मंजिल-ए-मक़सूद मान्यवर कांशी राम को याद करते हुए

गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) एक बार कांशी राम साहेब कार में अपने सहयोगियों के साथ कहीं जा रहे थे. उनकी तबियत जरा नासाज़ थी. एक सहयोगी ने शायद साहेब को रिझाने के लिए कहा, ‘साहेब, कहिये, क्या चाहिए आपको? आप जो चाहोगे मैं वही पेश करूंगा आपके लिए.’ साहेब ने कहा, ‘क्या, सच में?’. ‘जी बिलकुल’, जोशीला जवाब आया. ‘तो मुझे कहीं से समय […]