धर्म की व्याख्या का खेल

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) कुछ दिनों पहले एक फ़िल्म देखी The Birth of A Nation. ये फ़िल्म नैट टर्नर नामक गुलाम पे आधारित है जिसने गुलामी के विरुद्ध 1831 में अमेरिका में विद्रोह किया था. इस फिल्म के नायक नैट टर्नर को उसके गोरे मालिक पढ़ना सिखाते हैं. पर सिर्फ वहीं तक कि वह बाइबिल पढ़ सके उससे आगे उसे पढ़ने […]

मुस्लिम समाज में ऊँच-नीच की सत्यता

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Adv. Nurulain Zia Momin) ‘वह झूठ नंगी सड़क पर उठाते फिरता है, मैं अपने सच को छिपाऊँ ये बेबसी मेरी’ कुछ लोग बड़े दावे से कहते है कि भारतीय मुसलमानों में व्याप्त ज़ात-पात/ ऊँच-नीच की बीमारी दूसरे शब्दों में किसी को हसब-नसब (वंश) की बिनाह पर आला (श्रेष्ठ), अदना (नीच/छोटा) समझने की विचारधारा की वजह […]

पसमांदा आंदोलन के बागबान- अभिनेता दिलीप कुमार

अभिजीत आनंद (Abhijit Anand) [अनुवादक: फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी] हम भारतीय सिनेमा को प्यार करते हैं उसको सोते, जागते, ओढ़ते, बिछाते हैं उसके लिए प्रार्थना करतें हैं। मशहूर हस्तियों को लोग सीमाओं से परे होकर चाहते हैं। अभिनेता और अभिनेत्रियाँ हमारे दिलों दिमाग मे एक खास जगह बनाये रहते हैं और हम जैसे दर्शकों को सिनेमा हॉल की चारदीवारी के बाहर […]

तलाक़ का मामला, इस्लाम और अशराफिया सत्ता

लेनिन मौदूदी (Lenin Maududi) तलाक़, उर्दू, अलीगढ़, मदरसे, बाबरी मस्जिद आदि कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिसपे सारी अशराफिया मुस्लिम सियासत आ के खत्म हो जाती है. न इससे आगे कुछ सोचा जाता है न बात की जाती है. शिक्षा, रोज़गार, पसमांदा जैसे मुद्दे हमेशा ही इनके लिए दुसरे दर्जे के मुद्दे रहें हैं. अशराफिया मुस्लिम सियासत हमेशा ही मुस्लिम आरक्षण […]

सवर्ण मुसलमानों के लिए फिक्रमंद सर सयेद अहमद ख़ाँ

एड0 नुरुल ऐन ज़िया मोमिन (Nurulain Zia Momin) इस लेख को लिखने की जरूरत इसलिए पड़ी क्योंकि सर सैयद अहमद ख़ाँ साहब को लेकर भारतीय समाज विशेषकर मुस्लिम समाज में बड़ी ही गलत मान्यता स्थापित है. उन्हें मुस्लिम क़ौम का हमदर्द और न जाने किन-किन अलकाबो से नवाजा गया है जबकि जहाँ तक मैंने जाना है हकीकत इससे बिल्कुल उलट दिखी. […]

टोपीवाला नंबर ‘2’ – अन्ना हज़ारे

एक नन्हीं कहानी – थोड़ी कविता की रंगत में  गुरिंदर आज़ाद (Gurinder Azad) वो अचानक से प्रकट हुआ कहने लगा इस देश का पेट ख़राब है भ्रष्टाचार के कीड़े हैं इसमें खोखला हो रहा है ये मेरे पास दवा है मेरे साथ आओ देश भक्त बनो देश भक्ति दिखाओ         सभी ने उसकी बात को     […]

वो नक़्शे-कदम जो तारीख में कभी मद्धम नहीं पड़ते

पसमांदा-बहुजन आन्दोलन के सिपाही मुर्तुज़ा अंसारी जी को याद करते हुए फ़ैयाज़ अहमद फैज़ी (Faiyaz Ahmad Fyzie) बस अब गोरखपुर शहर में दाखिल हो चुकी थी. धीरे धीरे रेंगती हुई बस स्टॉप की तरफ बढ़ रही थी. मैं मीटिंग में जल्द से जल्द पहुंचना चाह रहा था. गोरखपुर मेरे लिए अंजाना था और मैं गोरखपुर के लिए बिल्कुल नया. लेकिन मेरे […]

कैलाश वानखेड़े की बहुआयामी कथा ‘जस्ट डांस’ को सम्मान

Kailash Wankhede

  कथाकार कैलाश वानखेड़े हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी हर नई कहानी के साथ गाढ़े होते हस्ताक्षर हैं. उनके कहानी संग्रह ‘सत्यापन’ ने अपने विषय -सामग्री, दृष्टिकोण और लेखन-विधा के चलते सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था. गए 28 अगस्त को उन्हें उनकी नई कहानी ‘जस्ट डांस’ के लिए ‘राजेंद्र यादव ‘हंस’ कथा सम्मान 2017′ से सम्मानित किया […]

हमें भारत मे छुआछूत, दंगा और बाबा म्यूज़ियम चाहिए

sanjay jothe

  संजय जोठे (Sanjay Jothe)   जर्मनी और रवांडा जैसे कुछ अफ्रीकी देशों में कई सारे होलोकॉस्ट म्यूज़ियम हैं. स्कूल कॉलेज के बच्चों को वहां दिखाया जाता है कि हिटलर के दौर में या हुतु तुत्सी जातीय हिंसा के दौर में किस नँगाई का नाच हुआ था, कैसे पढ़े लिखे समझदार लोग जानवर बन गए थे और एकदूसरे की खाल […]

साहब कांशी राम और ‘दलित’ शब्द का सवाल?

Satvendra Madara

सतविंदर मदारा (Satvendar Madara)   आज पूरे भारत और यहाँ तक कि विश्वभर में ‘दलित’ शब्द के इस्तेमाल को लेकर समाज, विशेषकर, बहुजन समाज सहमति-असहमति की दो रायों के बीच बंट गया है. जहाँ एक ओर ब्राह्मणवादी मीडिया और समाज इसे बढ़ा-चढ़ा कर इस्तेमाल कर रहा है, वहीं ST, SC, OBC की मूलनिवासी बहुजन जातियाँ भी इस विषय पर बंटी हुईं हैं। […]