0 0
Read Time:28 Minute, 25 Second

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi)

द पियानिस्ट (The Pianist, 2004) रोमन पोलांस्की की होलोकॉस्ट (यहूदियों का जनसंहार) पर बनाई गई सर्वश्रेष्ठ फ़िल्मों में से एक है. यह फिल्म पोलिश पियानिस्ट व्लादिस्लाव स्पिलमैन (Wladyslaw Szpilman) की सच्ची घटना पर आधारित है. निर्देशक रोमन पोलांस्की ख़ुद एक होलोकॉस्ट सर्वाइवल थे, जिस का प्रभाव फ़िल्म की बारीकियों में नज़र आती है.  रोमन पोलांस्की ने इस फ़िल्म को एक सर्वाइवल फ़िल्म की तरह ही बनाया है. जहाँ फ़िल्म का नायक स्पिलमैन न योद्धा है, न ही कोई एक्शन हीरो है. पूरी फ़िल्म में उस का सर्वोत्तम प्रयास ख़ुद को जीवित बचाए रखना है. विषम परिस्थितियों में अपने नैतिक स्तर को गिराए बिना ख़ुद को बचाए रखना, किसी नायकत्व से कम नहीं है. आखिर जीवित बचे रहना क्यों ज़रूरी है?

यहाँ जोजो रैबिट फिल्म में रोज़ी की नसीहत याद आती है. जब वह यहूदी लड़की एल्सा से कहती है, तुम्हें जीना होगा, वह नहीं चाहते तुम ज़िन्दा रहो पर तुम्हारा ज़िन्दा रहना उन की हार होगी और तुम ज़िन्दा रहोगी. तुम ने अगर ज़िन्दा रहने की तमन्ना छोड़ दी तो वह जीत जाएंगे. आज जब हम कंसंट्रेशन कैंप, अलग से पहचान पत्र ,आर्थिक बहिष्कार, नागरिकता संशोधन, भीड़ द्वारा हत्या, नस्लीय शुद्धता, अंधराष्ट्रवाद, युद्ध का महिमामंडन आदि शब्द सुनते हैं तो हमें अपने आसपास हिटलर नज़र आने लगता हैं. हिटलर होने का अर्थ क्या है? नफरत किसी समुदाय, किसी देश के साथ आप के साथ क्या कर सकती है? इस बात को समझने के लिए हमें बार-बार होलोकास्ट (यहूदियों का जनसंहार) का और हिटलर के उदय का अध्ययन करना चाहिए. दरसल यह फिल्म इसी अध्ययन का एक हिस्सा है. इस फ़िल्म का सब से मज़बूत पक्ष यह है कि यह त्रासदी को मानवीय भावना देती है. यहूदियों का नरसंहार सिर्फ़ आप के लिए आंकड़े नहीं रह जाते, न ही इतिहास का कोई एक तथ्य रह जाता है बल्कि आप हर ज़ुल्म को हर हत्या को अनुभव करते हैं. पूरी फ़िल्म को इस तरह बनाया गया है कि स्पिलमैन अपनी जान बचाते हुए एक जगह से दूसरी जगह भागता है और अपने कमरे की खिड़की से घटनाओं को घटते हुए देखता है. वह खिड़की दरसल इतिहास की खिड़की है जिससे दर्शक भी घटनाओं को ठीक स्पिलमैन की ही तरह घटते हुए  देखते हैं. हीरो न तो औशविट्ज़ कैम्प में जाता है और न ही वॉरसॉ विद्रोह में शामिल होता है. इस प्रकार हम यातना और आतंक के क्रूरतम रूप को फ़िल्म में नहीं देखते. इस के बावजूद भी यह फ़िल्म आप को भावनात्मक रूप से झकझोर कर रख देती है. 

