रचना गौतम (Rachna Gautam) 1. ओ री सखी ! ओ री सखी !जब ढूँढते-ढूँढते पा जाओ शोरिले से अक्षरों में मगरूर वो चार पन्ने और पढ़कर समझ आ जाएगणित तुम्हें इस दुनिया का तो हैरान न होना बेताब न होना धीरज धरना शुन्यता के खगोल में कहीं मूक न हो जाएँतुम्हारी मास्पेशियों का बल जीवन-चालस्वप्न तुम्हारे बौद्ध तुम्हारा ! बौरा […]