इस सवाल का जवाब तो देना होगा न कि मुसलमानों का 85% पसमांदा समाज आज अगर गलाज़त में जी रहा है तो कसूरवार कौन है? सरकार को तो हम जी भर के गालियां देते ही हैं पर अब हमें अशराफ मुस्लिम रहनुमाओं से सवाल करने होंगे। हमारे मुसलिम समाज के धार्मिक और राजनीतिक रहनुमाओं ने कौन-सी रणनीति बनाई है जिस पर चल कर यह समाज अपनी गलाज़त से निकल सके? शिक्षा और रोज़गार क्या हमारी मुस्लिम राजनीति का हिस्सा है भी? ये समस्याएँ आखिर कभी राष्ट्रीय बहस का हिस्सा क्यों नहीं बन पाती हैं? तलाक के मुद्दे पर तो सड़कें भर देने वाले हमारे धार्मिक रहनुमा क्या इन मुद्दों पर कभी सड़कों पर निकले हैं? हिंदुत्व (फासिस्ट ताकतों) को मुसलमानों का सबसे बड़ा खतरा बताने वाले हमारे रहनुमाओं ने उससे लड़ने के लिए कौन-सी लोकतांत्रिक रणनीति समाज को दी है? कैसे हम इस खतरे का मुकाबला करें? क्या कोई तरीका है मुसलिम समाज के पास?
‘आधा गाँव’ उपन्यास की पूरी पसमांदा समीक्षा
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) “धर्म संकट में है। गंगाजली उठाकर प्रतिज्ञा करो कि भारत की पवित्र भूमि को मुसलमानों के खून से धोना है…” स्वामीजी जोश में आ चुके थे। “देखो, कलकत्ता और लाहौर और नवाखाली में इन मलेच्छ तर्कों ने हमारी माताओं का कैसा अपमान किया है… ।” “बोलो बजरंगबली की…” एक अकेली आवाज उठी। “जय!” सारा गाँव गूँज […]