[spoiler alert: आगे बढ़ने से पहले बता दूँ कि इस समीक्षा में कई spoiler आएंगे. अगर आप ने पहले फिल्म नहीं देखी है तो पहले फिल्म देख लें. वैसे बिना फिल्म देखे भी यह समीक्षा आप को समझ में आ जाएगी]

फिल्म की कहानी पोलैंड के एक रेडियो स्टेशन से शुरू होती है. जहां स्पिलमैन पियानो बजाने का काम करता है. उसी वक़्त पोलैंड पर जर्मन जहाज़ों का हमला हो जाता है.  स्पिलमैन शांति से अपना पियानो बजाता रहता है. जब तक की स्टूडियो बम से तबाह नहीं हो जाता. चारों तरफ़ अफ़रा-तफ़री है पर स्पिलमैन अंदर से शांत है. उस का कलाकार मन युद्ध के इस क्षण में भी संगीत बनाता है, सपने बुनता है. उस का मन ऐसे वक़्त में भी प्यार के लिए धड़कता है. स्पिलमैन का किरदार संगीत की तरह शुद्ध और मासूम है. स्पिलमैन जब घर पहुँचता है तो उस का परिवार पोलैंड छोड़ने की तयारी में लगा रहता है पर उसी वक़्त रेडियो पर ख़बर चलती है कि ब्रिटैन ने पोलैंड पर हमले का विरोध किया है और उसने जर्मनी के ख़िलाफ़ युद्ध का एलान किया है. स्पिलमैन का परिवार राहत की साँस लेता है और जश्न मनाता है कि चलो अब उन्हें हिटलर से डरने की ज़रूरत नहीं है लेकिन उन की यह ख़ुशी क्षणिक होती है. जर्मनी पोलैंड पर कब्ज़ा कर लेता है. इस फिल्म की सबसे बड़ी कमी यही है कि अगर आपने थोड़ा भी इतिहास का अध्ययन किया है तो आप पहले से जानते रहते हैं कि आगे क्या होगा!

‘द पियानिस्ट’ फिल्म का दृश्य 

क्या हिटलर ने होलोकॉस्ट सत्ता में आते ही शुरू कर दिया था? कोई भी जनसंहार फ़ौरन शुरू नहीं होता, उस के लिए माहौल बनाया जाता है. हम ने यह रवांडा और टुल्सा जनसंहार में भी देखा था. यहूदियों का जनसंहार भी फ़ौरन शुरू नहीं हुआ था. इस जनसंहार की भूमिका कई दशकों से तैयार हो रही थी. हिटलर ने बस उसे अमली जामा पहनाया था. हिटलर ने किस तरह होलोकास्ट को अंजाम दिया इसको समझने का सबसे अच्छा तरीका यह कि होलोकॉस्ट शुरू होने से पहले बनाए गए तमाम एंटी-सेमेटिक क़ानूनों को देखा जाए. अध्यन करने पर आप पाते हैं कि हिटलर ने बड़े सिलसिलेवार ढंग से यहूदियों के मुकम्मल दमन के इरादे को अंजाम दिया. 1933 से लेकर 1943 तक कई कानून लाए गए जिसमें मुख्य रूप से यहूदियों को सरकारी नौकरी करने, मेडिसिन, फार्मेसी और कानून की पढ़ाई करने और फ़ौज में भाग लेने पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया. न्यूरेमबर्ग क़ानून (Nuremberg Laws) जो कि 1935 में आया इसके तहत यहूदियों से वोट का अधिकार छीन लिया गया. नागरिक क़ानून (Citizenship Laws) के अंतर्गत जर्मनी का नागरिक कहलाने का हक उसी को था जिसकी रगों में जर्मन ख़ून हो. जर्मन नागरिकों और यहूदियों के बीच शादियों को अवैध घोषित कर दिया गया. विदेशों में भी यदि कोई ऐसी शादी करे तो वो भी अवैध. यहाँ तक कि जर्मन नागरिकों और यहूदियों के शारीरिक सम्बन्ध भी पूरी तरह गैर-कानूनी घोषित कर दिए गए.

