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प्रोफ़ेसर (डॉ) सूर्या बाली ”सूरज धुर्वे” (Professor (Dr.) Surya Bali “Suraj Dhurve”)

विगत एक दशक से भारत में एक अंतर्राष्ट्रीय दिवस की बड़ी चर्चा रही है और दिन प्रति दिन उसके प्रति लोगों की दीवानगी बढ़ती ही जा रही है। इस दिवस का नाम है “International Day of the World’s Indigenous People” यानि ”विश्व के कोइतूर लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस”। अब प्रश्न ये उठता है ये कोइतूर कौन हैं? ये कहाँ रहते हैं? इन्हें कैसे पहचानेंगे? ये दिवस क्यूँ मनाया जाता है? इस दिवस का मुख्य विषय क्या है? आज इस लेख में इन्हीं मूल प्रश्नों के उत्तर देते हुए विश्व के कोइतूर लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस के इस वर्ष के मूल विषय (Theme) पर विस्तार से चर्चा करेंगे।”

कोइतूर कौन?

मानव विकास क्रम में किसी विशेष भौगोलिक क्षेत्र में एक विशेष किस्म की मानव प्रजाति का उद्भव हुआ और हज़ारों वर्षों तक उस क्षेत्र विशेष में उसी मानव प्रजाति का दबदबा रहा और उसी प्रजाति की सभ्यता और संस्कृति विकसित हुई और ये मानव प्रजातियाँ अगले हज़ारों वर्षों तक भौगोलिक बाधाओं के कारण एक दूसरे से अलग-थलग पुष्पित और पल्लवित हुई। गोंडी भाषा में ऐसे भारत भूमि के प्रथम मानव को कोया कहते हैं। भारत के संदर्भ में यहाँ का प्रथम मानव कोया था इसीलिए भारत का प्राचीन नाम कोयामूरी दीप भी है। और उसकी जीवन पद्धति कोया पुनेमी थी। कोइतूर शब्द के अर्थ को समझने से पहले इसके लैटिन मूल शब्द ‘Indigenous’ को समझना होगा।

जिस तरह से इंडीजेनस (indigenous) शब्द दो शब्दों से मिलकर बना हुआ है जिसमें पहला शब्द इंडी (Indi) और दूसरा शब्द जेनस (Genous) है। इंडी का अर्थ उन मानव समूहों से होता है जो मूल रूप से अन्य लोगों से पहले किसी स्थान विशेष या देश में रहते थे। इसे अंग्रेज़ी भाषा में नेटिव (Native) भी कहा जाता है। इंडिजेनस का दूसरा शब्द जेनस (Genous) का अर्थ वंश होता है। यानि ऐसे लोगों का समूह जो मूल रूप से किसी स्थान या देश में अन्य लोगों के वहाँ आने से पहले से ही निवासरत रहे हों। (आईएलओ)

गोंडी भाषा में इंडीजेनस शब्द का हूबहू अर्थ कोइतूर या कोयतोड़ होता है (गोंडवाना समय, 2020)। हिन्दी भाषा में इसका सीधा अर्थ ‘कोया वंशी’ होता है। कोइतूर शब्द गोंडी भाषा का एक महत्त्वपूर्ण शब्द है जो ‘इंडीजेनस’ शब्द की ही तरह दो शब्दों से मिलकर बना है। पहला शब्द है कोया और दूसरा शब्द है नत्तुर यानि कोया का नत्तुर। यानि कोया का खून या कोया का वंश जिसे लोग आम बोलचाल में कोयावंशी भी कहते हैं (बाली, सूर्या, 2020)। इसी को लैटिन भाषा में ‘Indigenous’ कहते हैं। हिन्दी में कोइतूर को देशज, स्वदेशी या मूलनिवासी भी कहते हैं परंतु ये शब्द भी इंडीजनस शब्द का हूबहू अर्थ नहीं बताते हैं। दुर्भावनावश, अनभिज्ञता के कारण, अशिक्षा के कारण या किसी अन्य राजनैतिक वजहों से कहीं-कहीं कोइतूरों के ऐसे समूहों को नीचा दिखाने के लिए कई अन्य विशेषणों जैसे आदिबासी, बनवासी, जंगली, गँवार इत्यादि से भी पुकारा या संबोधित किया जाता है। यही कारण है कि कई जगहों पर ‘इंडीजेनस’ शब्द का अर्थ वनवासी या आदिवासी निकाला जाता है जो पूर्णतया गलत है और असंवैधानिक भी। (बाली, सूर्या, 2018)

