अपना मीडिया : वक्त की जरूरत

दिनेश अमिनमन्तु  [यह भाषण “मीडिया में दलित प्रोफेशनल की सहभागिता”, दिनेश अमिनमन्तु द्वारा कन्नड़ में दिया गया था। जो कर्नाटक SC/ST एडिटर एसोसिएशन द्वारा बाबासाहेब की १२५ जयंती के अवसर पे हुए 18th जुलाई 2016 के कार्यक्रम का हैं. ]   अगर मुझसे कोई भारतीय मीडिया में मेरे रोल मॉडल के बारे में पूछे तो मेरा जवाब डॉ बाबा साहेब […]

सामाजिक आंदोलन व स्त्री शिक्षा: डॉ अम्बेडकर और उनकी दृष्टि

रितेश सिंह तोमर मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्यांकन स्त्रियों की उन्नति के आधार पर करता हूँ | स्त्री को पुरुष का दास नहीं बल्कि उसका साझा सहयोगी होना चाहिए | उसे घरेलू कार्यों की ही तरह सामाजिक कार्यों में भी पुरुष के साथ संल्गन रहना चाइये”| आधुनिक भारत के संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष व सम्पूर्ण […]

दलितों के लिए मायावती और बसपा के मायने – भाग 2

भानु प्रताप सिंह  यहाँ से जारी   सवाल यह है कि आखिर एक आम दलित मायावती के बारे में क्या राय रखता है, वह मायावती और बसपा को किस रूप में देखता है? उनके लिए मायावती और बसपा की क्या जगह है, क्या मायने हैं? क्या मायावती सिर्फ एक राजनीतिज्ञ हैं? क्या बसपा सिर्फ एक राजनीतिक पार्टी है, जिसे हर […]

मायावती और मीडिया का बाज़ारवाद – भाग 1

भानु प्रताप सिंह  मैं एक मार्केटिंग प्रोफेशनल हूँ. मेरे लिए ‘गूगल एडवर्ड’ एक बहुत ही जरूरी टूल है, यह समझने के लिए कि (क) इंटरनेट मार्केट में क्या ट्रेंड है?  (ख) कम्पनियाँ अपना पैसा एडवरटाइजिंग में कहाँ पर लगा रही हैं (ग) इंटरनेट प्रेमियों के लिए कौन से विषय महत्वपूर्ण हैं? यानि वे सर्च इंजिन्स पर किस विषय के बारे […]

शिक्षक दिवस के नाम पर !

 रत्नेश कातुलकर वर्णनाम ब्राह्मणों गुरु! यानि गुरु केवल ब्राह्मण वर्ण से ही हो सकता है. आदिकाल से यह भारत का सनातन नियम रहा है. हालांकि ऐसा भी नहीं की इस नियम का पालन देश में अक्षरशः होते रहा हो, स्वयं हिन्दू धर्म ग्रंथों में राक्षसों के गैर-ब्राह्मण गुरु शुक्राचार्य का वर्णन मिलता है और भारत के एक समय जो विश्व […]

सहिष्णुता और असहिष्णुता

देवनूरु महादेव सहिष्णुता-असहिष्णुता आज के “मुझे मत छूओ” शब्द बन गये हैं। शुद्धता को अछूतपन से जोड़ कर भारत आधे जीवित और आधे मृत लोगों का देश बनकर रह गया है। अतः कम बोलने में ही सुरक्षा है। मैं स्वयं भी समझने का प्रयास कर रहा हूँ। आज के प्रचलित असहिष्णु आचरण को समझे बिना, सहिष्णुता को समझा नहीं जा […]

ओबीसी आरक्षण और शिक्षा क्षेत्र में बहुजन भागीदारी

निखिल आनंद   2014 में केन्द्र में बीजेपी की सरकार आने के बाद भारत में सवर्णवादी ताकतें एकबार फिर पुरजोर तरीके से मुखर व आक्रमक हैं। जाहिर है कि समाज के दलित- आदिवासी- पिछड़ा- पसमांदा जमात के खिलाफ तमाम तरह के हथकंडे रचे जा रहे हैं ताकि इनके प्रतिनिधित्व एवं भागीदारी के सवाल को कुंद व खारिज किया जा सके। […]

महाड़ चवदार सत्याग्रह और आंबेडकर की 3 क्रांतिकारी सलाहें: वर्तमान समय और इनकी प्रासंगिकता

संजय जोठे   ऐसे समय में जब हम बाबा साहब की 125 जयंती मना रहें हैं| तब उनकी चमकती हुई विरासत के कई पहलुओं को फिर से समझने की विकट आवश्यकता आन पडी है| क्रांतियों और परिवर्तन की नई शब्दावलियों में पुराने अर्थों के साथ पूरा न्याय नहीं किया जा रहा है| बहुत बार अच्छे उद्देश्यों से चलाये जा रहे […]

चुनावी दौर और आयाराम-गयाराम

नेत्रपाल, जैसे ही चुनाव का समय आता है और चुनावी हलचल तेज होने लगती है वैसे ही नेता और कार्यकर्ता पार्टियों की अदला-बदली शुरू कर देते हैं. भारतीय चुनावों का यह एक ख़ास पहलू है. हालाँकि अभी उत्तर प्रदेश के चुनावोँ में लगभग दस महीने बाकी हैं, लेकिन सभी पार्टियों ने जोर-शोर से चुनावी तैयारियां शुरू कर दी हैं. इस […]

कबीरपंथ कायम, कबीर गायब

मुसाफिर बैठा   करीब छह सौ साल पहले कबीर धरती पर आकर चले गए, उनके विचारों का प्रभाव जबरदस्त हुआ. सामंती समाज था हमारा तब. हिन्दू धर्म में परम्परा से चलते आ रहे जातीय भेदों, अन्धविश्वासों और बाह्याचारों की जकड़न ने सामान्यजनों का जीना दुश्वार कर रखा था, साथ ही, इसका प्रभाव इतना घना कि बाहर से आई मुस्लिम शासक […]