समय आगे बढ़ते बढ़ते यहूदियों को पार्कों, रेस्टॉरेंटस, स्विमिंग पूल इत्यादि से प्रतिबंधित कर गया. उनके इलेक्ट्रिकल उपकरण (Bicycles, typewriters and records) इस्तेमाल पर रोक लगा दी गयी. यहूदी विद्यार्थी जर्मन स्कूलों से निष्कासित कर दिए गए. यहूदी अध्यापक भी प्रतिबंधित हो गए. यहूदियों के लिए ख़ास तौर पर आइडेंटिटी कार्ड बनाए गए. उन के पासपोर्ट पर लाल रंग से ‘J’ (Jews) लिख दिया गया. उन्हें सिनेमा, थियेटर, एग्ज़ीबिशन इत्यादि में हिस्सा लेने से रोक दिया गया. युहूदियों को मजबूर किया गया कि वह अपने नाम के साथ ‘Sarah’ or ‘Israel’ जोड़ें. 1938 आते आते पूरे देश में यहूदियों के ख़िलाफ़ व्यापक हिंसा की शुरुआत हो गई. यहूदियों के घर, दुकानें, यहूदियों का प्रार्थना-गृह (Synagogues) तोड़े और जला दिए गए. अगले वर्ष और क़यामत के थे जहाँ यहूदियों को उनके घरों से निकाल दिया गया. उन से कहा गया कि वह अपने क़ीमती सामान जैसे सोने-चाँदी, हीरे-जवाहरात बिना किसी मुआवज़े के सरकार को सौंप दें. उनके लिए पूरे देश में कर्फ़्यू लगा दिया गया. इस तरह से यहूदियों को कदम-दर-कदम पूरी तरह से लाचार बनाया गया और इसके लिए जर्मनों को इस तरह से तैयार किया गया कि दमन के इस खेल में वो भाग लें और वो भी गर्व से. टेलीफोन कनेक्शन काट दिए गए तो यहूदी एक दुसरे से संपर्क से टूट गए. विश्वयुद्ध चल रहा था जबकि यहूदियों को युद्ध के समय मिलने वाले राशन और कपड़े मिलने पर पाबंदी लग गई. इस सिलसिलेवार कसते चक्रव्यूह का ये आखिरी दाव था. यहूदियों के देश छोड़ने पर पाबंदी लग गई थी और उनके गर्म कपड़े ज़ब्त हो चुके थे और खाने में मिलने वाले अंडे और दूध से भी वो महरूम हो गए थे. हिटलर ने लगभग 8-9 वर्षों तक अहिस्ता अहिस्ता जर्मन लोगों को यहूदियों के खिलाफ तैयार किया और यहूदियों की नस्लकुशी अपने अंजाम तक पहुँच गई.

इस के बाद की घटना को हम इतिहास में होलोकॉस्ट के रूप में पढ़ते हैं पर शिक्षा का सही अर्थ यह है कि हम यह पढ़ें और समझें कि होलोकॉस्ट क्यों हुआ था! मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, “हिटलर ने जो भी किया वह क़ानून बना कर किया, क़ानून सम्मत किया. क़ानून-व्यवस्था न्याय की स्थापना के लिए होते हैं और जब वह इस में नाकाम रहते हैं तो वह ख़तरनाक ढंग से बने बांध की तरह हो जाते हैं जो सामाजिक प्रगति के प्रवाह को थाम लेते हैं. इस लिए एक अन्यायपूर्ण क़ानून को न मानना एक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है. हिटलर ने सिर्फ़ यहूदियों को ही नहीं  मारा बल्कि उसने अपनी विचारधारा का इस्तेमाल अपनी जातीयता, राजनीतिक मान्यताओं, धर्म और यौन अभिविन्यास के आधार पर लोगों के साथ भेदभाव करने और उन्हें सताने के लिये किया. लगभग 75,000 पोलिश (पोलैंड) नागरिक़ों, 15,000 सोवियत युद्ध क़ैदियों, समलैंगिकों और राजनीतिक क़ैदियों एवं अन्य लोगों को भी जर्मन सरकार ने ऑशविट्ज़ कैम्प में मौत के घाट उतार दिया था. इतने लोगों की हत्या हो गई और जर्मन के आम लोग  शांत रहे, ऐसा कैसे हुआ? यहूदियों के साथ जो घटा या जो चक्रव्यूह रचा गया उसकी कार्यशैली आज आपको यहाँ दिख सकती है. लोगों को मोब के तौर पर तैयार किया जा रहा है, ख़ास कौमों के खिलाफ. लोग/’भक्त’ अगर जर्मन में हो सकते हैं तो यहाँ क्यूँ नहीं! यहाँ की ज़मीन तो धार्मिक उन्माद के लिए उपजाऊ है ही ताकि दबे कुचले लोग संगठित होने के बजाये आपस में लड़ें और और अधिक कमज़ोर होते चले जाएँ.