कोइतूर शब्द बहुत ही विराट अर्थ समेटे हुए है अगर इसके मूल स्वरूप को समझें तो इसका सीधा मतलब भारतीय उपमहाद्वीप में अन्य लोगों के आने से पहले ही यहाँ की धरती में रहने वाले प्रथम मानव समूहों (कोया) के वंशजों से है। प्राचीन काल में भारत को कोयामूरी दीप और उसमें रहने वाले भारतीयों को कोया कहते थे। कोयामूरी दीप का अर्थ गोंडी भाषा से ही समझा जा सकता है। कोया का अर्थ प्रथम मूल मानव, मर्री का अर्थ – लड़का, और दीप का अर्थ – टापू या चारों और पानी से घिरा हुई भूमि। इस तरह कोयामूरी दीप का शाब्दिक अर्थ हुआ कोइतूरों या कोया वंशियों की भूमि यानी ‘द लैंड ऑफ़ कोया संस’ (The Land of Koya Sons or The Land of Koitoor)। आज उन्हीं कोया लोगों के वंशजों को गोंडी भाषा में कोइतूर या कोयतोड़ कहते हैं (आइर चैटर्टन,1916) और भारत (कोयामूरी दीप) में बाद में प्रवेश करने वाले आर्यों, शकों, हूणों, यवनों, मुगलों इत्यादि को बइतूर या बयतोड़ कहा गया है।

अगर हम कोइतूर शब्द को और गहरे अर्थ में समझें तो आज की अनुसूचित जनजातियों (Schedule Tribes), अनुसूचित जातियों (Schedule caste), पिछड़ा वर्ग (Other Backward Classes) और धार्मिक अल्पसंख्यकों (Religious Minorities) को मिलकर जो समूह बनता है वह भी कभी इसी कोइतूर (Indigenous) समाज का हिस्सा था लेकिन कालांतर में बाहर से आने वाले लोगों की संस्कृतियों के प्रभाव और संपर्क में आकर अपनी मूल संस्कृति, रहन-सहन, भाषा बोली, तीज त्योहार, खान पान, पूजा पाठ, जीवन संस्कार इत्यादि को त्याग दिया और अपने कोइतूर होने के अधिकार को खो दिए। भारत की मात्र कुछ जनजातियाँ जैसे गोंड, प्रधान, कोया, इत्यादि ही अपने उस प्राचीन मूल कोयापुनेमी सभ्यता और संस्कृति को बचाए रहने में सफल रहे हैं और आज भी कोइतूर होने का अधिकार रखते हैं। इसी कारण से कुछ विद्वान और इतिहासकार कोइतूर शब्द का अर्थ केवल गोंड जनजाति के लिए प्रयोग करते हैं (मिश्र, सुरेश, 2008)। आज के संदर्भ में कोइतूर का अर्थ बहुजन या सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग (Socially & Educational Backward Classes)-एसईबीसी) की तरह समझा जा सकता है।

यदि आज के बहुजन अपनी खोई हुई प्राचीन संस्कृति को पुनर्स्थापित करके और उसे फिर से अपने जीवन में आत्मसात् कर लें तो वे फिर से कोइतूर हो सकते हैं। बहुजन और कोइतूर शब्द के संबंध को आप इस समीकरण से आसानी से समझ सकते हैं:

[आधुनिक बहुजन + प्राचीन कोया पुनेमी संस्कृति = कोइतूर] या इसे इस तरह से भी लिख सकते हैं – [कोइतूर – प्राचीन कोया पुनेमी संस्कृति = आधुनिक बहुजन]

इंडीजेनस कौन हैं?

उपरोक्त व्याख्या में भारत में जिस तरह इंडीजेनस शब्द का मतलब कोइतूर होता है ठीक वैसे ही कनाडा में फ़र्स्ट नेशन, अमेरिका में रेड इंडियन, ऑस्ट्रेलिया में अबोरीजिनल, अफ्रीका में ट्राइब या अन्य और जगहों पर नेटिव होता है (राउंड टेबल इंडिया, 2021)। इन सभी को संयुक्त राष्ट्र द्वारा सामूहिक रूप से इंडीजेनस (Indigenous) कहा जाता है। इस लेख में इंडीजेनस शब्द के लिए केवल कोइतूर शब्द का प्रयोग करेंगे।

विश्वभर में अनुमानित 47.6 करोड़ (476 मिलियन) कोइतूर लोग 90 देशों में रहते हैं। वे दुनिया की आबादी का 5% से भी कम हिस्सा बनाते हैं, लेकिन सबसे गरीब लोगों में उनका हिस्सा 15% है। वे विश्व की अनुमानित 7,000 भाषाओं में से अधिकांश भाषाएँ बोलते हैं और 5,000 विभिन्न संस्कृतियों का प्रतिनिधित्व करते हैं। कोइतूर लोग दुनिया के सभी क्षेत्रों में रहते हैं और वैश्विक भूमि क्षेत्र का लगभग 22% हिस्सा अपने पास रखते हैं, उस पर कब्ज़ा करते हैं या उसका उपयोग करते हैं (यूनाइटेड नेशन)।  

कोइतूर लोग असाधारण और अद्वितीय संस्कृतियों और पर्यावरण से संबंधित तरीकों के जनक, उपयोगकर्ता और उत्तराधिकारी हैं। इनकी सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्थाएँ बहुत ही प्राकृतिक, विशेष और उन्नत होती हैं जो उन प्रमुख समाजों से अलग होती हैं जिनमें वे रहते हैं। अपने सांस्कृतिक मतभेदों के बावजूद, दुनिया भर के कोइतूर अपने अस्तित्व, अस्मिता, पहचान, सुरक्षा और अधिकारों से जुड़ी समस्याओं को पूरी दुनिया से साझा करते हैं।

कोइतूरों यानी इंडीजेनस समूहों की प्रमुख समस्याएँ क्या हैं?

