विद्यासागर (Vidyasagar) मैं दलित हूँ और मुझे गर्व है मेरे दलित होने पर क्योंकि मैं पला हूँ कुम्हारों के चाकों पर,मैं पला हूँ श्मशानों के जलते राखों पर,मैं पला हूँ मुसहरों के सूखे कटे पड़े शाखों पर।मैं दलित हूँ क्योंकिमैंने देखा है अपनी माँ को धुप से तपते हुए खलिहानों में,मैंने देखा है अपने पिता को मोक्ष दिलवाते श्मशानों […]
मराठी और हिंदी दलित आत्मकथाओं में स्त्री चिंतन
डी. अरुणा (D. Aruna) आत्मकथा में आत्म का सम्बन्ध लिखने वाले से है और कथा का सम्बन्ध उसके समय और परिवेश से है. कोई लेखक जब अपने विगत जीवन को समूचे परिवेश के साथ शब्दों में बाँधता है तो उसे हम आत्मकथा कहते हैं. हिन्दी में अन्य विधाओं की तुलना में आत्मकथा कम ही लिखी गई है परन्तु पिछले […]
भोजपुरी भाषा-समाज और महिलाएं: लोकगीतों के अजायबघर के बाहर
आशा सिंह (Asha Singh) यह पर्चा इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, नई दिल्ली में 8-9 दिसंबर 2017 को CWDS द्वारा आयोजित एक वर्कशॉप में पढ़ा गया था. मेरे वक्तव्य का विषय है, ‘भोजपुरी भाषा–समाज और महिलाएं: लोकगीतों के अजायबघर के बाहर’. सबसे पहले ये चर्चा करने की ज़रुरत है कि क्या ज़रुरत आ पड़ी कि आज हम हिंदी में स्त्री–चिन्तन करने के […]
डाॅ. अम्बेडकर का जीवन दर्शन ही मेरे जीवन का प्रेरणा स्रोत- कैलाश वानखेडे
डॉ. रत्नेश कातुलकर कैलाश वानखेड़े जी अपने प्रथम कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ से हिंदी साहित्य जगत में अपनी विशेष पहचान के रूप में उभरे हैं. उनकी कहानियों की ज़मीन व्यापक बहुजन आन्दोलन है. कहानियों के पात्र गाढ़ी स्याही से हस्ताक्षर करते हैं. कई जगहों पर उनकी कहानियों को लेकर कार्यक्रम रखे गए. कहानियों का पाठ हुआ. उन्हीं की एक कहानी ‘जस्ट […]
कैलाश वानखेड़े की बहुआयामी कथा ‘जस्ट डांस’ को सम्मान
कथाकार कैलाश वानखेड़े हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी हर नई कहानी के साथ गाढ़े होते हस्ताक्षर हैं. उनके कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ ने अपने विषय -सामग्री, दृष्टिकोण और लेखन-विधा के चलते सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था. गए 28 अगस्त को उन्हें उनकी नई कहानी ‘जस्ट डांस’ के लिए ‘राजेंद्र यादव ‘हंस’ कथा सम्मान 2017′ से सम्मानित किया […]
‘बहुजन साहित्य’ की अवधारणा के औचित्य की एक पड़ताल
डॉ मुसाफ़िर बैठा ओबीसी साहित्य और बहुजन साहित्य की धारणा को हिंदी साहित्य के धरातल पर जमाने का प्रयास बिहार के कुछ लोग और उनका मंच बनी ‘फॉरवर्ड प्रेस’ पत्रिका पिछले तीन-चार वर्षों से (अब सिर्फ ऑनलाइन) करती रही है। दरअसल, यह हिंदी में दलित साहित्य की सफलता एवं स्वीकृति से प्रभावित होकर पिछड़ी जातियों द्वारा की जा रही कवायद […]
अब आगे ऐसा करना
अंकित गौतम ये लौ हैकई तूफ़ानों से लड़ करबचाया है खुद को कई आंधियों सेब्राह्मणवाद की तेज़ाबी बारिश सेउसके आग बरसाते सूरज सेअंधेरी तूफानी रातों सेइसे बुझने न देनाइसे अपना खून-पसीना देनापर जलाए रखना..।
रामविलास शर्मा की लेखनी में डॉ आंबेडकर: एक आलोचनात्मक समीक्षा
हिन्दी साहित्य-जगत के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ रामविलास शर्मा अपनी प्रग्तीशीलता और मार्कस्वाद के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। इन्होने कमजोर तबको के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने की भरपूर कोशिश भी की है किन्तु इनकी लेखनी पर नज़र डालने पर हमे शर्मा जी की असलियत पता चलती है। इन्होने मार्क्स्वाद को चोला ओढ़कर बड़े शातिर तरीके से दक्षिणपंथी […]
शुक्रिया बाबा साहेब
Gurinder Azad गुरिंदर आज़ाद शुक्रिया बाबा साहेब !आपके चलतेहमें किसी से कहना नहीं पड़ताकि हम भी इंसान हैं ! उनके अहं को जो भी हो गवारालेकिन अब तस्दीक हो चुका हैकि बराबरी थाली में परोस कर नहीं मिलतीआबरू की धारा किसी वेद से नहीं निकलतीबड़ा बेतुका हैकल्पना करके सोनासुबह अलग सा कोई नज़ारा होगाया धीरे धीरे सब सही हो जायेगाअपनेआप […]