अब दुबारा हम फिल्म पर आते हैं. पोलैंड में सब से ज़्यादा यहूदी थे क्यों कि यहाँ प्रवासी क़ानून सब से ज़्यादा मज़बूत थे. जिस की वजह से पोलैंड में यहूदियों के जीवन और उन की संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो पाई थी. इसी वजह से यहूदी वहाँ सम्पन्न रूप से जीवन यापन कर रहे थे. लेकिन जैसे ही हिटलर ने पोलैंड पर कब्ज़ा किया, उस ने धीरे-धीरे यहूदियों को हाशिये पर भेजना शुरू किया. यहूदियों के सार्वजानिक स्थानों पर जाने पर पाबन्दी लगा दी गई. उन की दुकानों पर से कुछ भी ख़रीदने पर प्रतिबंध लगा दिया गया. (भारत में हम हाल ही में मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार देख चुके हैं) नाज़ियों ने जब यहूदियों के लिए हाथ पर पट्टा बांधना अनिवार्य किया तो सैमुअल स्पिलमैन(Samuel Szpilman) जो व्लादिस्लाव स्पिलमैन के पिता थे, वह इस क़ानून का विरोध करते हैं पर अगले ही क्षण वह उसी पट्टे को पहने रोड पर चल रहे होते हैं. सैमुअल स्पिलमैन को नाज़ी अधिकारी रोकते हैं और उसे थप्पड़ मारते हुए कहते हैं, “तुम्हे नहीं पता कि सार्वजनिक सड़कों पर चलना यहूदियों को मना है?” सैमुअल स्पिलमैन चुपचाप रोड से उतर कर गन्दी नालियों के बिच चलने लगते हैं.  आप को यह सुन कर तकलीफ़ हो रही होगी तो कल्पना करें कि यही काम भारत में अछूतों-दलितों के साथ सदियों तक किया गया. नाज़ियों के बनाए सारे क़ानून यहूदियों को तो एक दशक तक भोगने पड़े जब कि अछूतों-दलितों ने इन क़ानूनों को सदियों तक भोगा है (और आज भी भोग रहे हैं). क़ानून किस तरह काम करता इस को समझना ज़रूरी है. जब क़ानून समाज के किसी ख़ास वर्ग के लिए बनाया जाता है और समाज में वर्गों के बिच दूरिया बड़ा दी जाती हैं  तो समाज एक वर्ग को दूसरे वर्ग के लिए बनाए गए उस अत्याचारी कानून के प्रति वैसा गुस्सा नहीं रह जाता है क्यों कि ऐसे क़ानून उन को प्रभावित नहीं कर रहे होते हैं. आप कह सकते हैं दलितों-यहूदियों ने ऐसा क़ानून माना ही क्यों! तो इस को भी समझते चलें कि क़ानून अपने पीछे उसे लागू करने की शक्ति (पुलिस-सेना) भी लेकर आता है और क़ानून तोड़ने वालों को सज़ा (अदालत द्वारा) देने की शक्ति भी रखता है. इसके अतिरिक्त शिक्षा (स्कूल-कालेज गुरुकुल-मदरसे ) द्वारा आपको उस कानून को पालन करने की ट्रेनिंग भी दी जाती है.   