आपको जानकार आश्चर्य होगा कि पूरी दुनिया में पूरब से पश्चिम, उत्तर से दक्षिण हर जगह इंडीजेनस लोगों की समस्याएँ मूल रूप से एक तरह की ही हैं। इनकी प्रमुख समस्याओं में इनके जल, जंगल, जमीन को बाहरी लोगों द्वारा विकास के नाम पर कब्जा करना, विकाश के नाम पर इनका विस्थापन करना, इनकी पहचान को मिटाना, इनकी भाषा और संस्कृति को खत्म करना, इनको दोयम दर्जे का नागरिक समझना, इनकी मूल रीति रिवाज, परम्पराओं को रूढ़िवादी, दकियानूसी और गलत बताना, इनके भाषा साहित्य का संरक्षण न करना, प्रकृति के साथ खिलवाड़ करना, बाहरी लोगों के समान इन्हें अधिकार न देना, काम काज, व्यवसाय, शिक्षा, नौकरी में समान अवसर न दिया जाना, कथित मुख्यधारा में जोड़ने के नाम पर उनकी पहचान और मूल प्राकृतिक संस्कृति को मिटाना, धर्म परिवर्तन आदि शामिल हैं।(यूनाइटेड नेशंस, 2021)

 

कई कोइतूर समूहों को उनके देश में ही हाशिए पर रखा जाता है और उन्हें अत्यधिक गरीबी सहने के लिए मजबूर किया जाता है और साथ ही साथ उनके मानवाधिकारों का हनन भी होता रहता है। आज कोइतूर लोग यकीनन दुनिया में सबसे वंचित और कमजोर लोगों के समूह में से हैं। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संयुक्त राष्ट्र अब मानता है कि उनके अधिकारों की रक्षा और उनकी विशिष्ट संस्कृतियों और जीवन शैली को बचाए रखने के लिए विशेष उपायों की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ क्या है?

संयुक्त राष्ट्र संघ यानि (United Nations Organization) एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है जिसे हम बोलचाल में संयुक्त राष्ट्र भी कहते हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना 24 अक्टूबर 1945 को हुई। इसलिए 24 अक्टूबर को हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र दिवस के रूप में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र संघ के आज 193 देश सदस्य है। संयुक्त राष्ट्र संघ का मुख्यालय अमेरिका के न्यूयोर्क शहर में स्थित है। अंतर्राष्ट्रीय कानून को सुविधाजनक बनाने, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग, अंतर्राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास, मानव अधिकार, सामाजिक प्रगति, विश्व शांति के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यरत है। (टीएफ़आई पोस्ट, 2022)

कोइतूर लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र की घोषणा

पारस्परिक साझेदारी और सम्मान की भावना से अपनाए जाने वाले उपलब्धि के मानक के रूप में कोइतूर लोगों के अधिकारों पर 46 अनुच्छेद वाले चार्टर यानी घोषणा का निर्माण किया गया है जिसे पूरी दुनिया के सरकारों और राज्यों से अनुपालन करने की आशा की जाती है।

विश्व के कोइतूर लोगों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय दिवस की घोषणा

संयुक्त राष्ट्र संघ में इंडीजेनस लोगों की उपरोक्त वर्णित मूल समस्याओं को जानने-समझने और उनके समाधान ढूँढने के लिए एक कार्यकारी समूह (Working group) का गठन किया गया था। इस कार्यकारी समूह की पहली ऐतिहासिक बैठक 9 अगस्त 1982 को जेनेवा में आयोजित की गई थी। इसलिए इस ऐतिहासिक बैठक और उसके महत्त्व को यादगार बनाने के लिए और कोइतूर लोगों की जरूरतों के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, प्रत्येक वर्ष 9 अगस्त को इस महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय दिवस को पूरी दुनिया में मनाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को 9 अगस्त को औपचारिक रूप से मनाने की घोषणा दिसंबर 1994 को की थी। तब से लगातार प्रत्येक वर्ष हम सभी इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को बड़े ही धूमधाम से मानते आ रहे हैं।

प्रत्येक वर्ष इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस को एक विशेष विषय (थीम) को ध्यान में रखकर मनाया जाता है और पूरे वर्ष उसी थीम के इर्दगिर्द सभी सरकारों को कोइतूर लोगों के अधिकारों के प्रति संवेदनशील और उत्तरदायी बनाने की अपील की जाती है।

इस तरह हर वर्ष संयुक्त राष्ट्र संघ कोइतूर लोगों के अधिकारों के लिए 9 अगस्त के दिन कोइतूर लोगों को एक अपना दिन मनाने का मौका देती है और इसमें कोइतूर समाज के विभिन्न पहलुओं को उजागर कर समाज को सुदृढ़ करने की वकालत करती है।

