लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) आतंक से आतंकवाद का सफर लम्बा है. आदिकाल से मनुष्य आतंकित होता आ रहा है और आतंकित करता आ रहा है. मनुष्यों ने अपनी सत्ता को लेकर जो भी संस्था बनाई उसमे अक्सर आतंक को एक उपकरण के रूप में प्रयोग किया. धर्म में ईश्वर का आतंक, परिवार में पितृसत्ता का आतंक, राज्य में सर्वभौमिक्ता का आतंक […]
मेरे लोगों का अधिकार ही मेरा स्वार्थ है: काला
डॉ. अशोक नामदेव पळवेकर मानव समाज यह अनेक स्थितियों से विकसित होता आया है. विकास की इन विभिन्न अवस्थाओं में मानव के ‘भू-स्वामित्व’ का इतिहास बहुत महत्वपूर्ण मायने रखता है. फिलहाल, पा. रंजित निर्देशित ‘काला’ फिल्म यह अनेकों के चर्चा का विषय है. फिल्म के शुरुवात में परदे पर जो विभिन्न पेंटिंग्स दिखाई देती हैं वे सभी मानव की […]
ओशो रजनीश पर बनी फिल्म व् बहुजनों के हित
संजय जोठे (Sanjay Jothe) ओशो रजनीश पर जो नयी डॉक्युमेंट्री आई है उसे गौर से देखिये. शीला एक नादान किशोरी की तरह रजनीश से मिलती है. शीला के पिता रजनीश से प्रभावित हैं. शीला को उनके पिता कहते हैं कि ये व्यक्ति अगर लंबा जी सका तो ये दुसरा बुद्ध साबित होगा. हर किशोरी लड़की की तरह शीला भी […]
ब्लैक पैंथर – समीक्षा
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) आमतौर से अफ्रीका के लोगो को गरीब-मज़लूम, बर्बर , असभ्य दिखाया जाता है. इस फ़िल्म ने कल्पना में ही सही पर इस मान्यता को तोड़ा है. ये फ़िल्म एक बड़े डिस्कोर्स पे बनी है कि “ज़ुल्म और ज़ालिम के खिलाफ आप की तटस्ता कितनी उचित है?“ इस फ़िल्म की कहानी अफ्रीका के पांच कबीलों की कहानी […]
पी.के. कभी नहीं कह पायेगा ‘तोहार बॉडी पर जाति का ठप्पा किधर है’
लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) प्रगति के समर्थक प्रत्येक व्यक्ति के लिए यह अनिवार्य है कि वह पुराने विश्वास से संबंधित हर बात की आलोचना करे, उसमें अविश्वास करे और उसे चुनौती दे. प्रचलित विश्वास की एक-एक बात के हर कोने-अंतरे की विवेकपूर्ण जाँच-पड़ताल उसे करनी होगी. यदि कोई विवेकपूर्ण ढंग से पर्याप्त सोच-विचार के बाद किसी सिद्धांत या दर्शन में विश्वास […]
‘कबाली’ : दलित दखल के दम से बदलता परदा
अरविंद शेष फिल्म में ‘कबाली’ का डायलॉग है- “हमारे पूर्वज सदियों से गुलामी करते आए हैं, लेकिन मैं हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ हूं। आंखों में आंखें डाल कर बात करना, सूट-बूट पहनना, टांग के ऊपर टांग रख कर बैठना तुमको खटकता है, तो मैं ये सब जरूर करूंगा। मेरा आगे बढ़ना ही मसला है, तो मैं […]
कबाली – दलित पृष्ठभूमि पर बनी एक बेहतरीन फिल्म
राजेश राजमणि पी ए रंजीत की फिल्म होने के नाते, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस फिल्म के बहुत सारे सामाजिक संवाद अम्बेडकरवादी विचारधारा से लिए गए हैं. फ़िल्म का नाम और इसके नायक का नाम ‘कबाली’ रखना – तमिल सिनेमा में नाम अक्सर ऐसा अनोखा पहलू होता है जिससे विरोधियों पर पदाघात किया जा सके, कबाली के सूट […]
सैराट: मराठी सिनेमा की नई लहर
दिव्येश मुरबिया नागराज मंजुले, उनकी नवीनतम फिल्म सैराट के लिए मराठी फिल्म निर्देशक के तौर पर काफी मशहूर हुए हैं लेकिन उनको इस फिल्म से कहीं अधिक श्रेय जाता है. उन्होंने एक लघु फिल्म पित्सुल्या के साथ अपना कैरियर शुरू किया था जिसने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवाया. उन्होंने फैंड्री के साथ मराठी फिल्म उद्योग में शुरूआत किया था, जो व्यापक […]
“बुद्धा इन ए ट्राफिक जाम” : सियासी परदे में किसका एजेंडा…!
देश के ‘सबसे बड़े दुश्मनों’ और ‘सबसे बड़ी समस्याओं’ से लड़ने के तरीके और उनसे पार पाने के ‘रास्ते’ अब वॉलीवुड के फिल्मकारों ने बताना शुरू कर दिया है! हालांकि सिनेमा के परदे पर ‘उपदेश’ तो पहले भी होते थे, लेकिन उन्हें ‘फिल्मी’ कह और मान कर माफ कर दिया जाता था! लेकिन अब फिल्में बाकायदा राजनीतिक एजेंडे के […]