जर्मनी के क़ब्ज़े के बाद पूरे पोलैंड से यहूदियों को इकट्ठा कर के वॉरसॉ के एक छोटे से कंसन्ट्रेशन कैम्प में भेज दिया गया. यह यहूदियों का एक और बार पलायन था. हम इतिहास में देखते हैं कि यहूदियों को कई बार उन के घरों से उनके देश से  निकाला गया है. फ़िल्म का यह दृश्य बड़ा ही हृदय विदारक है- यहूदियों को उन के घरों से निकाल दिया गया है, वह अपने सामान के साथ पलायन कर रहे हैं. सड़क के दोनों तरफ़ लोग खड़े हो कर तमाशा देख रहे हैं. ऐसे दृश्य हमने फ़िलिस्तीन में भी देखें हैं और कश्मीर में भी. इन सारे यहूदियों को वॉरसॉ के कंसन्ट्रेशन कैम्प में डाल दिया जाता है. इस छोटे से कैम्प में तीन लाख सात हज़ार यहूदी रहते हैं. यहूदियों को लगता है यह ज़्यादा दिन नहीं चलेगा और एक न एक दिन अच्छे दिन आएँगे. इस कंसन्ट्रेशन कैम्प की परिस्थितियां बहुत ही अमानवीय हैं और लोग दाने-दाने को तरस रहे हैं. लोग सड़कों पर बेहोश गिरे हुए हैं तो औरतें अपने पतियों को ढूंढती फिर रही हैं. वॉरसॉ के इस घेटो (Ghetto) को 10 फ़ीट की दीवारों से घेरा गया था ताकि यहूदियों का बाहरी दुनिया से सम्पर्क टूट जाए. घेटो के अंदर रोज़गार के अवसर न के बराबर थे. सिर्फ़ कुछ ही लोगों को रोज़गार परमिट मिलता था जिस की बदौलत वह जर्मन बस्तियों में जा कर काम कर सकते थे. कैम्प के अंदर एक यहूदी को एक दिन में 180 कैलोरी तक ही खाने को मिलता था यानि आज के 5 रुपए के पार्ले जी बिस्कुटकी आधी पैकेट जितना. कैम्प के अंदर भुखमरी की भयावता दिखाने वाले कई दृश्य हैं लेकिन उन में जो सब से ज़्यदा भयावह है वह दृश्य है जिस में एक बूढ़ा व्यक्ति एक औरत से खाना छीनना चाहता है, इसी दौरान खाना कीचड़ में गिर जाता है. वह व्यक्ति इतना भूखा होता है कि वह कीचड़ में गिरे हुए खाने को जल्दी-जल्दी खाने लगता है. कहीं वह औरत उस खाने को कीचड़ से उठा न ले

स्पिलमैन का घर भी ग़रीबी और भूखमरी से परेशान है. उस का छोटा भाई यह सब देख कर दुखी है और ग़ुस्से में भी है. परन्तु घर के बाक़ी सदस्य वर्तमान परिस्थियों पर बात नहीं करना चाहते. उन को लगता है कि ज़ुल्म और अत्याचार को नज़र अंदाज़ करने से सब सही हो जाएगा, उन पर कभी मुसीबत नहीं आएगी. उन की यह पलायनवादी सोच ही उन्हें इस ज़ुल्म के ख़िलाफ़ लड़ने से रोकती थी. स्पिलमैन का छोटा भाई हेनरिक स्पिलमैन अपने परिवार को वर्तमान परिस्थितियों पर लगातार बोलने और सोचने पर मजबूर करता है पर उसे सरकार पर बात करने से रोक दिया जाता है. अभी वह कुछ कह ही रहा होता है कि बगल वाले घर में नाज़ी सैनिक घुस जाते हैं बाक़ी के यहूदी अपने-अपने घरों की लाइट बन्द कर के खिड़की से देखते हैं. नाज़ी बगल वाले यहूदी के घर में व्हील चेयर पर बैठे एक बुज़ुर्ग यहूदी को उस की बालकनी से नीचे फेंक देते हैं बाक़ी के घर वाले जान बचा कर भागने की कोशिश करते हैं पर उन्हें गोलियों से भून दिया जाता है और जो लोग गोली लगने से नहीं मरते उन पर नाज़ी अपनी कार चढ़ा देते हैं. ऐसी घटनाए वहां रोज़ होती हैं फिर भी लोग विद्रोह की बात नहीं करते या लड़ने के बारे में नहीं सोचते. कोई विद्रोह की बात करता है तो उस से सवाल किया जाता है, “क्या तुम्हें पक्का पता है कि नाज़ी सारे यहूदियों को मार देंगे?” कोई भी यह है मानना नहीं चाहता है कि नाज़ी इस तरह सारे यहूदियों को मारेंगे. सब को लगता है हम तो बच ही जाएंगे, हम तो सरकार का विरोध ही नहीं कर रहे हैं,सरकार के हर आदेश को मान रहे हैं,भला वे हमें क्यों मारेंगे ? बस इसी वजह से लोग विद्रोह के लिए इकट्ठे नहीं होते. विद्रोह की भावना किस तरह तोड़ दी गई थी इसे समझने के लिए  फ़िल्म के  एक और दृश्य का वर्णन करना ज़रूरी है. जब एक नाज़ी अफ़सर यहूदियों की एक लाइन को बाहर निकालता है और उन्हें ज़मीन पर लेट जाने को कहता है. फिर वह एक-एक करके सब के सिरों पर गोली मारता रहता है. जब वह अन्तिम व्यक्ति के पास पहुँचता है तो उस की बन्दूक की गोली ख़त्म हो जाती है. वह व्यक्ति अपने सामने पड़ी हुई लाशों को देखता है और फिर उस अफ़सर को देखता है. अफ़सर आराम से गोलियां भर रहा होता है, गोलियां भरने के बाद वह उस अंतिम व्यक्ति को भी मार देता है जब कि उस के बाक़ी के साथी यह सब चुपचाप देख रहे होते हैं और वह व्यक्ति भी मरते समय भी विद्रोह नहीं करता,चुपचाप लेटा रहता है.