वर्ष 2023 के लिए अंतर्राष्ट्रीय दिवस का प्रमुख विषय (थीम) है- आत्म निर्णय के लिए परिवर्तन के प्रतिनिधि के रूप में कोइतूर युवा (Indigenous youth as agents of change for self-determination) रखा गया है।

इस वर्ष अन्तर्राष्ट्रीय दिवस का प्रमुख विषय संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुच्छेद 3 और 4 में दिए गये आत्म निर्णय (स्व निर्णय) के मौलिक अधिकार को लेकर है (यूनाइटेड नेशंस 2007)

अनुच्छेद 3 के अनुसार कोइतूर समुदाय को आत्मनिर्णय का अधिकार है। उस अधिकार के आधार पर वे स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक स्थिति निर्धारित करते हैं और स्वतंत्र रूप से अपने आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास का लक्ष्य रखते हैं।

अनुच्छेद 4 कहता है कि कोइतूर लोगों को अपने अधिकार का प्रयोग करने में आत्मनिर्णय का अधिकार है और उन्हें अपने आंतरिक और स्थानीय मामलों से संबंधित मामलों में स्वशासन, के साथ ही स्वायत्तता का अधिकार है।

इस वर्ष अनुच्छेद 3 और 4 में वर्णित इसी आत्म निर्णय को लेकर मुख्य विषय को चुना गया है और ज़ोर दिया गया है कि अगर युवाओं को आत्म निर्णय का मौक़ा दिया जाए तो वे एक परिवर्तन प्रतिनिधि (Change Agent) के रूप में बड़ी भूमिका निभा सकते हैं।

कोइतूर युवा कौन हैं?

आमतौर पर 15 से 25 वर्ष की उम्र के व्यक्ति को युवा कहा जाता है। युवा आमतौर पर बचपन और परिपक्वता के बीच के समय को संदर्भित करता है। नवीनता, आक्रोश, जीवन शक्ति, खेल और ऊर्जा सभी आमतौर पर युवाओं की अवधारणा से जुड़े हुए हैं। जब हम युवा होते हैं तब भी हम अपनी आत्म-बोध का निर्माण कर रहे होते हैं। एक युवा व्यक्ति की स्वयं की अवधारणा अक्सर उसके साथियों, जीवन शैली, लिंग, राजनीतिक व्यवस्था और संस्कृति सहित विभिन्न प्रभावों से बनती है। 

यदि किसी देश या समुदाय के युवा स्वयं जागरूक हैं और अपने कार्यों की जिम्मेदारी लेने में सक्षम हैं, तो वे अपने देश या समुदाय में बड़े बड़े परिवर्तन करने की शक्ति रखते हैं। किसी समाज या देश के युवा उसकी सबसे महत्वपूर्ण संपत्ति और ताकत का स्रोत होते हैं। जिस समाज में युवाओं को अधिक शक्ति दी जाती है उस समाज में सतत विकास और समृद्धि बहुत आसानी से देखी जा सकती है।

किसी भी राष्ट्र या समाज की संभावित जीवन शक्ति उसके युवाओं में खोजी जा सकती है। वे देश का गौरव होने के साथ-साथ उसके ऊर्जास्रोत भी हैं, जो असीमित मात्रा में ऊर्जा का भंडारण करने और असीमित मात्रा में ऊर्जा उत्पन्न करने में सक्षम हैं।

भारत में आज का कोइतूर युवा भटका हुआ है। न वह पूरी तरह से शारीरिक व् मानसिक रूप से विकसित हो पा रहा है और न ही उसे उचित शिक्षा मिल पा रही है। कोइतूर युवाओं का व्यवसाय, उद्यम और नौकरियों में स्थान न के बराबर हैं। ऐसे में कोइतूर युवाओं का शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण हो रहा है। कोइतूर युवा न तो अपना ख़याल रख पा रहे हैं और न ही अपने परिवार और समाज का जिससे पूरी की पूरी पीढ़ी बर्बादी की कगार पर आ खड़ी हुई है। यह एक बहुत भयावह स्थिति बन गई है।

संयुक्त राष्ट्र का प्रयास है कि कोइतूर युवाओं को आगे लाया जाए और शिक्षित और कुशल बनाकर उन्हें बड़ी और महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए तैयार किया जाए। इस तरह से कोइतूर युवा अपनी बात को अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर रख सकेंगे और अपने लोगों के बीच एकजुटता क़ायम कर सकेंगे।

कोइतूर युवाओं में देश और विदेश के कोइतूर लोगों के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है। जैसे-जैसे समाज में वे अपना स्थान पा रहे हैं वैसे वैसे अपने और अपने समाज के विकास और बेहतरी के लिए बेहतर निर्णय ले रहे हैं। इस वर्ष संयुक्त राष्ट्र ने कोइतूर समुदायों के इन्ही युवाओं पर अपना ध्यान केन्द्रित किया है और उन्हें आत्म निर्णय में एक महत्त्वपूर्ण परिवर्तन प्रतिनिधि (एजेंट) के रूप में चुना है। इस वर्ष तीन विशेष क्षेत्रों में आत्म निर्णय के लिए कोइतूर युवाओं को परिवर्तन प्रधिनिधि के रूप में सम्मलित किया गया है ( यूनाइटेड नेशंस, 2023)-

