एड0 नुरुलऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin)
तथाकथित मुस्लिम लीडरशिप द्वारा काफी समय से निरन्तर मुस्लिम आरक्षण की माँग की जाती रही है. इधर सच्चर आयोग की उस तथाकथित रिपोर्ट (मुस्लिमों की हालत दलितों से बदतर है) की आड़ लेकर (हालाँकि सच्चर ने ऐसा बिल्कुल नहीं कहा है) ये माँग और तेज कर दी गयी है. जब हम बतौर मुस्लिम इस माँग की तरफ देखते हैं तब हमें पहली नज़र में ऐसा लगता है कि ये माँग बिल्कुल जायज़ है तथा मुस्लिम समाज को इसकी सख्त जरूरत है व् इस माँग को करने वाले ही मुसलमानों के सच्चे मुस्लिम हमदर्द व रहनुमा हैं तथा इस माँग के विरोधी सम्पूर्ण मुस्लिम समाज के विरोधी व मुस्लिम विरोधी ताकतों के हाथों के खिलौने व दलाल हैं. लेकिन इस माँग पर जब हम ईमानदारी से गम्भीरतापूर्वक गौरो-फ़िक्र करते हैं तब हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इसे हम एक आधारहीन माँग व एक सुनहरेधोखे के सिवा यदि कुछ और कहना चाहे तो सिवाए निरी जेहालत (हद दर्जे की मूर्खता) के कुछ नहीं कह सकते.
जो लोग मुस्लिम आरक्षण की मांग कर रहे हैं क्या वह सच में मुस्लिम समाज के हितैषी हैं? या ये मुस्लिम हित के नाम पर किसी वर्ग विशेष का हित साधना चाहते हैं? मुस्लिम आरक्षण की मांग करने वालों से मेरे दो प्रश्न हैं-
1- क्या ये लोग नहीं जानते कि पिछड़े (पसमांदा) मुसलमानों को मण्डल के अंतर्गत ओबीसी वर्ग का व अनुच्छेद 342 के अंतर्गत एस0 टी0 वर्ग का आरक्षण पहले से ही मिल रहा है? या फिर
2- इनकी नजर में सिर्फ अशराफ वर्ग (शेख, सैयद, मुग़ल, मिर्जा आदि) के लोग ही मुसलमान हैं, तथा जिन मुस्लिम जातियों को सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़ा मानकर मण्डल आयोग की सिफारिश के अनुसार ओबीसी के अंतर्गत व जिन्हें अनुसूचित जनजाति का होने के कारण अनुच्छेद 342 के अंतर्गत आरक्षण मिल रहा है क्या उनको ये लोग मुसलमान नहीं मानते हैं?
अगर मुस्लिम आरक्षण की माँग करने वाले उन जोलाहा, धुनिया, कुंजड़ा, तेली, मनिहारा वगैरह को जिन्हें मण्डल के अंतर्गत व जिन्हें अनुसूचित जनजाति (बकरवाल आदि) का मानते हुए अनुच्छेद 342 के अंतर्गत आरक्षण मिल रहा है उनको मुसलमान नहीं मानते है तो वह अपनी माँग पर डटे रहें और वह जिनको मुसलमान समझ रहे हैं उनके लिए आरक्षण की मांग जारी रखे.
लेकिन अगर मुस्लिम आरक्षण की माँग करने वाले पसमांदा वर्ग के मुसलमानों को भी मुसलमान मानते हैं और इनकी नज़र में सच में ये (पसमांदा अर्थात जोलाहा, धुनिया, कुजड़ा, बकरवाल, बंजारा, नट वगैरह) लोग भी मुसलमान ही हैं और साथ ही ये मुसलमानों का हित सच में चाहते हैं तो इन्हें मुस्लिम आरक्षण की मांग को फौरन त्याग देना चाहिए क्योंकि धर्म आधारित आरक्षण असंवैधानिक है जो मिलना असंभव है. जब-जब किसी भी सरकार ने इन तथाकथित मुस्लिम रहनुमाओं/ठेकेदारों के दबाव में मुसलमानों के नाम पर अर्थात धर्म के आधार आरक्षण देने का प्रयास किया है तब-तब न्यायलय ने निरस्त किया है वह चाहे आंध्रा की सरकार का प्रयास रहा हो या महाराष्ट्रा की सरकार ने ऐसा प्रयास किया हो. क्योंकि धार्मिक या आर्थिक आधार पर आरक्षण असंवैधानिक है. संविधान के अनुसार आरक्षण सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्ग को ही मिल सकता है. इसलिए अगर मुस्लिम हित ही आपका (तथाकथित मुस्लिम रहनुमाओं का) उद्देश्य है तो आप संवैधानिक दायरे में रहते हुए मांग कीजिये कि-
1- अनुच्छेद 341 पर लगा धार्मिक प्रतिबन्ध हटाया जाये. ताकि हिन्दू दलितों की तरह मुस्लिम दलितों (मुस्लिम धोबी,भंगी आदि) को भी SC आरक्षण का लाभ मिल सके जिससे लोकसभा व विधानसभा की अनुसूचित ज़ाति हेतु आरक्षित सीटों से हमारा वह मुस्लिम भाई जिसकी पहचान सभी फिरकों के ओलामाओं ने अरज़ाल (नीच, कमीन, निकृष्ट) व तमाम आयोगों ने दलित/एस0सी0 के रूप में चिन्हित किया है उसकी ज़ाति/वर्ग के लोगों के लिए भी विधायक व सांसद बनने तथा IAS, IPS, IARS आदि सर्विसेज में जाने का मार्ग प्रशस्त हो सके.