पर इस वॉरसॉ में कुछ ऐसे लोग भी हैं जो इस अत्यचार के ख़िलाफ़ अख़बार निकालते हैं और यहूदियों को जागरूक करने की कोशिश करते है. इन लोगों की वजह से वॉरसॉ का शानदार विद्रोह भी होता है पर वहीं दूसरे यहूदी भी हैं जो घेटो पुलिस के रूप में नाज़ियों के लिए काम करते हैं. यह घेटो पुलिस भी नाज़ियों की तरह बाक़ी यहूदियों पर ज़ुल्म करती है. घेटो पुलिस के रूप में यह यहूदी मैकाले के उन भारतीयों की तरह हैं ‘जो रंग से भारतीय और सोच से अंग्रेज़ हैं’. से लोग आप को हर समाज में नज़र आएंगे. यह यहूदी अन्य यहूदियों से ख़ुद को इतना अलग मानते हैं कि इन को फ़र्क़ नहीं पड़ता कि नाज़ी सिपाही लाखों की संख्या में यहूदियों को गैस चैम्बर में डाल कर मार रहे हैं. फिर एक दिन आदेश आता है कि सभी यहूदियों को ऑशविट्ज़ कैम्प (ऑशविट्ज़ पोलैण्ड, यूरोप में नाज़ियों द्वारा स्थापित यातना केंद्र जहाँ यहूदियों को गैस चैम्बर में डाल कर मार दिया जाता था) में ट्रांसफ़र किया जाएगा. घेटो पुलिस को अंदाज़ा होता है कि इन यहूदियों के साथ क्या होने वाला है. फिर भी वह उन्हें ट्रैन में ठूंसने के काम में लगे रहते हैं. यह दृश्य भी फ़िल्म के बेहतरीन दृश्यों में से एक है.  ट्रैन के इंतज़ार में लोग एक जग इकठ्ठा हैं. अफ़रा-तफ़री का माहौल है, किसी को किसी की परवाह नहीं है. एक औरत ज़ोर-ज़ोर से रो रही है और बार-बार कह रही है कि उस ने ऐसा क्यों किया! स्पिलमैन के पूछने पर पता चलता है कि वह नाज़ियों से बचने के लिए एक जगह छुपी हुई थी, तभी उसका बच्चा रोने लगा. पकड़े जाने के डर से उस ने अपने बच्चे का गला दबा दिया, बाद में वह पकड़ी भी गई. वहीं एक बच्चा चिड़ियों का पिंजरा पकड़े खड़ा अपने माँ-बाप को खोज रहा है. इन्ही सब के बीच एक बच्चा टॉफ़ी बेच रहा है. उसकी टॉफ़ी की क़ीमत बहुत ज़्यादा है पर हम जानते हैं कि इस पैसे का कोई मोल नहीं है. स्पिलमैन के पिता सभी से पैसा इकट्ठा करके उस बच्चे से टॉफ़ी खरीदते हैं और उसे 6 भागों में काट कर सभी को देते हैं. यह उन का एक साथ आख़िरी खाना होता है. फिर ट्रैन आ जाती है और सभी को उस में ठूंस दिया जाता है. स्पिलमैन को एक यहूदी पुलिस वाला ट्रैन में चढ़ने से रोकता है और उसे वहां से भाग जाने को कहता है. स्पिलमैन के वहां से भागने और ज़िंदा बचे रहने की जद्दोजहद अंत तक बनी रहती है. इस दौरान हम नाज़ी अफ़सर Captain Wilm Hosenfeld (Thomas Kretschmann) को भी देखते हैं जो नाज़ियों के बीच बची मानवता को दर्शाता है. कप्तान होसेनफ़ेल्ड स्पिलमैन की हर संभव मदद करने की कोशिश करता है पर अंत में रुसी सैनिकों द्वारा पकड़ा जाता है और मार दिया जाता है. 