  1. जलवायु कार्रवाही और हरित संक्रमण
  2. न्याय के लिए लामबंद होना
  3. अंतरपीढ़ीगत संबंध

जलवायु कार्यवाही और हरित संक्रमण के क्षेत्र में कोइतूर युवाओं की भूमिका

पूरा विश्व इस बात को समझता है कि कोइतूर प्रकृति प्रेमी होते हैं। वे प्राकृतिक जीवन जीते हैं और प्रकृति को अपने परिवार का ही एक अंग समझते हैं। सच कहें तो प्रकृति ही उनके देवी-देवता और भगवान होते हैं। वे प्रकृति पूजक होते हैं और वे सपने में भी प्रकृति के विरुद्धु कोई कार्य नहीं करते हैं लेकिन आज के शहरीकरण और विकास की अंधी दौड़ में प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन किया जा रहा है और जल-जंगल-ज़मीन को प्रदूषित किया जा रहा है। जंगलों की अंधाधुंध कटाई हो रही है। नदियों पर बाँध बनाये जा रहे हैं। विकास और औद्योगिकीकरण के नाम पर कोइतूरों की ज़मीनों का अधिकरण करके उन्हें विस्थापित किया जा रहा है।

आज पूरी दुनिया प्रकृति के साथ किए गये खिलवाड़ के कारण पैदा हुई परिस्थियों जैसे बाढ़, जंगली आग, उच्च तापमान, समुद्रतल का बढ़ना, सूखा इत्यादि का सामना कर रही है। पूरी मानवता के लिए ख़तरा मुँह बायें खड़ा हुआ है। ऐसी स्थिति में पूरी दुनिया कोइतूर युवाओं की तरफ़ देख रही है। संयुक्त राष्ट्र संघ चाहता है कि कोइतूर युवाओं को प्रकृति संरक्षण जलवायु परिवर्तन और हरित संक्रमण के लिए तैयार किया जा सके और वे ख़ुद अपने आसपास के प्राकृतिक वातावरण के प्रति आत्म निर्णय लें और अपने समाज को भी इस कार्य में शामिल करें।

संयुक्त राष्ट्र महासभा के सतत विकास लक्ष्य -13 (Sustainable Developmental Goals-13) का उद्देश्य जलवायु परिवर्तन को सीमित करना और उसके अनुसार अनुकूलन स्थापित करना है। यह 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा स्थापित 17 सतत विकास लक्ष्यों में से एक है। इस लक्ष्य का आधिकारिक मिशन वक्तव्य ‘जलवायु परिवर्तन और इसके प्रभावों से निपटने के लिए तत्काल कार्रवाई करना’ है। संयुक्त राष्ट्र ने कोइतूर युवाओं को इस क्षेत्र में आत्मनिर्णय लेने में परिवर्तन प्रतिनिधि के रूप में शामिल करने का आह्वान किया है।

यानी कि सतत विकास लक्ष्य शिखर सम्मेलन में कोइतूर युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने की सोच संयुक्त राष्ट्र संघ की है। कोइतूर युवाओं को इसमें सम्मिलित होने का प्रयास करना चाहिए और अपनी सोच से कोइतूर लोगों के लिए जो भी एजेंडा संयुक्त राष्ट्र बना रहा है, उसमें अपना योगदान देना चाहिए। सही आत्म निर्णय लेकर जलवायु परिवर्तन में सक्रिय भूमिका निभाने और बहुपक्षीय मंचों पर समावेशी और डायवर्स विषयों पर कोइतूर युवाओं को भागीदारी सुनिश्चित करना चाहिए। जिससे जल जंगल और ज़मीन को संरक्षित किया जा सके जहाँ पूरा कोइतूर समाज आनंद और ख़ुशी से निवास कर सके।

आज सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि तेज़ी से बदल रहे परिवेश कोइतूर युवाओं के जीवन में बहुत सारे नकारात्मक बदलाव ला रहे हैं जो उनके और उनके परिवार और समाज दोनों के लिए हानिकारक साबित हो रहे हैं। उदाहरण के लिए आज की शिक्षा प्रणाली कोइतूरों के सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक जीवन के लिए उपयुक्त नहीं है क्योंकि आज की शिक्षा प्रणाली में कोइतूर ज्ञान, कौशल, कला, संस्कृति, भाषा इत्यादि को शामिल नहीं किया जाता है। नई संचार, प्रौद्योगिकी, मोबाइल आदि के दुरुपयोग ने कोइतूर जीवन को कई तरीकों से बहुत नुकसान पहुँचाया है। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और शोषण करने वाली कंपनियों के विस्तार ने कोइतूर लोगों के जीवन मूल्य और समाज को कमजोर कर दिया है।

यह सच है कि ज़्यादातर मामलों में कोइतूर युवा वैश्विक जलवायु परिवर्तन के आंदोलनों में कोई महत्वपूर्ण भूमिका नहीं निभा पा रहे हैं। इसलिए जलवायु परिवर्तन संबंधित मुद्दों में कोइतूर युवाओं की सोच को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए। कोइतूर युवाओं को जलवायु परिवर्तन और हरित संक्रमण जैसे महत्त्वपूर्ण पर्यावरणीय मुद्दों पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण स्थान दिया जाना चाहिए। 

न्याय के लिए लोगों को संगठित करने में कोइतूर युवाओं की भूमिका

 कोइतूर युवाओं के साथ होने वाले भेदभाव उनको बहुत प्रभावित करते हैं जिससे उनके आत्मसम्मान को ठेस पहुँचती है। रोज़मर्रा के जीवन में होने वाले भेदभाव से उनकी महान संस्कृति की अपमान होता है। तथाकथित मुख्यधारा के लोगों द्वारा उनकी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर का मज़ाक़ उड़ाया जाता है उनकी कोया पुनेमी जड़ों पर प्रहार किया जाता है और यहाँ तक की उनके अस्तिव और अस्मिता तक को नकारा जाता है (कंगाली, मोती रावण, 2008)। जिससे युवा कोइतूर अपनी संस्कृति, सभ्यता, भाषा, साहित्य और ज्ञान कौशल इत्यादि को कमतर आंकने लगता है और निराश होकर अपनी जड़ों से दूर जाने लगता है। इसके विपरीत आज भी हज़ारों युवा ऐसे भी हैं जो शहरों में पले बढ़े हैं फिर भी अपनी सांस्कृतिक धरोहर और अपने कोया पुनेमी जड़ों से जुड़े हुए हैं। वे शहर में रहकर भी अपने गाँव और खेत-खलिहानों, अपनी संस्कृति और उसके तौर तरीक़ों से जुड़े रहकर एक अच्छा जीवन जी रहे हैं।

कहीं कहीं पूरी कोइतूर युवाओं की पूरी पीढ़ियाँ अपने समुदायों से बाहर पली बढ़ी हैं लेकिन उन्होंने अपने परिवारों, कोइतूर लोगों के संगठनों या अन्य माध्यमों से अपनी मातृभूमि और अपने ग्राम्य क्षेत्रों से संबंध बनाया रखा है। शहरों में रह कर भी वे कोइतूर मुद्दों को उठाने वाले संगठनों और संस्थाओं से जुड़कर अपने लोगों के बेहतर जीवन के लिए प्रयास कर रहे हैं और अपनी सांस्कृतिक पहचान को पुनर्जीवित, संरक्षित और संवर्धित भी कर रहे हैं।

आज हज़ारों कोइतूर युवा स्थानीय, राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय कोइतूर संगठनों से जुड़कर अपने लोगों को जोड़ने और एकजुट बनाए रखने के लिए तरह तरह के कार्यक्रमों का आयोजन कर रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ चाहता है कि कोइतूर युवा अपनी अलग पहचान विकसित करें और अपने और अपने समाज का एक अलग विमर्श स्थापित करें जो आम लोगों द्वारा स्थापित नकारात्मक विमर्श को तोड़े और एक नए युग का सूत्रपात करे जहाँ कोइतूर लोगों को बेहतर न्याय, सम्मान, पहचान और अधिकार मिल सके।

आज यह देखा जा सकता है पढ़े-लिखे कोइतूर युवा आज अपने ख़ुद के संगठन का निर्माण कर रहे हैं, अपनी पत्र-पत्रिकाएँ निकाल रहे हैं, अपना वेबसाइट, ब्लॉग चला रहे हैं, अपने सोशल मीडिया हैंडल के द्वारा कोइतूर समाज के संवेदनशील और कठिन मुद्दों को दुनिया के सामने रख रहे हैं। वे सामाजिक गतिशीलता के माध्यम से सामाजिक परिवर्तन के लिए प्रेरक शक्ति बन गए हैं और अन्य युवाओं के बीच एकजुटता का निर्माण भी कर रहे हैं जिससे देश और विदेश में कोइतूर लोगों के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ रही है।

एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के बीच बेहतर संबंध बनाने और ज्ञान हस्तांतरण में कोइतूर युवाओं की भूमिका

कोयामूरी दीप यानी प्राचीन भारत सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से बहुत ही समृद्ध रहा है। प्राचीन समय से इसकी उन्नति और समृद्धि देखकर हज़ारों विदेशी इस देश की तरफ़ खिंचे चले आए। प्राचीन भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था जहाँ पर कृषि अपने उत्कर्ष पर थी। दूध-घी की नादिया बहती थीं जो बेहतर कृषि और पशुपालन से ही संभव रहा होगा।