2- जब तक अनुच्छेद 341 पर लगा धार्मिक प्रतिबन्ध समाप्त नहीं होता तब तक हिन्दू SC की भांति जीवन यापन करने वाली मुस्लिम SC जातियों को, जिनकी स्थिति बकौल सच्चर रिपोर्ट के दलितों से बदतर है, ST में शामिल किया जाये ताकि उनको अनुच्छेद 342 में प्रदान किये गए आरक्षण का लाभ मिल सकें जिससे उनकी स्थिति में कुछ तो बेहतर बदलाव आये!
3- पिछड़ा आरक्षण को पिछड़ा, अति पिछड़ा व सर्वाधिक पिछड़ा में बाँटा जाये अथवा कम से कम बिहार में लागू कर्पूरी ठाकुर फार्मूला पूरे देश में लागू कर ओबीसी आरक्षण को पिछड़ा और अति पिछड़ा में बाँटा जाये ताकि ओबीसी में शामिल जो पसमांदा मुस्लिम जातियाँ ओबीसी में सम्मिलित अन्य सक्षम/मजबूत जातियों से नहीं लड़ पा रही है वह पसमांदा मुस्लिम जातियाँ अन्य धर्मो की अपने समान पिछड़ी/अति पिछड़ी जातियों के साथ अति पिछड़ा वर्ग में शामिल हो जाए जिसकी वह हकदार है जिससे वह अपने हितों की रक्षा कर सके.
4- पिछड़ा, अति पिछड़ा व सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग हेतु (अथवा कम से कम पिछड़ा वर्ग हेतु ही) लोक सभाओं व विधान सभाओं में भी उसी प्रकार सीटें आरक्षित की जाएँ जिस प्रकार क्षेत्रीय/स्थानीय चुनावों में ओबीसी हेतु व विधान सभा व लोक सभा में एस0सी0, एस0टी0 हेतु सीटें आरक्षित की जाती हैं.
मैं तथाकथित मुस्लिम (अशराफ) लीडरशिप से विनम्रता पूर्वक निवेदन करता हूँ कि वह उपरोक्त माँगों/मुद्दों पर सोचे एवं विचार करे. इससे साँप भी मर जाएगा और लाठी भी नहीं टूटेगी. अर्थात मुस्लिम समाज को वह सब कुछ मिल जायेगा जिसकी शायद उसने अभी कल्पना भी नहीं की होगी.
उक्त माँगो/मुद्दों की सबसे बड़ी विशेषता ये है कि इन माँगो से न तो हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण होगा न ही संघ या भाजपा जैसे किसी मुस्लिम विरोधी संगठन व राजनैतिक दल को हिन्दू मुस्लिम कार्ड खेलने का अवसर मिलेगा जिस कार्ड के सहारे अब तक वह सत्ता तक पहुँचते रहे हैं.
मेरा दावा है आप चाहे न्याय की दृष्टि से देखें अथवा वर्तमान परिस्थितियों को दृष्टि में रखकर विचार कीजिये, किसी भी दृष्टि से उक्त तरीकों से बेहतर तरीका मुस्लिम हित साधने का कोई अन्य नहीं हो सकता है. यदि किसी के पास हो तो सुझाये जिससे मुस्लिम हित भी सध जाये और किसी भी साम्प्रदायिक संगठन अथवा दल को कोई अवसर भी ध्रुवीकरण का न मिले.
