अब चैनल आई आई टी में हवा बाँध रहे हैं

Tejendra

तेजेंद्र प्रताप गौतम (Tejendra Partap Gautam) पिछले कुछ दिनों से जिस तरह से कश्मीर में सीमा के आर-पार गर्मी का माहौल बन गया है। उससे यह प्रतीत होता है कि संपूर्ण राष्ट्र में एक अजीब से राष्ट्रवाद की गर्म लहर फैल रही है। मैं भारतीय हूँ इसका प्रमाण अब कभी भी कहीं भी, किसी से भी, मांगा जा सकता है, […]

‘कबाली’ : दलित दखल के दम से बदलता परदा

  अरविंद शेष   फिल्म में ‘कबाली’ का डायलॉग है- “हमारे पूर्वज सदियों से गुलामी करते आए हैं, लेकिन मैं हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ हूं। आंखों में आंखें डाल कर बात करना, सूट-बूट पहनना, टांग के ऊपर टांग रख कर बैठना तुमको खटकता है, तो मैं ये सब जरूर करूंगा। मेरा आगे बढ़ना ही मसला है, तो मैं […]

अपना मीडिया : वक्त की जरूरत

दिनेश अमिनमन्तु  [यह भाषण “मीडिया में दलित प्रोफेशनल की सहभागिता”, दिनेश अमिनमन्तु द्वारा कन्नड़ में दिया गया था। जो कर्नाटक SC/ST एडिटर एसोसिएशन द्वारा बाबासाहेब की १२५ जयंती के अवसर पे हुए 18th जुलाई 2016 के कार्यक्रम का हैं. ]   अगर मुझसे कोई भारतीय मीडिया में मेरे रोल मॉडल के बारे में पूछे तो मेरा जवाब डॉ बाबा साहेब […]

दलितों के लिए मायावती और बसपा के मायने – भाग 2

भानु प्रताप सिंह  यहाँ से जारी   सवाल यह है कि आखिर एक आम दलित मायावती के बारे में क्या राय रखता है, वह मायावती और बसपा को किस रूप में देखता है? उनके लिए मायावती और बसपा की क्या जगह है, क्या मायने हैं? क्या मायावती सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं? क्या बसपा सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे हर […]

मायावती और मीडिया का बाज़ारवाद – भाग 1

भानु प्रताप सिंह  मैं एक मार्केटिंग प्रोफेशनल हूँ. मेरे लिए ‘गूगल एडवर्ड’ एक बहुत ही जरूरी टूल है, यह समझने के लिए कि (क) इंटरनेट मार्केट में क्या ट्रेंड है?  (ख) कम्पनियाँ अपना पैसा एडवरटाइजिंग में कहाँ पर लगा रही हैं (ग) इंटरनेट प्रेमियों के लिए कौन से विषय महत्वपूर्ण हैं? यानि वे सर्च इंजिन्स पर किस विषय के बारे […]

चुनावी दौर और आयाराम-गयाराम

नेत्रपाल, जैसे ही चुनाव का समय आता है और चुनावी हलचल तेज होने लगती है वैसे ही नेता और कार्यकर्ता पार्टियों की अदला-बदली शुरू कर देते हैं. भारतीय चुनावों का यह एक ख़ास पहलू है. हालाँकि अभी उत्तर प्रदेश के चुनावोँ में लगभग दस महीने बाकी हैं, लेकिन सभी पार्टियों ने जोर-शोर से चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस […]

काली परतों वाली बहुत अच्छी सड़कें और खाक काली बस्ती…

  अरविंद शेष (Arvind Shesh) बिहार की सड़कों के बारे में कुछ फैशनेबुल जुमले जब दिमाग में बैठे हों और आप किसी दूसरे राज्य की सड़कों से गुजर रहे हों तो यह बात एक ‘उम्मीद’ की तरह आसपास मंडराती रहती है कि कम से कम देहाती इलाकों में बिहार जैसी सड़कें जरूर देखने को मिल जाएंगी। लेकिन नौ मई की […]

राउंड टेबल इण्डिया के बारे में

‘अगर अछूत और दलित आवाज़ न उठाएँ, तो हिन्दुओं को उनकी हालत से कोई फर्क नहीं पड़ता है और वे पूरी तरह से उदासीन बने रहते हैं. चाहे दलित हजारों लाखों की संख्या में हों, वो कोई जहमत नहीं उठाते. लेकिन अगर अछूत खड़े हों और अस्तित्व के लिए लड़ें, तो वे उनकी पहचान नकारने के लिये तैयार बैठे रहते […]