यह फिल्म शुरू से अंत तक लाजवाब बन पड़ी है. अवार्ड्स इतनी एहमियत नहीं रखते, खासतौर पर भारत जैसे देशों में तो ये अपना रसूख ख़त्म करवा चुके हैं. बहुत सी बढ़िया फ़िल्में आश्चर्यजनक रूप से कोई अवार्ड हासिल नहीं कर पातीं. बहरहाल इस फिल्म को तीन ऑस्कर अवार्ड मिले. अवार्ड्स के लिए इस फिल्म को नोटिस किया गया ये बढ़िया बात है. अभिनय की बात करें तो परिस्थितियों में बदलाव के साथ आने वाले सूक्ष्म परिवर्तन भी स्पिलमैन के चेहरे पर नज़र आते हैं. यह फ़िल्म आज के वक़्त में इस लिए भी ज़रूरी है ताकि हम समझ सकें कि एक बार अगर होलोकॉस्ट हुआ है तो वह दुबारा भी हो सकता है. अगर हम बारीक़ी से देखें तो जो कल हुआ क्या वह आज नहीं हो रहा है! बल्कि बहुत कुछ पहले से कहीं ज़्यादा बारीक और समृद्ध तरीक़े से किया जा रहा है. आज यहूदियों की तरह क्या मुसलामनों को पहले से ही प्रोपेगैंडे के ज़रिये निशानदेही की जा चुकी है? क्या  मुसलामनों को दुश्मन/राष्ट्र का शत्रु के रूप में पेश नहीं किया जा रहा है? इसलिए हमें एक बार फिर हिटलर तथा उस की विचारधारा को समझना होगा. हमें इतिहास में दुबारा जाना होगा और फिर याद करना होगा ताकि दुबारा हिटलर पैदा न हो पाए.

~~~

 

लेनिन मौदूदी लेखक हैं एवं  DEMOcracy विडियो चैनल के संचालक हैं और अपने पसमांदा नज़रिये से समाज को देखते-समझते-परखते हैं.

Magbo Marketplace New Invite System

  • Discover the new invite system for Magbo Marketplace with advanced functionality and section access.
  • Get your hands on the latest invitation codes including (8ZKX3KTXLK), (XZPZJWVYY0), and (4DO9PEC66T)
  • Explore the newly opened “SEO-links” section and purchase a backlink for just $0.1.
  • Enjoy the benefits of the updated and reusable invitation codes for Magbo Marketplace.
  • magbo Invite codes: 8ZKX3KTXLK
Happy
Happy
0 %
Sad
Sad
100 %
Excited
Excited
0 %
Sleepy
Sleepy
0 %
Angry
Angry
0 %
Surprise
Surprise
0 %

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

One thought on “द पियानिस्ट : जब कानून का पालन ही मानव त्रासदी का कारण बन जाए

  1. मैंने फिल्म देखने से पहले आपकी समीक्षा पढ़ी. फिल्म के बारे में जो बातें थी, उन्होंने एक पृष्ठभूमि का काम किया. आपकी समीक्षा ने मुझे फिल्म देखने को प्रेरित किया. मैं यह फिल्म नहीं देखता तो बहुत कुछ मिस कर देता. यह मूवी यहूदी नरसंहार और हिटलर की तानाशाही का ही प्रदर्शन नहीं करती बल्कि दर्शक इस मूवी को देखते हुए यहूदियों के दर्द, एक अज्ञात भय, और नाजियों के प्रति घृणा का भाव… घृणा से ज्यादा उनसे डर का भाव महसूस करता है. इस फिल्म को देखना एक वेदना से गुजरने जैसा है. आपकी इस फ़िल्म समीक्षा बहुत अच्छी है, एक समझ भरी,तार्किक और संवेदनात्मक. आपको आगे के प्रोजेक्ट के लिए शुभकामनाएं.

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *