अरविंद शेष फिल्म में ‘कबाली’ का डायलॉग है- “हमारे पूर्वज सदियों से गुलामी करते आए हैं, लेकिन मैं हुकूमत करने के लिए पैदा हुआ हूं। आंखों में आंखें डाल कर बात करना, सूट-बूट पहनना, टांग के ऊपर टांग रख कर बैठना तुमको खटकता है, तो मैं ये सब जरूर करूंगा। मेरा आगे बढ़ना ही मसला है, तो मैं […]
‘बहुजन साहित्य’ की अवधारणा के औचित्य की एक पड़ताल
डॉ मुसाफ़िर बैठा ओबीसी साहित्य और बहुजन साहित्य की धारणा को हिंदी साहित्य के धरातल पर जमाने का प्रयास बिहार के कुछ लोग और उनका मंच बनी ‘फॉरवर्ड प्रेस’ पत्रिका पिछले तीन-चार वर्षों से (अब सिर्फ ऑनलाइन) करती रही है। दरअसल, यह हिंदी में दलित साहित्य की सफलता एवं स्वीकृति से प्रभावित होकर पिछड़ी जातियों द्वारा की जा रही कवायद […]
सामाजिक आंदोलन व स्त्री शिक्षा: डॉ अम्बेडकर और उनकी दृष्टि
रितेश सिंह तोमर मैं समुदाय अथवा समाज की उन्नति का मूल्यांकन स्त्रियों की उन्नति के आधार पर करता हूँ | स्त्री को पुरुष का दास नहीं बल्कि उसका साझा सहयोगी होना चाहिए | उसे घरेलू कार्यों की ही तरह सामाजिक कार्यों में भी पुरुष के साथ संल्गन रहना चाइये”| आधुनिक भारत के संविधान की प्रारूप समिति के अध्यक्ष व सम्पूर्ण […]
कबाली – दलित पृष्ठभूमि पर बनी एक बेहतरीन फिल्म
राजेश राजमणि पी ए रंजीत की फिल्म होने के नाते, यह आश्चर्य की बात नहीं है कि इस फिल्म के बहुत सारे सामाजिक संवाद अम्बेडकरवादी विचारधारा से लिए गए हैं. फ़िल्म का नाम और इसके नायक का नाम ‘कबाली’ रखना – तमिल सिनेमा में नाम अक्सर ऐसा अनोखा पहलू होता है जिससे विरोधियों पर पदाघात किया जा सके, कबाली के सूट […]
स्त्री गरिमा को रौंदती संस्कृति
16 दिसंबर वर्ष 2012 को दिल्ली में 23 वर्ष की युवती के साथ चलती बस में गैंगरेप की घटना से, टी.वी. चैनलों पर लम्बे समय तक, औरतों की सुरक्षा को लेकर, एक अजीब सा शोर मचा था| जिसके कारण लोगों में भयंकर रोष और गुस्से का संचार हुआ| देश के हर शहर में लोग सड़कों पर मोमबत्तियां जलाकर दोषियों को […]
सैराट: मराठी सिनेमा की नई लहर
दिव्येश मुरबिया नागराज मंजुले, उनकी नवीनतम फिल्म सैराट के लिए मराठी फिल्म निर्देशक के तौर पर काफी मशहूर हुए हैं लेकिन उनको इस फिल्म से कहीं अधिक श्रेय जाता है. उन्होंने एक लघु फिल्म पित्सुल्या के साथ अपना कैरियर शुरू किया था जिसने उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार दिलवाया. उन्होंने फैंड्री के साथ मराठी फिल्म उद्योग में शुरूआत किया था, जो व्यापक […]
आज की स्त्री, कहाँ दबी कुचली है?
मैं पत्रकारिता की छात्रा रही हूँ| कायदे से कहूँ तो डिग्रीधारी पत्रकार हूँ , जिसने कई पत्रकारिता संस्थानों में अपने डिग्री और लेखन के बल पर कार्य भी किया है | लेकिन हर जगह नौकरी छोड़नी पड़ी । कहीं पर जातिगत मान्यताओं के चलते तो कहीं अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं करने के चलते, इनमें से कई जगहें ऐसी भी […]
अब आगे ऐसा करना
अंकित गौतम ये लौ हैकई तूफ़ानों से लड़ करबचाया है खुद को कई आंधियों सेब्राह्मणवाद की तेज़ाबी बारिश सेउसके आग बरसाते सूरज सेअंधेरी तूफानी रातों सेइसे बुझने न देनाइसे अपना खून-पसीना देनापर जलाए रखना..।
“बुद्धा इन ए ट्राफिक जाम” : सियासी परदे में किसका एजेंडा…!
देश के ‘सबसे बड़े दुश्मनों’ और ‘सबसे बड़ी समस्याओं’ से लड़ने के तरीके और उनसे पार पाने के ‘रास्ते’ अब वॉलीवुड के फिल्मकारों ने बताना शुरू कर दिया है! हालांकि सिनेमा के परदे पर ‘उपदेश’ तो पहले भी होते थे, लेकिन उन्हें ‘फिल्मी’ कह और मान कर माफ कर दिया जाता था! लेकिन अब फिल्में बाकायदा राजनीतिक एजेंडे के […]
रामविलास शर्मा की लेखनी में डॉ आंबेडकर: एक आलोचनात्मक समीक्षा
हिन्दी साहित्य-जगत के प्रसिद्ध साहित्यकार डॉ रामविलास शर्मा अपनी प्रग्तीशीलता और मार्कस्वाद के प्रति अपनी निष्ठा के लिए जाने जाते हैं। इन्होने कमजोर तबको के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाने की भरपूर कोशिश भी की है किन्तु इनकी लेखनी पर नज़र डालने पर हमे शर्मा जी की असलियत पता चलती है। इन्होने मार्क्स्वाद को चोला ओढ़कर बड़े शातिर तरीके से दक्षिणपंथी […]