हमारे कोइतूर पुरखों में अपार वैज्ञानिक कला-कौशल और ज्ञान था जिससे उन्होंने जीवन को सुगम बनाने के लिए हज़ारों आवश्यक अविष्कार किए। इन आविष्कारों में आम जीवन की सभी ज़रूरतों को पूरा करने की सामर्थ्य थी लेकिन पीढ़ी दर पीढ़ी कोइतूर लोग दूसरी संस्कृतियों के संपर्क में आते गये और अपनी ज्ञान और कौशल, तकनीक को खोते गये और बाहरी लोग इन्हीं तकनीकों को परिष्कृत करके बेहतर चीज़ें बनाकर उन्हें अपना बना लिया।  आज भी पुरानी पीढ़ी के पास परिवार कल्याण, सामाजिक व्यवस्था, राजनीति, न्याय, खेतीबाड़ी, पशुपालन, स्वास्थ्य, जंगल और प्रकृति संबंधी हज़ारों विषयों पर असीमित ज्ञान का भंडार है। अगर इस महत्त्वपूर्ण कोया पुनेमी कला, संस्कृति, साहित्य, सृजन ज्ञान को पुरानी पीढ़ी से हस्तांतरित करके नई पीढ़ी में संजोया नहीं गया तो जल्दी ही ये कोइतूर ज्ञान भंडार हमेशा हमेशा के लिए ग़ायब हो जाएगा

कोइतूर बुजुर्गों के पास कोइतूर लोगों की संस्कृतियों, मूल्यों और प्रकृति ज्ञान की कुंजी है।  इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ ने कोइतूर युवाओं से अपनी पूर्वजों और पुरानी पीढ़ी के लोगों से अच्छे और घनिष्ठ संबंध बनाने पर ज़ोर दिया है जिससे वे अपने बाप-दादा, नानी-दादी से अपने कोइतूरियन ज्ञान विज्ञान को सीख सकें और अपनी अगली पीढ़ी में हस्तांतरित कर सकें।

बेहतर अंतर पीढ़ी संबंधों से कोइतूर युवाओं को भूमि, भाषा, पारंपरिक, आजीविका समारोह, कला शिल्प इत्यादि के माध्यम से व्यक्तिगत और सामूहिक पहचान भी मिलती है। पारिवारिक संबंधों जैसे शादी-विवाह, भूमि संबंधी जानकारी और पारिवारिक ज्ञान कौशल द्वारा कोइतूर युवाओं की पहचान एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तांतरित होती रहती है।

आज युवाओं और बुजुर्गों के बीच पीढ़ी अंतर के कारण काफ़ी बड़ी खाई देखी जा रही है जो कोइतूर ज्ञान और कौशल के हस्तांतरण में बहुत बड़ी बाधा है। इसलिए संयुक्त राष्ट्र संघ चाहता है कि अंतर पीढ़ी संवाद जारी रहे जिससे युवा अपने परिवार में सदियों से चल रही प्राचीन व्यवस्था को अपना सके और अगली पीढ़ी में हस्तांतरित करके उनमें एक निरंतरता बनाए रख सके।

इस अंतर्राष्ट्रीय दिवस पर उपरोक विषयों पर युवाओं को आत्मनिर्णय लेने के लिये प्रेरित करके बहुत सारी समस्याओं को कम किया जा सकता है। जबकि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संगठन कोइतूर हितों के लिए ज़्यादा संवेदनशील और चिंतित हैं वहीं भारत में इन मुद्दों के प्रति बहुत बड़ी उदासीनता दिखती है। राज्य और सरकारें संयुक्त राष्ट्र संघ के घोषणा पत्र और प्रावधानों पर ध्यान नहीं देती हैं। कदम कदम पर कोइतूर समाज को अपमानित और प्रताणित किया जाता है। उनके हितों की रक्षा की अनदेखी की जाती है। आए दिन कोइतूर समुदाय के साथ शारीरिक, मानसिक और आर्थिक शोषण की घटनाएँ सामने आती रहती हैं लेकिन थोड़ा बहुत हो-हल्ला करके फिर सब वैसे का वैसे चलने लगता है।

आज की ज़रूरत को देखते हुए कोइतूर युवाओं को आगे आना होगा और निर्णय लेने की कला को विकसित करना होगा। सही समय पर सही आत्म निर्णय से ही वे अपना, अपने परिवार और अपने समाज के हितों और अधिकारों की रक्षा कर सकते हैं। जब तक कोइतूर युवा सामने नहीं आएँगे तक तक उपरोक्त भूमिकाओं के सार्थक होने की कल्पना करना बेमानी होगा।

संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा कोइतूर हितों की रक्षा और उनके प्रति संवेदनशीलता के लिए हम उन्हें बार बार धन्यवाद देते हैं और इस अंतर्राष्ट्रीय कोइतूर दिवस पर आप सभी लोगों को हार्दिक बधाइयाँ और शुभकानाए देते हुए सेवा जोहार करते हैं।

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संदर्भ:

