विद्यासागर (Vidyasagar) मैं तुम्हारा कवि नहीं हूँमैं कवि हूँ अपने चमारटोली काजिसकी दुर्गन्धता में तुम्हें नरक का आभास होता हैलेकिन मुझे उसमे समानता का स्वर्ग प्रतीत होता है। मैं कवि हूँ उन लाखों लोहारों काजिनकी निहाई पर बरसते हथौड़ों की आवाज़ मुझे तुम्हारे मंदिरों में चीखते घंटों से ज्यादा मधुर लगती हैं। मैं कवि हूँ उन लाखों डोमों काजिनकी छाया […]
कवि कृष्णचंद्र रोहणा की रचनाओं में सामाजिक न्याय एवं जाति विमर्श
डॉ. दीपक मेवाती (Dr. Deepak Mewati) सामाजिक न्याय सभी मनुष्यों को समान मानने पर आधारित है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति के साथ सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, धार्मिक आधार पर किसी भी प्रकार का कोई भेदभाव नहीं होना चाहिए। मानव के विकास में किसी भी प्रकार की बाधा उत्पन्न नहीं की जानी चाहिए। सामाजिक न्याय की अवधारणा का अर्थ भारतीय समाज […]
मध्यकालीन अशराफ़ इतिहास और पसमांदा सवाल
लेखक : अब्दुल्लाह मंसूर (Abdullah Mansoor) हम यह जानते हैं कि पसमांदा मुसलमानों का न कोई राज्य रहा है और न कोई राजा। क़ौम के बनाए ढाँचे में पसमांदा मुसलमान तब तक फिट नहीं हुए जब तक लोकतंत्र में प्रत्येक वोट का महत्व नहीं बढ़ा। विदेशी नस्ल के मुस्लिम सुल्तानों और बादशाहों ने भारतीय पसमांदा समाज को कभी अपने बराबर […]