैं और वे सरकार और देश दोनों के लिए उपयोगी होते हैं.” [Sir Syed Ahmed on the Present State of Indian Politics, Consisting of Speeches and Letters Reprinted from the “Pioneer” (Allahabad: The Pioneer Press, 1888), pp. 1-24. Modern facsimile version (Lahore: Sang-e-Meel Publications, 1982)(http://www.columbia.edu/itc/mealac/pritchett/00islamlinks/txt_sir_sayyid_lucknow_1887.html#n03)]
वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के भूतपूर्व स्टूडेंट् प्रेसिडेंट फैज़ुल हसन ने अलीगढ़ विश्विद्यालय में बहुजन छात्रों और पसमांदा कार्यकर्ताओं के खिलाफ एक ऍफ़.आई.आर (FIR) दर्ज कराई है. जिसमे कहा गया है कि सर सैयद पे टिप्पणी से हज़ारों अलीगढ़ के छात्रों की भावना आहत हुई है. अतः संबंधित व्यक्ति कनकलता यादव, वाकर अहमद, नुरुल मोमिन और लेनिन मौदूदी पर कार्यवाही की जाए.
आहत भावनाओं को लेकर सवर्ण मुस्लिमों का थानाध्यक्ष को लिखा शिकायत पत्र
इस पर आल इंडिया पसमांदा मुस्लिम महाज (aipmm) के नेता वकार अहमद का कहना है कि- सर सैयद ने उनकी जाति को बदज़ात लिख कर उनकी भावना आहत की है और अब जब वह इस तथ्य को सामने ला रहे हैं तो उन पर ही जातिवादी होने का आरोप लग रहा है. क्या भावनाए सिर्फ अशराफ जातियों के पास होती है?
अशराफ मुस्लिम की फेसबुक पर एक पोस्ट
FIR में बनाये गए दूसरे आरोपी लेनिन मौदूदी का कहना है कि सर सैयद के सभी दस्तावेज अलीगढ़ लाइब्ररी में सुरक्षित हैं. अगर किसी को लगता है कि सर सैयद पर लगाए गए आरोप गलत हैं तो वह बहुजन छात्रों द्वारा दिये गए रेफेरेंस (reference) की जांच पड़ताल कर सकता है.
नुरुल मोमिन का कहना है कि इस FIR के ज़रिए अब हमें अपनी बात पहुंचाने का अधिक मौका मिलेगा और मुस्लिम समाज मे मौजूद ज़हरीले नाग को उजागर करने में अधिक आसानी होगी. बहुजन साहित्यिक संघ की वाईस प्रेसिडेंट कनकलता यादव जी को लगातार जातिये गालियां दी जा रही हैं.
कनकलता यादव कहती हैं कि आप सभी लोगों से एक गुजारिश है कि जब मैं सर सैयद अहमद खान के जातिवादी स्टेटमेंट के खिलाफ लिख रही हूं तो प्लीज उसे अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के खिलाफ मत समझिए और न ही मामला डाइवर्ट कीजिये. अगर मदन मोहन मालवीय (हिन्दू महासभा और बीएचयू के संस्थापक) के हिन्दू महासभा के आईडिया को कोई ख़ारिज करता है तो क्या वो बीएचयू को खारिज करता है? अगर कोई जवाहर लाल नेहरू के फॉरेन पालिसी और बाकी आईडिया की मुखालफत करता है तो क्या वो जेएनयू को खारिज कर देगा? ऐसे ही जब कोई सर सैयद अहमद खान के विचारों पर लिख रहा है या उनका विरोध कर रहा है तो वो अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का विरोध नहीं कर रहा है.
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All India Pasmanda Muslim Mahaz के सौजन्य से
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