1. बाली, सूर्या : जाने भारत का प्राचीन पर्व पूनल सावरी - युवा क़ाफ़िला(2020) : https://www.yuvakafila.page/2020/03/jaane-praacheen-bhaarat-ka-pra-lj64html
2.      बाली, सूर्या : कोया पुनेमी संस्कृति में प्रसन्नता, समृद्धि और आनंद के प्रतीक का त्यौहार दियरी या दियारी- गोंडवाना समय (नवम्बर 15, 2020) https://www.gondwanasamay.com/2020/11/blog-post_0.html
3.      बाली, सूर्या: हिन्दुओं का नहीं, कोइतूर समाज के लोगों का पर्व है पोला,- फ़ॉरवर्ड प्रेस (2019)
https://www.forwardpress.in/2019/08/pola-festival-gond-hindi/
4.      यूनाइटेड नेशंस (2023) इंटरनेशनल डे ऑफ़ द वर्ल्ड्स इंडिजेनस पीपल्स : वी नीड इंडिजेनस कमुनीटीज़ फॉर ए बेटर वर्ल्ड : https://www.un.org/en/observances/indigenous-day/background
5. यूनाइटेड नेशंस (2023): Indigenous Youth as Agents of Change for Self-determination. https://social.desa.un.org/issues/indigenous-peoples/events/international-day-of-the-worlds-indigenous-peoples-2023?_gl=1*52k8qj*_ga*MTE0MjczMTAxMi4xNjg5NDI2ODIz*_ga_TK9BQL5X7Z*MTY5MTE2OTI2OC4yLjEuMTY5MTE2OTI5NS4wLjAuMA.
6. इंटरनेशनल लेबर ऑर्गेनाइज़ेशन (आईएलओ) हू आर इंडिजेनस एंड ट्राइबल पीपल? https://www.ilo.org/global/topics/indigenous-tribal/WCMS_503321/lang--en/index.htm
7. बाली, सूर्या (2018) आदिवासी नहीं अनुसूचित जनजाति हैं हम । फ़ारवर्ड प्रेस, नई दिल्ली https://www.forwardpress.in/2018/10/adivasi-nahi-anusuchit-janjati-hain-ham/
8. यूनाइटेड नेशन (2021) चैलेंजेज़ एंड ऑपोर्ट्यूनिटीज़ फॉर इंडीजेनस पीपल्स सस्टेनेबिलिटी: https://www.un.org/development/desa/dspd/2021/04/indigenous-peoples-sustainability/
9. यूनाइटेड नेशंस (2007)- यूनाइटेड नेशंस डिक्लेरेशंस ऑन द राइट्स ऑफ़ इंडिजेनस पीपल्स (61/295. United Nations Declaration on the Rights of Indigenous Peoples) https://www.un.org/development/desa/indigenouspeoples/wp-content/uploads/sites/19/2018/11/UNDRIP_E_web.pdf
10. जोठे, संजय (फ़रवरी 2, 2020) जानें, कौन थे डॉ. मोतीरावण कंगाली, जिन्होंने दुनिया को बताया कोया पुनेम का राज- फ़ॉरवर्ड प्रेस ; https://www.forwardpress.in/2020/02/birth-anniversary-motiravan-kangali-hindi/
11. राउंड टेबल इंडिया (2021) भारत में “विश्व के इंडीजेनस लोगों के अंतर्राष्ट्रीय दिवस’ को आयोजित करने और मनाने के सही मायने। https://hindi.roundtableindia.co.in/?p=10348
12. रोनाल्ड एम. बर्नड्ट: ऑस्ट्रेलियाई एबोरिजिनल पीपल
https://www.britannica.com/topic/Australian-Aboriginal
13. हरोड़े, नीतेश: क्या आप जानते है कि रेड इंडियन कौन थे? ज्ञान ग्रंथ डॉट काम (17 मई, 2023) https://www.gyaangranth.com/red-indian-kaun-the/
14. जैच पैरट, डेविड गैलेंट, मिशेल फिलिस, जोसेफ डिपल: द कनैडियन इनसाइक्लोपीडिया (अप्रैल 2023) https://www.thecanadianencyclopedia.ca/en/article/first-nations
15. चैटरटन डी डी, आइर (1916). द स्टोरी ऑफ द गोंडवाना : सर आइजैक पिटमैन एंड संस, लिमिटेड, 1 आमीन कॉर्नर, ई.जी.,और बाथ, न्यूयॉर्क और मेलबर्न से मुद्रित और प्रकाशित , पृष्ठ सं 166
16. कंगाली, मोतीरावण (2011) : पारी कुपार लिंगो कोयापुनेम दर्शन, चतुर्थ संस्करण, ४८, उज्ज्वल सोसाइटी , जयतला रोड नागपुर से प्रकाशित ,पृष्ठ सं 254-255.
17. मिश्र, सुरेश. (2008). गढ़ा का गोंड राज्य (प्रथम संस्करण, Vol. 1). राजकमल प्रकाशन प्रा लि, नई दिल्ली.
18. टीएफ़आई पोस्ट, 2022: संयुक्त राष्ट्र दिवस कब और क्यों मनाया जाता है? https://tfipost.in/2022/01/sanyukt-rashtra-divas-kab-manaya-jata-hai/
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प्रोफ़ेसर (डॉ) सूर्या बाली”सूरज धुर्वे” अंतराष्ट्रीय कोया पुनेमी चिंतनकार और कोइतूर विचारक हैं. पेशे से वे AIIMS (भोपाल) में प्रोफेसर हैं. उनसे drsuryabali@gmail.com ईमेल पर संपर्क किया जा सकता है.

 

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