डॉ रत्नेश कातुलकर (Dr. Ratnesh Katulkar) दुनिया के मज़दूर एक हो! कार्ल मार्क्स का यह कितना अच्छा संदेश है. यदि वास्तव में ऐसा हो पाता तब किसी एक देश-विशेष तो क्या दुनिया के किसी भी कोने में कोई भी व्यक्ति मानव अधिकार से वंचित नहीं रह पाता. लेकिन मज़दूरया वंचित भला एक कैसे हो सकते हैं! इनके बीच जाति, उपजाति, धर्म, सम्प्रदाय, क्षेत्र, […]
एक समाज जो बिस्तर पर स्वीकार्य किन्तु तथाकथित सभ्य समाज में नहीं
क्रांति खोड़े (Kranti Khode) भारतीय सामाजिक व्यवस्था जो कि चार्तुवर्ण पर आधारित है. यह मनुवादी चातुर्वण व्यवस्था कहती है कि ब्राम्हण, क्षत्रिय, वैष्य, शुद्र जो जिस जाति में पैदा हुआ वह उस जाति का जाति आधारित काम करेगा. उनका काम ऊपर के तीनों समाजों की सेवा करना है. यह व्यवस्था आज भी मजबूती से अपने पैर जमाए हुए है. शुद्र […]