लेकिन अफ़सोस सद अफ़सोस…..! ये तथाकथित मुस्लिम (अशराफ) लीडरशिप ऐसा (उक्त माँगों का समर्थन) बिल्कुल नहीं करेगी और न ही कोई अन्य तरीका ही बताएगी क्योंकि सत्यता ये है कि इनकी मुस्लिम आरक्षण की माँग का उद्देश्य मुस्लिम हित नहीं बल्कि ये माँग अपनी (अशराफ) लीडरशिप को कायम रखने व पसमांदा मुस्लिमों को (आरक्षण के द्वारा) मिल रहे संवैधानिक लाभों से वंचित कर खुद उसको प्राप्त करने का बेहतरीन हथियार/जरिया मात्र है. क्योंकि तथाकथित मुस्लिम लीडरशिप (दरअसल अशराफ लीडरशिप) पसमांदा में फ़ैल रही जागरूकता व उनमे उभर रही लीडरशिप की योग्यता में अपनी चौधराहट (एकछत्र राज) लिए खतरा महसूस कर रही है, जो उसे किसी भी परिस्थिति में स्वीकार नहीं है जैसा कि उसका चरित्र व इतिहास है. दरअसल इनकी इस (मुस्लिम आरक्षण की) माँग का उद्देश्य/कारण मुस्लिम हित नहीं बल्कि निम्न दो प्रमुख उद्देश्य/कारण हैं-
1- मुस्लिम आरक्षण की माँग से हिन्दू मुस्लिम ध्रुवीकरण होगा जिससे मुस्लिम नाम पर इनकी लीडरशिप बनी रहेगी, जिसे वर्तमान समय में मिल रहे आरक्षण से लाभान्वित व जागरूक हो रही पसमांदा जातियों द्वारा बड़ी चुनौती मिलने लगी है.
2- यदि संवैधानिक संशोधन अथवा किसी अन्य प्रकार से धार्मिक आधार पर मुस्लिम आरक्षण मिल गया तो मण्डल द्वारा मिल रहे ओबीसी व अनुच्छेद 342 के अंतर्गत मिल रहे एस0टी0 आरक्षण के दायरे से पसमांदा मुस्लिम जातियाँ बाहर हो जाएँगी और मुस्लिमों के नाम पर मिल रहे आरक्षण का पूरा लाभ तमाम मुस्लिमों में हर प्रकार से मजबूत होने के कारण ये अशराफ (विशेषकर सैयद, शेख, मिर्ज़ा जैसी चन्द जातियाँ) उठाने में सफल हो जायेगी. जैसा कि ब्रिटिश काल में मिल रहे पृथक निर्वाचन प्रणाली के अंतर्गत था.
पसमांदा समाज को ये सदैव याद रखना चाहिए कि मुसलमामों की जिन जातियों को सभी फिरकों के ओलमाओं ने जलील करने व पीछे रखने के उद्देश्य से क़ुरआन व हदीस की मनमानी व्याख्या द्वारा अजलाफ अरज़ाल अर्थात नीच निकृष्ट कमीन का सर्टिफिकेट दिया उन जातियों को भारत सरकार सहित भिन्न-भिन्न प्रदेशों की सरकारों द्वारा गठित लगभग सभी आयोगों ने (अपने-अपने क्षेत्र/विषय के अंतर्गत) तरक़्क़ी व सम्मान देने के उद्देश्य से आरक्षण के दायरे में लाने के लिए उन्हें पिछड़ा व अतिपिछड़ा का सर्टिफिकेट दिया तथा भारतीय संविधान की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए 10 अगस्त 1950 के प्रेसीडेंशियल आर्डर (अनुच्छेद 341 पर लगे धार्मिक प्रतिबन्ध) को हटाने की सिफारिश की तथा संविधान सभा ने अनुसूचित ज़ाति व अनुसूचित जनजाति का सर्टिफिकेट दिया.
पसमांदा समाज को इस पर गम्भीरता से विचार करते हुए मुस्लिम आरक्षण की माँग का हर स्तर पर विरोध करना होगा वर्ना मुस्लिम आरक्षण की सफलता का अंजाम ये होगा कि अशराफ कम से कम मुस्लिम समाज में मुस्लिम शासन काल की भांति पसमांदा पर शासक होगा ही साथ ही साथ पसमांदा की स्थिति तथाकथित मुस्लिम शासन काल जैसी पुनः बद से बदतर हो जायेगी बल्कि मुस्लिम आरक्षण पसमांदा के लिए होलोकास्ट (Holocaust)【1】 साबित होगा.
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【1】-हिटलर द्वारा यहूदियों को मरवाने के लिए की गयी विशेष व्यवस्था जिसके लिए हिटलर ने विशेष चैम्बर बनवाये थे जिसमे लगभग 60 लाख यहूदी मारे गए थे. दरअसल हिटलर का इरादा उसी प्रकार यहूदियों की नस्लकुशी (धरती को यहूदी विहीन करने) का था.
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नुरुल ऐन ज़िया मोमिन ‘आल इण्डिया पसमांदा मुस्लिम महाज़ ‘ (उत्तर प्रदेश) के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हैं. उनसे nurulainzia@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है.
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